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ताजा वाकया 29 अक्टूबर का है. यहां इंदौर-उज्जैन का परिवार भोपाल से वापसी में रूका. परिवार के एक छोटे बच्चे ने स्वीट कार्न लिया. कर्मचारी ने जिसके हाथों में न तो दास्ताने थे ओर न ही सिर पर बावर्चीवाली केप,ताकि बाल आदि भोजन सामग्री में न गिरे. कर्मचारी जोकि समीपस्थ खड़े साथी से बतिया रहा था ओर उसे यह भी नहीं ध्यान था कि जिस बर्तन में स्वीट कार्न रखा है,वह कब से खुला है? उसने मात्रा अनुसार दे दिया. जब बच्चे ने उसे खाया और नीचे तक का खत्म हुआ,तब उसी ने परिजनों को बताया कि इसमें मख्खी मरी हुई पड़ी है….
इस बात की शिकायत करने जब परिवार के सदस्य वहां काम कर रहे सभी कर्मचारियों से मैनेजर का पूछने लगे तो सभी ने टाला. मोबाइल नम्बर पूछा तो कहाकि हमारे पास नहीं है. यह पूछने पर कि कहां बैठते हैं,कहा गया कि यहीं कहीं होंगे. जब परिवार के सदस्यों ने अन्य लोगों को यह सब बताना शुरू किया तो एक काउंटर से कर्मचारी आए तो कहाकि मुझे बताओ,क्या बात है? यह कहने पर कि केवल मैनेजर से ही बात करेंगे, उन्होने मैनेजर जिन्होने अपना नाम राजेश बताया, आए.
आते ही मैनेजर ने कहाकि आप को यह सामग्री दोबारा दे देते हैं,जितने रूपए आपने काउंटर पर दिए,वह सभी ले लीजिये. यह कहने पर हम यहां सौदा करने नहीं आए बल्कि यह बताने आए हैं कि यदि बच्ची की तबियत खराब हो गई तो कौन जिम्मेदार होगा? तो एक कर्मचारी रिश्वत देने की तर्ज पर आ गया. परिजनों ने जब आक्रोश दिखाया तो मैनेजर ने उसे वहां से हटाया और कहाकि मुझे तो तीन दिन हुए हैं यहां आए को. जब उन्हे रेस्टोरेंट कर्मचारियों द्वारा बरती जानेवाली सावधानियों,नियम,शिकायत पुस्तिका आदि के बारे में पूछा तो जवाब नहीं दिया. शिकायत पुस्तिका भी उपलब्ध नहीं करवाई गई.
जिम्मेदार भी नहीं उठा रहे थे फोन
परिवार के एक सदस्य ने जब विभाग के अपर प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला को मोबाइल फोन किया तो उन्होने भी नहीं उठाया. वायस चेट पर जानकारी दी तो भी अपनी ओर से फोन नहीं किया. 24 घण्टे बाद गुरूवार को भी शुक्ला ने फोन नहीं उठाया. ऐसे में आम आदमी किसके पास शिकायत लेकर जाए,यह शोध का विषय है. हालात यह रहे कि निगम के लेण्ड लाइन नम्बर पर कॉल करने पर दूसरी ओर से सुनाई देता रहा कि फोन खराब है…..
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल
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