प्रयागराज: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई ने शनिवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने देश को एक ऐसा संविधान दिया जो हर नागरिक को न्याय, समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब का मानना था कि न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए, क्योंकि न्याय की स्वतंत्रता ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने यह भी कहा कि पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में क्या हुआ? यह हम सबने देखा है। वहां लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी का परिणाम आज साफ दिखता है, लेकिन भारत की सबसे बड़ी ताकत हमारा संविधान है। इसने हमें स्थिरता दी है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में 'कांस्टीट्यूशन एंड कांस्टीट्यूशनलिज्म : द फिलोस्फी ऑफ डॉ. बीआर अंबेडकर' विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया था।
सेमिनार में मुख्य अतिथिसेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे चीफ जस्टिस ने कहा कि पिछले 75 सालों में न्यायपालिका ने कई ऐसे अधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी, जिन्हें संविधान निर्माताओं ने प्रारंभ में मौलिक अधिकार नहीं माना था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने का नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। इसमें भोजन, वस्त्र, आश्रय, स्वच्छ पर्यावरण, शिक्षा, चिकित्सा और सम्मानजनक जीवन शामिल है।
संविधान पर रहा फोकससीजेआई का संबोधन पूरी तरह से संविधान पर फोकस रहा। उन्होंने संविधान को एक अहिंसक क्रांति का दस्तावेज करार दिया। चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान के भाग-4 नीति निदेशक तत्व का उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय स्थापित करना है। यह संविधान को अहिंसक क्रांति का हथियार बनाता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि शुरुआती वर्षों में अदालतें मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता देती थीं, लेकिन केशवानंद भारती केस (1973) ने यह स्पष्ट किया कि दोनों के बीच संतुलन जरूरी है।
चीफ जस्टिस ने बताया कि शंकर प्रसाद और गोलकनाथ केस के बाद न्यायपालिका ने यह माना कि संसद की संशोधन शक्ति सीमित है। संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता। उन्होंने केशवानंद भारती केस के महत्व का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संसद संविधान को संशोधित कर सकती है, लेकिन उसकी बुनियादी संरचना विधि का शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीय ढांचा को नहीं छू सकती।
संविधान के पहलुओं का जिक्रसंबोधन चीफ जस्टिस संविधान के विस्तारित पहलुओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व एक-दूसरे के पूरक हैं। सीजेआई ने कहा कि संविधान के दो पहिए हैं, मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व। यदि एक भी रुकेगा तो संविधान की गाड़ी नहीं चलेगी। सामाजिक न्याय की दिशा में कानूनों का संरक्षण मिलने की बात कही। उन्होंने कहा कि यदि कोई कानून नीति निदेशक तत्वों में निहित सामाजिक न्याय को पूरा करता है, तो उसे संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए।
चीफ जस्टिस न संविधान को भारत की सबसे बड़ी ताकत बताया। उन्होंने कहा कि भारत के पास संविधान है, यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। इसने हमें विविधता में एकता दी और राष्ट्र को स्थायित्व प्रदान किया। सेमिनार से पहले चीफ जस्टिस ने साइंस फैकल्टी की नई इमारत, केमिस्ट्री बिल्डिंग, लेक्चर थिएटर कॉम्प्लेक्स और नई लाइब्रेरी बिल्डिंग का उद्घाटन किया।
प्रयागराज की चर्चाचीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि प्रयागराज राजनीति, सामाजिक आंदोलन और शिक्षा का संगम है। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव की अनुशासित कार्यशैली की उन्होंने प्रशंसा की। सेमिनार में जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि संविधान केवल दस्तावेज नहीं, परिवर्तन का माध्यम है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने जो संविधान बनाया, वह केवल कानून की किताब नहीं बल्कि सामाजिक समानता और न्याय का सशक्त प्रतीक है।
जस्टिस नाथ ने कहा कि हमें संविधान को दस्तावेज नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन का साधन मानना चाहिए। यह वर्ग, जाति और लिंग पर आधारित असमानताओं को समाप्त करने की दिशा दिखाता है। उन्होंने सीजेआई को डॉ. अंबेडकर के सपनों का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि उनका करियर संविधान की गहरी समझ, नियमों के प्रति सम्मान और मानवीय संवेदना का उदाहरण है।
कौशांबी दौरे पर भी चीफ जस्टिसचीफ जस्टिस बीआर गवई प्रयागराज पहुंचने के बाद शाम को कौशांबी भी गए, जहां वे जस्टिस विक्रम नाथ के निमंत्रण पर मूरतगंज स्थित माहेश्वरी प्रसाद इंटर कॉलेज के वार्षिकोत्सव में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने छात्रों से संवाद किया और उन्हें संविधान के मूल्यों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि भगवान राम और महात्मा बुद्ध के आदर्शों पर चलकर ही देश और समाज आगे बढ़ सकता है। कौशांबी महात्मा बुद्ध की धरती है। पूरी दुनिया में विजय हासिल करने के बाद सम्राट अशोक ने युद्ध नहीं बुद्ध का मार्ग अपनाया था।
