पटना: चुनाव आयोग की ओर से देश भर में मतदाता सूचियों का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) करने के फैसले पर विपक्षी दल नाराज हो गए हैं। यह प्रक्रिया वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए है, जिसके तहत नए वोटरों को जोड़ जाएगा और अयोग्य वोटरों को हटाया जाएगा। विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र की बीजेपी सरकार इस प्रक्रिया का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रही है। वे कह रहे हैं कि यह वोटर लिस्ट में हेरफेर करने और उन समुदायों के वोटरों के नाम हटाने की साजिश है जो सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में नहीं हैं।
चुनाव आयोग का कहना है कि एसआीआर एक सामान्य तकनीकी काम है। इसका मकसद चुनावों से पहले वोटर लिस्ट को ठीक करना है। लेकिन कई राज्यों के विपक्षी दल इस प्रक्रिया के समय, इरादे और तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मुख्य आरोप है कि बीजेपी सरकार एसआईआर का इस्तेमाल वोटर लिस्ट में गड़बड़ी करने और उन लोगों के नाम हटाने के लिए कर रही है जो सत्ताधारी पार्, यानी बीजेपी टी के खिलाफ वोट कर सकते हैं।
विपक्षी दलों का आरोप- वोट चुराने की साजिश एसआईआर प्रक्रिया को लेकर सबसे पहले बिहार में बड़ा विवाद हुआ। यहां इस प्रक्रिया के तहत इस साल की शुरुआत में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से करीब 4 लाख नाम हटा दिए गए थे। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने इस मुद्दे को उठाया और एसआईआर को "चुनावी धोखा" बताया।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में अपनी 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान एसआईआर को मुख्य मुद्दा बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह विपक्ष के समर्थक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाने की साजिश है। वे इसे सन 2014 के बाद बीजेपी की जीत में वोटों की धांधली की संभावना के आरोप से जोड़ रहे हैं।
हालांकि सितंबर में बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट बिना किसी बड़े विवाद के प्रकाशित हो गई थी। लेकिन तब तक यह राजनीतिक नैरेटिव बन चुका था। कांग्रेस को एसआईआर में एक नया मुद्दा मिल गया था। इससे उन्हें हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिला।
तमिलनाडु में सीएम स्टालिन का बीजेपी पर हमलातमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तो एसआईआर को वोट चुराने की योजना तक कह दिया है। उनका कहना है कि यह योजना बीजेपी और उसके सहयोगी एआईएडीएमके को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
हाल ही में एक्स पर एक पोस्ट में स्टालिन ने पूछा, "यह एसआईआर बीजेपी की चुनावी जीत के लिए वोट चुराने में क्यों मदद करता है?" उन्होंने केंद्र पर भाषा थोपने, भ्रष्टाचार धोने और वोटरों में हेरफेर करके सत्ता मजबूत करने का आरोप लगाया। इसके बाद उन्होंने डीएमके कार्यकर्ताओं को एक कड़ा पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने चेतावनी दी थी कि एसआईआर का इस्तेमाल "वंचित वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों, महिलाओं और गरीबों के वोटरों के नाम लिस्ट से हटाने के लिए किया जा रहा है।"
स्टालिन ने कहा, "बीजेपी और उसकी सहयोगी एआईएडीएमके को लगता है कि अगर एसआईआर के जरिए इन वोटरों के नाम हटा दिए गए, तो वे लोगों का सामना किए बिना जीत हासिल कर सकते हैं। लेकिन तमिलनाडु में यह हिसाब-किताब फेल होगा।" उन्होंने यह भी कहा कि डीएमके इस प्रक्रिया को कानूनी तौर पर और लोगों के विरोध प्रदर्शन के जरिए चुनौती देगा। स्टालिन ने पार्टी कार्यकर्ताओं को रिवीजन के हर कदम पर बारीकी से नजर रखने का निर्देश दिया है। उन्होंने डीएमके की ओर से एसआईआर के विरोध को नागरिकों के वोट देने के लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा करना बताया।
बंगाल में टीएमसी को वोटर लिस्ट में हेरफेर का डर
