पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें आ चुकी हैं। नवंबर में दो चरणों में चुनाव होंगे। 14 नवंबर को परिणाम आएगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA एक बार फिर से सत्ता में आने की आशा कर रहा है। इसके लिए नीतीश की रणनीति अपने कोर वोटरों को साथ बनाए रखने की है। यह कोर वोटर है महिलाओं का। NDA को लगता है कि अगर फिर से महिलाओं का साथ मिल गया तो सत्ता की सीढ़ी तक वह फिर पहुंच जाएगा। यही कारण है कि चुनाव से पहले एक करोड़ से अधिक महिलाओं को सरकार ने 10 हजार रुपये की बड़ी रकम एक साथ ट्रांसफर की है। लाखों और महिलाओं के खाते में पैसे जाने अभी बाकी हैं। उधर, तेजस्वी यादव की अगुआई में I.N.D.I.A. ब्लॉक अभी तक इसकी काट नहीं खोज पाया है। लेकिन उसने भी महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये देने का वादा किया है, जो नीतीश के दांव के आगे हल्का लग रहा है।
सफलता का पुराना फॉर्म्युला
नीतीश कुमार का पूरा फोकस महिला वोटरों पर है। दरअसल, 2005 से अब तक महिलाएं और महादलित उनके साइलेंट कोर सपोर्ट रहे हैं। खासकर, महिला वोटर चुनाव में उनके लिए सबसे बड़ा X फैक्टर बनकर उभरती रही हैं। नीतीश जब 2005 में सत्ता में आए थे तो उन्हें पता था कि राज्य की राजनीति जातीय समीकरण में उलझी है। इस समीकरण में उनकी जाति का पलड़ा भारी नहीं था। नीतीश की जाति राज्य में बड़ा आधार नहीं रखती थी। इसीलिए उन्होंने महिलाओं और महादलितों-अतिपिछड़ों के बीच पार्टी का विस्तार किया। तब से लेकर अब तक नीतीश की जीत में महिला वोटरों ने अहम भूमिका निभाई है। वह हर बार अपनी पार्टी के घोषणापत्र में महिलाओं के लिए खास वायदे भी करते रहे हैं। चुनाव में हर बार वह निर्णायक भी साबित होता रहा है।
2015 में उन्होंने शराबबंदी और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण का वादा किया था। यह दांव सफल रहा। इसकी पुष्टि चुनाव बाद आए सर्वे से हुई। इनमें बताया गया कि 60% से अधिक महिलाओं ने उस चुनाव में नीतीश के पक्ष में वोट किया था। 2009 की जीत में स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकल देने की घोषणा का अहम रोल था। इसकी वजह यह भी है कि बिहार में महिलाओं की वोटिंग में शानदार बढ़ोतरी हुई है। 2020 में नीतीश ने 'जीविका दीदी' योजना पर फोकस किया, जो उनके लिए ब्रैंड एंबेसडर बनी।
साइलेंस फैक्टर की काट माई-बहिन योजना?नीतीश के करीबी रणनीतिकारों का दावा है कि हर बार चुनाव से पहले उनके बारे में नकारात्मक बातें होती हैं, लेकिन जब नतीजे आते हैं तो सभी हैरान हो जाते हैं। इन रणनीतिकारों का दावा है कि साइलेंट वोटर इस बार भी उनके साथ जुड़े रहेंगे। 2020 में जब तमाम सर्वे उनके खिलाफ बताए जा रहे थे, तब अंतिम परिणाम में इन्हीं महिलाओं ने नीतीश का किला किसी तरह बचा दिया था। लेकिन तेजस्वी यादव इस मजबूत किले में माई-बहिन योजना की बदौलत सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। वे हर महिला को 2,500 रुपये देने का वादा कर रहे हैं। वह नीतीश सरकार के महिलाओं के खाते में 10 हजार ट्रांसफर किए जाने की योजना को काउंटर करने के लिए वादा कर रहे हैं कि सत्ता में आए तो 2,500 रुपये की योजना को लागू करने के साथ ही हर महिला के खाते में पूरे साल का एकमुश्त 30 हजार रुपया एडवांस दे देंगे।
I.N.D.I.A. ब्लॉक महिला वोटरों का डेटा बनाकर उन तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। इसका गणित है कि अगर इसमें कुछ हद तक भी सेंध लगाने में सफलता मिल गई तो सियासी संतुलन उसके पक्ष में आ जाएगा। मगर सवाल यह है कि क्या विपक्षी गठबंधन नीतीश के कोर वोटरों के किले में सेंध लगा पाएगा?
