इस्लामाबाद : पाकिस्तान में एक बार फिर तख्तापलट की अटकलें लगाई जाने लगी हैं। अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान में एक बार फिर मार्शल लॉ लगाया जा सकता है। इस बीच पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की ताकत भी लगातार बढ़ती जा रही है। इसका सबूत भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद देखने को मिला, जहां बुरी तरह मार खाने के बावजूद असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद से नवाजा गया। पाकिस्तान में अयूब खान के बाद असीम मुनीर दूसरे सेना प्रमुख हैं, जिन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया है। अटकलें यह भी है कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच कई मुद्दों पर तनाव है।
सेना और सरकार में बढ़ रहा तनाव
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नागरिक सरकार और सैन्य नेतृत्व के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद मुनीर सीधे तौर पर सरकारी फैसलों में दखल देने लगे हैं। सेना की ऐसी दखलंदाजियां पहले से जारी थीं, लेकिन हाल के दिनों में काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। इतना ही नहीं, जनरल मुनीर अब चाहते हैं कि पाकिस्तान की रक्षा और विदेश नीति को सेना चलाए। यही कारण है कि उन्होंने खुद को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री असीम मुनीर और विदेश मंत्री इशाक डार से ज्यादा तवज्जो देनी शुरू कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ डिनर के बाद जनरल मुनीर के हौसले और ज्यादा बढ़ गए हैं।
तख्तापलट की अटकलों की शुरुआत कैसे हुई?
फर्स्टपोस्ट के अनुसार, नियुक्तियों और शासन की सामान्य दिशा पर असहमति के बाद जरदारी और मुनीर के बीच तनाव के पहले संकेत सामने आए। मार्च 2024 में दूसरी बार पदभार संभालने वाले जरदारी कथित तौर पर अपने संवैधानिक अधिकार का ऐसे तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सेना असहज महसूस कर रही है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा सेना से जुड़े कुछ फैसलों- जैसे वरिष्ठ नियुक्तियों, पोस्टिंग और विदेश नीति पर मुहर लगाने में अनिच्छा ने सेना को नाराज कर दिया है।
बिलावल के बयान से सेना नाराज
इस्लामाबाद और रावलपिंडी के सत्ता गलियारों के अज्ञात स्रोतों ने कथित तौर पर पुष्टि की है कि हाल के महीनों में सेना के साथ राष्ट्रपति जरदारी का टकराव बढ़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक बिलावल भुट्टो जरदारी द्वारा की गई टिप्पणी है, जो आसिफ अली जरदारी के बेटे और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख हैं। बिलावल ने हाल ही में नामित आतंकवादियों हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव रखा, जिससे देश में जिहादी समूह नाराज हो गए हैं। इन जिहादी समूहों को पाकिस्तानी सेना का संरक्षण प्राप्त है।
पाकिस्तान में पहले भी हो चुके हैं तख्तापलट
पाकिस्तान ने तीन प्रत्यक्ष सैन्य तख्तापलट देखे हैं- 1958, 1977 और 1999 में- और कई अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के उदाहरण भी देखे हैं, जहाँ जनरलों ने पर्दे के पीछे से नागरिक सरकारों को प्रभावित, बर्खास्त या हेरफेर किया। पाकिस्तान पर अपने अस्तित्व के लगभग आधे समय तक शासन किया है, या तो सीधे या सैन्य समर्थित राजनीतिक गठबंधनों के माध्यम से। आखिरी सैन्य तख्तापलट 1999 में हुआ था जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ कर दिया था। उससे पहले, जनरल जिया-उल-हक ने 1977 में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो (आसिफ अली जरदारी के ससुर) को हटा कर मार्शल लॉ लागू कर दिया था।
सेना और सरकार में बढ़ रहा तनाव
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नागरिक सरकार और सैन्य नेतृत्व के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद मुनीर सीधे तौर पर सरकारी फैसलों में दखल देने लगे हैं। सेना की ऐसी दखलंदाजियां पहले से जारी थीं, लेकिन हाल के दिनों में काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। इतना ही नहीं, जनरल मुनीर अब चाहते हैं कि पाकिस्तान की रक्षा और विदेश नीति को सेना चलाए। यही कारण है कि उन्होंने खुद को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री असीम मुनीर और विदेश मंत्री इशाक डार से ज्यादा तवज्जो देनी शुरू कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ डिनर के बाद जनरल मुनीर के हौसले और ज्यादा बढ़ गए हैं।
तख्तापलट की अटकलों की शुरुआत कैसे हुई?
फर्स्टपोस्ट के अनुसार, नियुक्तियों और शासन की सामान्य दिशा पर असहमति के बाद जरदारी और मुनीर के बीच तनाव के पहले संकेत सामने आए। मार्च 2024 में दूसरी बार पदभार संभालने वाले जरदारी कथित तौर पर अपने संवैधानिक अधिकार का ऐसे तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सेना असहज महसूस कर रही है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा सेना से जुड़े कुछ फैसलों- जैसे वरिष्ठ नियुक्तियों, पोस्टिंग और विदेश नीति पर मुहर लगाने में अनिच्छा ने सेना को नाराज कर दिया है।
बिलावल के बयान से सेना नाराज
इस्लामाबाद और रावलपिंडी के सत्ता गलियारों के अज्ञात स्रोतों ने कथित तौर पर पुष्टि की है कि हाल के महीनों में सेना के साथ राष्ट्रपति जरदारी का टकराव बढ़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक बिलावल भुट्टो जरदारी द्वारा की गई टिप्पणी है, जो आसिफ अली जरदारी के बेटे और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख हैं। बिलावल ने हाल ही में नामित आतंकवादियों हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव रखा, जिससे देश में जिहादी समूह नाराज हो गए हैं। इन जिहादी समूहों को पाकिस्तानी सेना का संरक्षण प्राप्त है।
पाकिस्तान में पहले भी हो चुके हैं तख्तापलट
पाकिस्तान ने तीन प्रत्यक्ष सैन्य तख्तापलट देखे हैं- 1958, 1977 और 1999 में- और कई अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के उदाहरण भी देखे हैं, जहाँ जनरलों ने पर्दे के पीछे से नागरिक सरकारों को प्रभावित, बर्खास्त या हेरफेर किया। पाकिस्तान पर अपने अस्तित्व के लगभग आधे समय तक शासन किया है, या तो सीधे या सैन्य समर्थित राजनीतिक गठबंधनों के माध्यम से। आखिरी सैन्य तख्तापलट 1999 में हुआ था जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ कर दिया था। उससे पहले, जनरल जिया-उल-हक ने 1977 में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो (आसिफ अली जरदारी के ससुर) को हटा कर मार्शल लॉ लागू कर दिया था।
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