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आरोप लगाया है कि बीजेपी एसआईआर का इस्तेमाल अवैध घुसपैठियों की पहचान के बहाने वोटर लिस्ट में हेरफेर करने के लिए कर रही है। तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, "बंगाल में बीजेपी के पास न तो संगठन है और न ही स्वीकार्यता। इसलिए अब वह चुनाव आयोग की मदद से वोटर लिस्ट में हेरफेर करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि बीजेपी के एजेंडे को पूरा करने के लिए किसी भी असली वोटर का नाम हटाने पर उसका उचित विरोध किया जाएगा।
एक अन्य टीएमसी नेता जयप्रकाश नारायण ने चुनाव आयोग की प्रस्तावित समय सीमा की आलोचना की। उन्होंने इसे जल्दबाजी वाला काम बताया जिससे रिवीजन की सटीकता प्रभावित हो सकती है। उन्होंने कहा, अगर अगले साल की शुरुआत में बंगाल में चुनाव होने हैं, तो दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त समय नहीं है।
बीजेपी कह रही- घुसपैठियों की सफाई
दूसरी ओर बीजेपी ने एसआईआर को घुसपैठियों की सफाई का काम बताया है। तृणमूल का कहना है कि यह मुस्लिम वोटरों को निशाना बनाने और विभाजन पैदा करने का बहाना है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में रैलियों के दौरान विपक्षी आलोचना को पलट दिया। उन्होंने कहा कि एसआईआर विदेशी घुसपैठियों का पता लगाने और उन्हें वोटर लिस्ट से हटाने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि हर घुसपैठिए का पता लगाया जाएगा, उसे हटाया जाएगा और निर्वासित किया जाएगा।
उन्होंने राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' का मजाक उड़ाया और उसे "घुसपैठिये बचाओ यात्रा" कहा। शाह ने कहा कि विपक्षी SIR का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि "वे बिहार में फर्जी वोटर और अराजकता वापस चाहते हैं।"
एसआईआर विवाद के मूल में एक गहरी लड़ाई है चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का सवाल। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि इलेक्शन कमीशन के हालिया फैसले एसआीआर से लेकर परिसीमन (डीलिमिटेशन) तक केंद्र सरकार से प्रभावित हो रहे हैं। बीजेपी ने इसे राजनीतिक चालबाजी कहकर खारिज कर दिया है। उसका तर्क है कि एसआईआर एक मानक चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है जो स्पष्ट वैधानिक नियमों के तहत की जाती है। इसमें किसी भी दल को आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार है।
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन क्या है ?
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए चलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वोटर लिस्ट में केवल वही नाम हों जो वास्तव में वोट देने के योग्य हैं।
एसआईआर प्रक्रिया में क्या होता है? 1 नए वोटरों का पंजीकरण: जो युवा 18 साल के हो गए हैं या जो नए मतदाता बने हैं, उनके नाम लिस्ट में जोड़े जाते हैं।
2. अयोग्य वोटरों को हटाना: ऐसे लोग जो किसी दूसरे देश में चले गए हैं, जिनकी मृत्यु हो गई है, या जो किसी कारण से वोट देने के योग्य नहीं रहे, उनके नाम लिस्ट से हटाए जाते हैं।
3. जानकारी का सत्यापन: कई बार वोटरों के पते या अन्य जानकारी को भी सत्यापित किया जाता है।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है जो हर साल या चुनावों से पहले की जाती है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव निष्पक्ष हों और कोई भी गलत तरीके से वोट न डाल सके।
विपक्ष को क्या डर है?विपक्षी दलों को डर है कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर सकती है। उनके अनुसार:
चुनिंदा नामों को हटाना- सरकार उन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटवा सकती है जो उसके विरोधी हैं या जो किसी खास समुदाय से आते हैं।
राजनीतिक दबाव- चुनाव आयोग पर सरकार का दबाव हो सकता है, जिससे वह निष्पक्ष तरीके से काम न करे।
अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना- कुछ दलों का मानना है कि अल्पसंख्यकों या कमजोर वर्गों के वोटरों को निशाना बनाया जा सकता है।
बीजेपी क्या कह रही?
