आज भारत ने पाकिस्तान के पहलगाम आतंकी हमले का जिस तरह से जवाब दिया है, उसे देखकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। सेना के शौर्य और पराक्रम की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। एक समय था जब राजा-महाराजाओं के सैनिक अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए तरह-तरह की योजनाओं की मदद से युद्ध लड़ते थे। इन युद्धों में उनका साथ देते थे उनके हथियार और तोपें जो दुश्मन के सीने को चीर देती थीं। ऐसी ही एक तोप का जिक्र हम आपके साथ करने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर इसका इस्तेमाल आज के समय में किया जाता तो यह किसी भी देश के किसी भी हिस्से को तबाह कर सकती थी। हम बात कर रहे हैं एशिया और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पहिए वाली तोप जयवाना तोप की। इसका निर्माण 18वीं सदी में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने कराया था। लेकिन खास बात यह है कि इस तोप का कभी किसी युद्ध में इस्तेमाल नहीं हुआ, इससे कभी गोली नहीं चलाई गई। आज यह जयगढ़ किले में रखी हुई है और इसकी विशालता और खूबसूरत नक्काशी को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। आइए आज हम आपको भारत की इस बेहतरीन तोप के बारे में पूरी जानकारी देते हैं।
जयवाना तोप के बारे में
बहुत कम लोग जानते होंगे कि जयगढ़ किला दुनिया की सबसे बड़ी पहिए वाली तोप का घर है, जिसे जयवाना तोप कहा जाता है। करीब 50 टन वजनी और 20 फीट लंबी इस विशाल तोप का निर्माण 1720 में इसी किले की फैक्ट्रियों में किया गया था। TOI के मुताबिक, यह तोप कई किलोमीटर दूर तक 50 किलो तक के गोले दाग सकती थी। हालांकि इसका इस्तेमाल कभी युद्ध में नहीं हुआ, लेकिन यह तोप आज भी किले की मजबूती और उस दौर की बेहतरीन सैन्य तकनीक का जीता जागता उदाहरण है।
तोप के वजन के बारे में रोचक बात
रिकॉर्ड के मुताबिक, इस भारी भरकम तोप को खींचने के लिए चार हाथियों की मदद ली गई थी। इसके बड़े आकार और भारी वजन के कारण इसे बनाना और एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बहुत मुश्किल काम था। इस दौर की तोपों पर अक्सर सजावट और नक्काशी होती है, जैसा कि जयवाना तोप पर साफ देखा जा सकता है। इस तोप पर उस समय के राजा का नाम और प्रतीक, कुछ पौराणिक पशु आकृतियाँ, धार्मिक श्लोक और सांस्कृतिक नक्काशी के साथ-साथ फूल-पत्तियाँ और ज्यामितीय डिज़ाइन उकेरे गए हैं।
तोप को सिर्फ़ एक बार दागा गया लेकिन एक तालाब बन गया
इसे इतनी सावधानी और मज़बूती से बनाया गया था कि यह फायरिंग के समय उत्पन्न होने वाले ज़बरदस्त दबाव को झेल सके। इसे किस्मत कहें या हालात, लेकिन जयवाना तोप का इस्तेमाल कभी युद्ध में नहीं किया गया - न तो हमले के लिए और न ही बचाव के लिए। स्थानीय कहानियों के अनुसार, इस तोप को सिर्फ़ एक बार परीक्षण के लिए दागा गया था। परीक्षण फायरिंग का धमाका इतना ज़बरदस्त था कि गोला करीब 35 किलोमीटर दूर जाकर गिरा। यह चाकसू गांव के पास गिरा और वहां एक बड़ा गड्ढा बन गया, जो धीरे-धीरे तालाब में बदल गया। आज वही तालाब आसपास के इलाकों के लिए पानी का स्रोत बना हुआ है।
कहाँ रखी है यह तोप?
जयगढ़ किला, जिसे "विजय का किला" के नाम से भी जाना जाता है, का निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के संस्थापक महाराजा जय सिंह द्वितीय ने करवाया था। यह किला अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है, जहाँ से आप आमेर किला और माओटा झील देख सकते हैं। इस किले की ऊँचाई के कारण यह उस समय सैनिकों के लिए सुरक्षा का काम करता था। यह आमेर किले को भी सुरक्षा प्रदान करता था और राजपरिवार के लिए एक रक्षक किला था।
किले में एक गुप्त सुरंग है
कहानी है कि जयगढ़ किले में एक गुप्त सुरंग है जो इसे आमेर किले से जोड़ती है। इस सुरंग की अभी तक पूरी तरह से खोज नहीं की गई है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसका इस्तेमाल युद्ध या हमले के दौरान राजपरिवार को बाहर निकालने या चुपचाप आने-जाने के लिए किया जाता था। यह रहस्यमयी सुरंग जयगढ़ के इतिहास को और भी दिलचस्प बनाती है।
किला देखने का समय और टिकट
किला देखने का समय और टिकट
समय: सुबह 9:00 बजे से शाम 4:30 बजे तक
प्रवेश टिकट:
भारतीयों के लिए ₹35 प्रति व्यक्ति
विदेशियों के लिए ₹85 प्रति व्यक्ति
स्टिल कैमरा के लिए ₹50
वीडियो कैमरा के लिए ₹200
जयगढ़ किला कैसे पहुँचें
जयगढ़ किला राजस्थान के जयपुर में आमेर किले के पास स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए आप जयपुर रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट से टैक्सी, ऑटो या बस ले सकते हैं। आमेर किले से जयगढ़ तक एक सड़क है, जहाँ निजी वाहन और जीप आसानी से जाती हैं। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए एक ट्रैकिंग रूट भी है जो पहाड़ियों से होते हुए सीधे किले तक जाता है।
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