इंदौर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में एक साढ़े तीन वर्षीय बच्ची द्वारा संथारा लेने और इसके बाद उसकी मृत्यु के मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और मृतक बच्ची वियाना के माता-पिता को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अदालत ने यह अहम सवाल उठाया है कि क्या इतनी कम उम्र की बच्ची, जो निर्णय लेने की समझ भी नहीं रखती, वह किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए अपनी सहमति कैसे दे सकती है?
याचिका पर सुनवाई
यह जनहित याचिका प्रांशु जैन द्वारा अधिवक्ता शुभम शर्मा के माध्यम से दायर की गई थी। जिसमें कोर्ट को बताया है कि जैन समुदाय में तीन नाबालिग का संथारा हुआ है। याचिकाकर्ता ने बताया कि इनमें एक 13 वर्षीय बच्ची हैदराबाद से, एक 10 वर्षीय बच्ची मैसूर से, और तीसरी साढ़े तीन वर्षीया वियाना इंदौर की रहने वाली थी। याचिका में अनुरोध किया गया कि याचिका का अंतिम निराकरण होने तक नाबालिगों के संथारा पर रोक लगाई जाए।
स्वत: संज्ञान लिया
कोर्ट ने 21 मार्च 2025 को वियाना द्वारा संथारा लेने और उसके दस मिनट बाद मृत्यु हो जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए इस पर स्वतः संज्ञान लिया है। मंगलवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन को भी पक्षकार मानते हुए, उन्हें नोटिस जारी किया। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों से भी जवाब मांगा गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि यह मामला जैन समाज से जुड़ा है, इसलिए आदेश पारित करने से पहले सभी पक्षों की बात सुनी जाएगी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
क्या है पूरा मामला?
साढ़े तीन वर्षीय वियाना ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी। जनवरी 2025 में जब बीमारी का पता चला, तो उसे इलाज के लिए मुंबई ले जाया गया, जहां उसका ऑपरेशन हुआ। हालांकि मार्च के तीसरे सप्ताह में फिर उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। 21 मार्च को माता-पिता बच्ची को आध्यात्मिक गुरु मुनिश्री राजेश महाराज के पास लेकर गए, जिन्होंने बच्ची की स्थिति को देखते हुए संथारा विधि संपन्न कराने की सलाह दी। गुरुजी, माता-पिता और परिजनों की सहमति से वियाना ने संथारा लिया और विधि पूरी होने के 10 मिनट बाद उसकी मृत्यु हो गई।
क्या है संथारा या सल्लेखना?
संथारा एक जैन धार्मिक परंपरा है, जिसे संलेखना या समाधिमरण भी कहा जाता है। यह स्वेच्छा से अन्न-जल का त्याग करके अपनी मृत्यु को स्वीकार करने की प्रक्रिया है।
याचिका पर सुनवाई
यह जनहित याचिका प्रांशु जैन द्वारा अधिवक्ता शुभम शर्मा के माध्यम से दायर की गई थी। जिसमें कोर्ट को बताया है कि जैन समुदाय में तीन नाबालिग का संथारा हुआ है। याचिकाकर्ता ने बताया कि इनमें एक 13 वर्षीय बच्ची हैदराबाद से, एक 10 वर्षीय बच्ची मैसूर से, और तीसरी साढ़े तीन वर्षीया वियाना इंदौर की रहने वाली थी। याचिका में अनुरोध किया गया कि याचिका का अंतिम निराकरण होने तक नाबालिगों के संथारा पर रोक लगाई जाए।
स्वत: संज्ञान लिया
कोर्ट ने 21 मार्च 2025 को वियाना द्वारा संथारा लेने और उसके दस मिनट बाद मृत्यु हो जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए इस पर स्वतः संज्ञान लिया है। मंगलवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन को भी पक्षकार मानते हुए, उन्हें नोटिस जारी किया। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों से भी जवाब मांगा गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि यह मामला जैन समाज से जुड़ा है, इसलिए आदेश पारित करने से पहले सभी पक्षों की बात सुनी जाएगी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
क्या है पूरा मामला?
साढ़े तीन वर्षीय वियाना ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी। जनवरी 2025 में जब बीमारी का पता चला, तो उसे इलाज के लिए मुंबई ले जाया गया, जहां उसका ऑपरेशन हुआ। हालांकि मार्च के तीसरे सप्ताह में फिर उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। 21 मार्च को माता-पिता बच्ची को आध्यात्मिक गुरु मुनिश्री राजेश महाराज के पास लेकर गए, जिन्होंने बच्ची की स्थिति को देखते हुए संथारा विधि संपन्न कराने की सलाह दी। गुरुजी, माता-पिता और परिजनों की सहमति से वियाना ने संथारा लिया और विधि पूरी होने के 10 मिनट बाद उसकी मृत्यु हो गई।
क्या है संथारा या सल्लेखना?
संथारा एक जैन धार्मिक परंपरा है, जिसे संलेखना या समाधिमरण भी कहा जाता है। यह स्वेच्छा से अन्न-जल का त्याग करके अपनी मृत्यु को स्वीकार करने की प्रक्रिया है।