बीजेपी का कहना है कि एसआईआर एक पारदर्शी प्रक्रिया है।
घुसपैठियों को हटाना: बीजपी का मुख्य तर्क है कि इस प्रक्रिया से देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाएंगे।
वोटर लिस्ट की शुद्धि: वह इसे वोटर लिस्ट को साफ करने का एक तरीका बता रही है।
कानूनी प्रक्रिया: बीजेपी का कहना है कि यह सब नियमों के तहत हो रहा है और किसी को भी आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार है।
यह पूरा मामला चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करता है। विपक्षी दल चाहते हैं कि चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वतंत्र होकर काम करे, ताकि देश में लोकतंत्र मजबूत बना रहे।
चुनाव आयोग का कहना है कि एसआीआर एक सामान्य तकनीकी काम है। इसका मकसद चुनावों से पहले वोटर लिस्ट को ठीक करना है। लेकिन कई राज्यों के विपक्षी दल इस प्रक्रिया के समय, इरादे और तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मुख्य आरोप है कि बीजेपी सरकार एसआईआर का इस्तेमाल वोटर लिस्ट में गड़बड़ी करने और उन लोगों के नाम हटाने के लिए कर रही है जो सत्ताधारी पार्, यानी बीजेपी टी के खिलाफ वोट कर सकते हैं।
विपक्षी दलों का आरोप- वोट चुराने की साजिश एसआईआर प्रक्रिया को लेकर सबसे पहले बिहार में बड़ा विवाद हुआ। यहां इस प्रक्रिया के तहत इस साल की शुरुआत में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से करीब 4 लाख नाम हटा दिए गए थे। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने इस मुद्दे को उठाया और एसआईआर को "चुनावी धोखा" बताया।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में अपनी 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान एसआईआर को मुख्य मुद्दा बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह विपक्ष के समर्थक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाने की साजिश है। वे इसे सन 2014 के बाद बीजेपी की जीत में वोटों की धांधली की संभावना के आरोप से जोड़ रहे हैं।
हालांकि सितंबर में बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट बिना किसी बड़े विवाद के प्रकाशित हो गई थी। लेकिन तब तक यह राजनीतिक नैरेटिव बन चुका था। कांग्रेस को एसआईआर में एक नया मुद्दा मिल गया था। इससे उन्हें हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिला।
तमिलनाडु में सीएम स्टालिन का बीजेपी पर हमलातमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तो एसआईआर को वोट चुराने की योजना तक कह दिया है। उनका कहना है कि यह योजना बीजेपी और उसके सहयोगी एआईएडीएमके को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
हाल ही में एक्स पर एक पोस्ट में स्टालिन ने पूछा, "यह एसआईआर बीजेपी की चुनावी जीत के लिए वोट चुराने में क्यों मदद करता है?" उन्होंने केंद्र पर भाषा थोपने, भ्रष्टाचार धोने और वोटरों में हेरफेर करके सत्ता मजबूत करने का आरोप लगाया। इसके बाद उन्होंने डीएमके कार्यकर्ताओं को एक कड़ा पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने चेतावनी दी थी कि एसआईआर का इस्तेमाल "वंचित वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों, महिलाओं और गरीबों के वोटरों के नाम लिस्ट से हटाने के लिए किया जा रहा है।"
स्टालिन ने कहा, "बीजेपी और उसकी सहयोगी एआईएडीएमके को लगता है कि अगर एसआईआर के जरिए इन वोटरों के नाम हटा दिए गए, तो वे लोगों का सामना किए बिना जीत हासिल कर सकते हैं। लेकिन तमिलनाडु में यह हिसाब-किताब फेल होगा।" उन्होंने यह भी कहा कि डीएमके इस प्रक्रिया को कानूनी तौर पर और लोगों के विरोध प्रदर्शन के जरिए चुनौती देगा। स्टालिन ने पार्टी कार्यकर्ताओं को रिवीजन के हर कदम पर बारीकी से नजर रखने का निर्देश दिया है। उन्होंने डीएमके की ओर से एसआईआर के विरोध को नागरिकों के वोट देने के लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा करना बताया।
बंगाल में टीएमसी को वोटर लिस्ट में हेरफेर का डर
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आरोप लगाया है कि बीजेपी एसआईआर का इस्तेमाल अवैध घुसपैठियों की पहचान के बहाने वोटर लिस्ट में हेरफेर करने के लिए कर रही है। तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, "बंगाल में बीजेपी के पास न तो संगठन है और न ही स्वीकार्यता। इसलिए अब वह चुनाव आयोग की मदद से वोटर लिस्ट में हेरफेर करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि बीजेपी के एजेंडे को पूरा करने के लिए किसी भी असली वोटर का नाम हटाने पर उसका उचित विरोध किया जाएगा।