जस्टिस गवई ने कहा कि कौशांबी की धरती महात्मा बुद्ध के कार्य के लिए पूरे विश्व में जानी जाती है। महात्मा बुद्ध ने पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा का संदेश दिया। आदमी कितनी भी बड़ा हो जाए उसे अपनी संस्कृति और परंपरा को नहीं छोड़ना चाहिए। अपनी धरती से जुड़े रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें यहां आने के लिए कई साल पहले भी मौका मिला था, लेकिन उन्होंने कहा था कि सीजेआई बनने के बाद ही यहां आउंगा। आज संकल्प पूरा हो गया है।
सेमिनार में मुख्य अतिथिसेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे चीफ जस्टिस ने कहा कि पिछले 75 सालों में न्यायपालिका ने कई ऐसे अधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी, जिन्हें संविधान निर्माताओं ने प्रारंभ में मौलिक अधिकार नहीं माना था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने का नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। इसमें भोजन, वस्त्र, आश्रय, स्वच्छ पर्यावरण, शिक्षा, चिकित्सा और सम्मानजनक जीवन शामिल है।
संविधान पर रहा फोकससीजेआई का संबोधन पूरी तरह से संविधान पर फोकस रहा। उन्होंने संविधान को एक अहिंसक क्रांति का दस्तावेज करार दिया। चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान के भाग-4 नीति निदेशक तत्व का उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय स्थापित करना है। यह संविधान को अहिंसक क्रांति का हथियार बनाता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि शुरुआती वर्षों में अदालतें मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता देती थीं, लेकिन केशवानंद भारती केस (1973) ने यह स्पष्ट किया कि दोनों के बीच संतुलन जरूरी है।
चीफ जस्टिस ने बताया कि शंकर प्रसाद और गोलकनाथ केस के बाद न्यायपालिका ने यह माना कि संसद की संशोधन शक्ति सीमित है। संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता। उन्होंने केशवानंद भारती केस के महत्व का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संसद संविधान को संशोधित कर सकती है, लेकिन उसकी बुनियादी संरचना विधि का शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीय ढांचा को नहीं छू सकती।
संविधान के पहलुओं का जिक्रसंबोधन चीफ जस्टिस संविधान के विस्तारित पहलुओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व एक-दूसरे के पूरक हैं। सीजेआई ने कहा कि संविधान के दो पहिए हैं, मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व। यदि एक भी रुकेगा तो संविधान की गाड़ी नहीं चलेगी। सामाजिक न्याय की दिशा में कानूनों का संरक्षण मिलने की बात कही। उन्होंने कहा कि यदि कोई कानून नीति निदेशक तत्वों में निहित सामाजिक न्याय को पूरा करता है, तो उसे संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए।
चीफ जस्टिस न संविधान को भारत की सबसे बड़ी ताकत बताया। उन्होंने कहा कि भारत के पास संविधान है, यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। इसने हमें विविधता में एकता दी और राष्ट्र को स्थायित्व प्रदान किया। सेमिनार से पहले चीफ जस्टिस ने साइंस फैकल्टी की नई इमारत, केमिस्ट्री बिल्डिंग, लेक्चर थिएटर कॉम्प्लेक्स और नई लाइब्रेरी बिल्डिंग का उद्घाटन किया।
प्रयागराज की चर्चाचीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि प्रयागराज राजनीति, सामाजिक आंदोलन और शिक्षा का संगम है। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव की अनुशासित कार्यशैली की उन्होंने प्रशंसा की। सेमिनार में जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि संविधान केवल दस्तावेज नहीं, परिवर्तन का माध्यम है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने जो संविधान बनाया, वह केवल कानून की किताब नहीं बल्कि सामाजिक समानता और न्याय का सशक्त प्रतीक है।
जस्टिस नाथ ने कहा कि हमें संविधान को दस्तावेज नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन का साधन मानना चाहिए। यह वर्ग, जाति और लिंग पर आधारित असमानताओं को समाप्त करने की दिशा दिखाता है। उन्होंने सीजेआई को डॉ. अंबेडकर के सपनों का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि उनका करियर संविधान की गहरी समझ, नियमों के प्रति सम्मान और मानवीय संवेदना का उदाहरण है।
कौशांबी दौरे पर भी चीफ जस्टिसचीफ जस्टिस बीआर गवई प्रयागराज पहुंचने के बाद शाम को कौशांबी भी गए, जहां वे जस्टिस विक्रम नाथ के निमंत्रण पर मूरतगंज स्थित माहेश्वरी प्रसाद इंटर कॉलेज के वार्षिकोत्सव में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने छात्रों से संवाद किया और उन्हें संविधान के मूल्यों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि भगवान राम और महात्मा बुद्ध के आदर्शों पर चलकर ही देश और समाज आगे बढ़ सकता है। कौशांबी महात्मा बुद्ध की धरती है। पूरी दुनिया में विजय हासिल करने के बाद सम्राट अशोक ने युद्ध नहीं बुद्ध का मार्ग अपनाया था।
जस्टिस गवई ने कहा कि कौशांबी की धरती महात्मा बुद्ध के कार्य के लिए पूरे विश्व में जानी जाती है। महात्मा बुद्ध ने पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा का संदेश दिया। आदमी कितनी भी बड़ा हो जाए उसे अपनी संस्कृति और परंपरा को नहीं छोड़ना चाहिए। अपनी धरती से जुड़े रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें यहां आने के लिए कई साल पहले भी मौका मिला था, लेकिन उन्होंने कहा था कि सीजेआई बनने के बाद ही यहां आउंगा। आज संकल्प पूरा हो गया है।
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