अगर आप दिल्ली में रहते हैं,तो आजकल सुबह उठते ही आपको भी आसमान में सूरज की जगह एक धुंधली,भूरी चादर दिखाई देती होगी. यह सिर्फ़ धुंध नहीं,बल्कि ज़हरीली हवा का वो जानलेवा कॉकटेल है,जिसमें दिल्ली वाले हर पल सांस ले रहे हैं. एक बार फिर दिल्ली की हवा'बेहद खराब'हो चुकी है और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह हमारे आस-पास के राज्यों में जलाई जा रही पराली है.आंकड़े जो डराते हैंकेंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. दिल्ली की हवा में मौजूद खतरनाकPM 2.5कणों में पराली के धुएं का हिस्सा36.9%तक पहुंचने की आशंका है. यानी आप जो सांस ले रहे हैं,उसमें एक-तिहाई से ज़्यादा ज़हर सिर्फ़ पराली जलाने से आ रहा है.गुरुवार को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 278दर्ज किया गया,जो'बेहद खराब'श्रेणी में आता है. हालात इतने बुरे हैं कि लोगों को अब आंखों में जलन,गले में खराश और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं आम लगने लगी हैं. पराली के बाद दूसरा सबसे बड़ा विलेन सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां हैं,जो लगभग16%प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं.सिर्फ़ पराली ही नहीं,मौसम भी है दुश्मनइस ज़हरीली हवा के लिए सिर्फ़ पराली और गाड़ियां ही जिम्मेदार नहीं हैं. मौसम भी इस समय विलेन बना हुआ है. हवा की रफ्तार कम होने की वजह से ये ज़हरीले कण कहीं उड़कर नहीं जा पाते और आसमान में ही जम जाते हैं. यही वजह है कि अगले कुछ दिनों तक हमें इस घुटन से राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.यह हवा नहीं,मौत का सामान हैआपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह प्रदूषण सिर्फ़ सर्दी-खांसी तक ही सीमित नहीं है.IHMEकी एक रिपोर्ट के मुताबिक,पिछले साल यानी2023में दिल्ली में17,000से ज़्यादा लोगों की मौत की वजह वायु प्रदूषण था. यह ज़हरीली हवा सिर्फ़ हमारे फेफड़ों को ही नहीं,बल्कि खून में घुलकर दिल की बीमारियों,स्ट्रोक और अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों को भी जन्म दे रही है.हम और आप क्या कर सकते हैं?विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अब सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है,जैसे पराली जलाने पर पूरी तरह से रोक और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर लगाम. लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता,तब तक हमें अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा खुद करनी होगी.जब तक बहुत ज़रूरी न हो,घर से बाहर निकलने से बचें.अगर बाहर निकलना पड़े,तो अच्छी क्वालिटी का मास्क ज़रूर पहनें.बच्चों और बुजुर्गों का खास ध्यान रखें,क्योंकि उन पर इसका असर सबसे ज़्यादा होता है.यह लड़ाई सिर्फ़ सरकार की नहीं,हम सबकी है. क्योंकि सांसें तो हमारी हैं,और इन्हें बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है.
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