एक अन्य टीएमसी नेता जयप्रकाश नारायण ने चुनाव आयोग की प्रस्तावित समय सीमा की आलोचना की। उन्होंने इसे जल्दबाजी वाला काम बताया जिससे रिवीजन की सटीकता प्रभावित हो सकती है। उन्होंने कहा, अगर अगले साल की शुरुआत में बंगाल में चुनाव होने हैं, तो दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त समय नहीं है।
बीजेपी कह रही- घुसपैठियों की सफाई
दूसरी ओर बीजेपी ने एसआईआर को घुसपैठियों की सफाई का काम बताया है। तृणमूल का कहना है कि यह मुस्लिम वोटरों को निशाना बनाने और विभाजन पैदा करने का बहाना है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में रैलियों के दौरान विपक्षी आलोचना को पलट दिया। उन्होंने कहा कि एसआईआर विदेशी घुसपैठियों का पता लगाने और उन्हें वोटर लिस्ट से हटाने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि हर घुसपैठिए का पता लगाया जाएगा, उसे हटाया जाएगा और निर्वासित किया जाएगा।
उन्होंने राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' का मजाक उड़ाया और उसे "घुसपैठिये बचाओ यात्रा" कहा। शाह ने कहा कि विपक्षी SIR का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि "वे बिहार में फर्जी वोटर और अराजकता वापस चाहते हैं।"
एसआईआर विवाद के मूल में एक गहरी लड़ाई है चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का सवाल। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि इलेक्शन कमीशन के हालिया फैसले एसआीआर से लेकर परिसीमन (डीलिमिटेशन) तक केंद्र सरकार से प्रभावित हो रहे हैं। बीजेपी ने इसे राजनीतिक चालबाजी कहकर खारिज कर दिया है। उसका तर्क है कि एसआईआर एक मानक चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है जो स्पष्ट वैधानिक नियमों के तहत की जाती है। इसमें किसी भी दल को आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार है।
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन क्या है ?
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए चलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वोटर लिस्ट में केवल वही नाम हों जो वास्तव में वोट देने के योग्य हैं।
एसआईआर प्रक्रिया में क्या होता है? 1 नए वोटरों का पंजीकरण: जो युवा 18 साल के हो गए हैं या जो नए मतदाता बने हैं, उनके नाम लिस्ट में जोड़े जाते हैं।
2. अयोग्य वोटरों को हटाना: ऐसे लोग जो किसी दूसरे देश में चले गए हैं, जिनकी मृत्यु हो गई है, या जो किसी कारण से वोट देने के योग्य नहीं रहे, उनके नाम लिस्ट से हटाए जाते हैं।
3. जानकारी का सत्यापन: कई बार वोटरों के पते या अन्य जानकारी को भी सत्यापित किया जाता है।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है जो हर साल या चुनावों से पहले की जाती है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव निष्पक्ष हों और कोई भी गलत तरीके से वोट न डाल सके।
विपक्ष को क्या डर है?विपक्षी दलों को डर है कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर सकती है। उनके अनुसार:
चुनिंदा नामों को हटाना- सरकार उन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटवा सकती है जो उसके विरोधी हैं या जो किसी खास समुदाय से आते हैं।
राजनीतिक दबाव- चुनाव आयोग पर सरकार का दबाव हो सकता है, जिससे वह निष्पक्ष तरीके से काम न करे।
अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना- कुछ दलों का मानना है कि अल्पसंख्यकों या कमजोर वर्गों के वोटरों को निशाना बनाया जा सकता है।
बीजेपी क्या कह रही?
बीजेपी का कहना है कि एसआईआर एक पारदर्शी प्रक्रिया है।
घुसपैठियों को हटाना: बीजपी का मुख्य तर्क है कि इस प्रक्रिया से देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाएंगे।
वोटर लिस्ट की शुद्धि: वह इसे वोटर लिस्ट को साफ करने का एक तरीका बता रही है।
कानूनी प्रक्रिया: बीजेपी का कहना है कि यह सब नियमों के तहत हो रहा है और किसी को भी आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार है।
यह पूरा मामला चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करता है। विपक्षी दल चाहते हैं कि चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वतंत्र होकर काम करे, ताकि देश में लोकतंत्र मजबूत बना रहे।
You may also like

दिल्ली एसिड अटैक केस में बड़ा खुलासा, पीड़िता के पिता ने खुद रची थी साजिश!

'डर बड़ी चीज है, ये वही है न जिसे अजान से ख़लल पड़ती थी', सोनू निगम अजान के लिए 2 मिनट रुके तो लोगों ने धो डाला

UPSC छात्र हत्याकांड में नया खुलासा, लिव-इन पार्टनर के अलावा 15 अन्य महिलाओं के अश्लील वीडियो मिले

अमीषा पटेल का नया ब्राइडल लुक सोशल मीडिया पर छाया

रियल मैड्रिड को झटका, करीब 2 महीने मैदान से बाहर रहेंगे कार्वाजल




