शासन की लापरवाही और अदालती आदेशों की अनदेखी के चलते मध्य प्रदेश सरकार को शुक्रवार को कड़ी फजीहत का सामना करना पड़ा। कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश के तहत एक अधिवक्ता ने बालाघाट स्थित वन विभाग के दो प्रमुख कार्यालयों को मौके पर पहुंचकर सील कर दिया। यह सख्त कार्रवाई कल्पतरु एग्रोफॉरेस्ट इंटरप्राइजेस प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दाखिल की गई याचिका पर की गई है।
क्या है मामला?जानकारी के मुताबिक, यह विवाद वर्ष 2015 से लंबित है। कल्पतरु एग्रोफॉरेस्ट इंटरप्राइजेस प्राइवेट लिमिटेड ने मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग से एक व्यावसायिक समझौते के तहत कार्य किया था। उस समझौते के तहत शासन को कंपनी को ₹28,33,356 की राशि 10 अप्रैल 2024 से 20 जून 2025 के बीच 10% वार्षिक ब्याज सहित चुकानी थी।
हालांकि, शासन की ओर से इस मामले में कोई भुगतान नहीं किया गया, जबकि 2015 में ही अदालत ने कुर्की के आदेश जारी कर दिए थे। करीब एक दशक तक आदेशों की अवहेलना और टालमटोल के बाद अंततः कोर्ट ने कार्रवाई के आदेश दे दिए।
न्यायालय का आदेश और अधिवक्ता की कार्रवाईकोलकाता हाईकोर्ट के निर्देश पर शुक्रवार दोपहर एक नियुक्त अधिवक्ता ने बालाघाट पहुंचकर वन विभाग के दो कार्यालयों को विधिवत सील कर दिया। अधिवक्ता ने मौके पर पहुंचकर न केवल कार्यालय बंद करवाए, बल्कि कर्मचारियों को भी बाहर निकाला गया और सील लगाने की प्रक्रिया पूरी की गई।
इस दौरान वन विभाग के अधिकारी असहज नजर आए और उन्होंने मीडिया के सवालों से बचने की कोशिश की। मामले ने स्थानीय प्रशासन और सरकारी तंत्र की भारी किरकिरी करवा दी।
शासन की लापरवाही या जानबूझी गई अनदेखी?यह मामला इस बात की मिसाल बन गया है कि कैसे सरकारी विभाग अदालती आदेशों की अनदेखी करते हैं, और जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तब शासन को शर्मनाक हालात का सामना करना पड़ता है। लगभग 10 वर्षों तक कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करना किसी भी जिम्मेदार प्रशासन के लिए गंभीर सवाल खड़े करता है।
विपक्ष ने साधा निशानाइस घटनाक्रम के बाद विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा है। कांग्रेस ने कहा, “यह घटना शिवराज सरकार की प्रशासनिक अक्षमता और अदालती आदेशों के प्रति असंवेदनशीलता का उदाहरण है।" पार्टी प्रवक्ता ने मांग की कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच हो और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
स्थानीय जनता में भी आक्रोशस्थानीय नागरिकों और कर्मचारियों में भी नाराजगी और चिंता का माहौल है। कर्मचारी संगठन ने सवाल उठाया कि सरकार की गलती की सजा विभागीय कर्मचारियों को क्यों मिले?
निष्कर्षबालाघाट की यह घटना साफ दर्शाती है कि यदि समय रहते अदालती आदेशों का पालन न किया जाए, तो परिणाम शर्मनाक और प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। यह मामला न केवल शासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह चेतावनी भी है कि कानून से ऊपर कोई नहीं। अब देखने वाली बात यह होगी कि मध्य प्रदेश सरकार इस घटनाक्रम पर क्या सफाई देती है और आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।
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