सफलता का पुराना फॉर्म्युला
नीतीश कुमार का पूरा फोकस महिला वोटरों पर है। दरअसल, 2005 से अब तक महिलाएं और महादलित उनके साइलेंट कोर सपोर्ट रहे हैं। खासकर, महिला वोटर चुनाव में उनके लिए सबसे बड़ा X फैक्टर बनकर उभरती रही हैं। नीतीश जब 2005 में सत्ता में आए थे तो उन्हें पता था कि राज्य की राजनीति जातीय समीकरण में उलझी है। इस समीकरण में उनकी जाति का पलड़ा भारी नहीं था। नीतीश की जाति राज्य में बड़ा आधार नहीं रखती थी। इसीलिए उन्होंने महिलाओं और महादलितों-अतिपिछड़ों के बीच पार्टी का विस्तार किया। तब से लेकर अब तक नीतीश की जीत में महिला वोटरों ने अहम भूमिका निभाई है। वह हर बार अपनी पार्टी के घोषणापत्र में महिलाओं के लिए खास वायदे भी करते रहे हैं। चुनाव में हर बार वह निर्णायक भी साबित होता रहा है।
2015 में उन्होंने शराबबंदी और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण का वादा किया था। यह दांव सफल रहा। इसकी पुष्टि चुनाव बाद आए सर्वे से हुई। इनमें बताया गया कि 60% से अधिक महिलाओं ने उस चुनाव में नीतीश के पक्ष में वोट किया था। 2009 की जीत में स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकल देने की घोषणा का अहम रोल था। इसकी वजह यह भी है कि बिहार में महिलाओं की वोटिंग में शानदार बढ़ोतरी हुई है। 2020 में नीतीश ने 'जीविका दीदी' योजना पर फोकस किया, जो उनके लिए ब्रैंड एंबेसडर बनी।
साइलेंस फैक्टर की काट माई-बहिन योजना?नीतीश के करीबी रणनीतिकारों का दावा है कि हर बार चुनाव से पहले उनके बारे में नकारात्मक बातें होती हैं, लेकिन जब नतीजे आते हैं तो सभी हैरान हो जाते हैं। इन रणनीतिकारों का दावा है कि साइलेंट वोटर इस बार भी उनके साथ जुड़े रहेंगे। 2020 में जब तमाम सर्वे उनके खिलाफ बताए जा रहे थे, तब अंतिम परिणाम में इन्हीं महिलाओं ने नीतीश का किला किसी तरह बचा दिया था। लेकिन तेजस्वी यादव इस मजबूत किले में माई-बहिन योजना की बदौलत सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। वे हर महिला को 2,500 रुपये देने का वादा कर रहे हैं। वह नीतीश सरकार के महिलाओं के खाते में 10 हजार ट्रांसफर किए जाने की योजना को काउंटर करने के लिए वादा कर रहे हैं कि सत्ता में आए तो 2,500 रुपये की योजना को लागू करने के साथ ही हर महिला के खाते में पूरे साल का एकमुश्त 30 हजार रुपया एडवांस दे देंगे।
I.N.D.I.A. ब्लॉक महिला वोटरों का डेटा बनाकर उन तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। इसका गणित है कि अगर इसमें कुछ हद तक भी सेंध लगाने में सफलता मिल गई तो सियासी संतुलन उसके पक्ष में आ जाएगा। मगर सवाल यह है कि क्या विपक्षी गठबंधन नीतीश के कोर वोटरों के किले में सेंध लगा पाएगा?
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