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मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

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मैं  निशा  हूँ  निशा . मैं  छलूँगी नहीं,
भोर   को  बिन दिये  मैं  ढ़लूँगी नही. ।
तुम न  सोचो  कि मैं  हूँ अँधेरा गहन
सुरमई  साँझ  मै  सबके हित में बनी


शीत  करती   धरा पर युगों से हूँ मैं  
रागिनी,  प्रेम सलिला  मैं  संजीवनी

मैने तप से स्वयं  को है शीतल किया    
सूर्य  के ताप  से मैं  जलूँगी नहीं
मैं   निशा  हूँ  निशा  मै छलूँगी नहीं
भोर  को  बिन   दिये  मै ढ़लूँगी नहीं
मैं  निशा  हूँ  निशा  .मैं  छलूँगी नहीं
डा. निशा सिंह 'नवल' लखनऊ  

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