नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत हैं। जून में खुदरा और थोक दोनों ही स्तरों पर महंगाई में भारी गिरावट दर्ज की गई है। ये आंकड़े अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत हैं। खुदरा महंगाई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक - CPI पर आधारित) छह साल से भी ज्यादा के निचले स्तर 2.1 फीसदी पर आ गई है। वहीं, थोक महंगाई दर (थोक मूल्य सूचकांक - WPI पर आधारित) शून्य से नीचे 0.13 फीसदी पर पहुंच गई है। यह एक साथ आई दोहरी गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई सकारात्मक मायने रखती है।
खुदरा महंगाई का 2.1 फीसदी पर आना जनवरी 2019 के बाद का सबसे निचला स्तर है (तब यह 1.97 फीसदी थी)। यह आंकड़ा मई के 2.82 फीसदी और पिछले साल जून 2024 के 5.08 फीसदी से काफी कम है। इस गिरावट का सीधा मतलब है कि आम उपभोक्ताओं के लिए रोजमर्रा की वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम हो रही हैं।
खाने-पीने की चीजों के दामों में बड़ी गिरावट
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार, इस गिरावट की मुख्य वजह सब्जियों (जून में 22.65% की गिरावट), दालों, मांस और मछली, अनाज, चीनी, दूध और उसके उत्पादों तथा मसालों सहित खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी रही है। यह सीधे तौर पर परिवारों के बजट पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
CPI आधारित महंगाई के आंकड़े
इसी तरह थोक महंगाई दर का शून्य से नीचे 0.13 फीसदी पर आना इस साल का पहला मौका है। यह पिछले 14 महीनों का सबसे निचला स्तर है। इसे अपस्फीति यानी डिफ्लेशन की स्थिति कहा जाता है, जहां थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतें कम हो रही हैं।
उद्योग मंत्रालय ने बताया कि यह कमी मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, मूल धातुओं की मैन्यूफैक्चरिंग, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में नरमी के कारण हुई है। इससे उत्पादकों के लिए इनपुट लागत कम होगी। इससे कंपनियों का प्रॉफिट मार्जिन बढ़ने के साथ उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
अलग-अलग WPI कम्पोनेंट में महंगाई (जून 2025 बनाम मई 2025)
ईंधन और बिजली में भी जून में 2.65 फीसदी की गिरावट आई। जबकि मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादों की महंगाई दर 1.97 फीसदी रही। यह भी उत्पादन लागत को कम करने में सहायक होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक के लिए बड़ी राहतआरबीआई अपनी मौद्रिक नीति तय करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई (CPI) को ध्यान में रखता है। दोनों प्रमुख महंगाई संकेतकों में इतनी बड़ी गिरावट आरबीआई को ब्याज दरों में आगे कटौती करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश प्रदान करती है। RBI ने पिछले महीने ही नीतिगत ब्याज दर में 0.50 फीसदी की कटौती करके उसे 5.50 फीसदी कर दिया था। वर्तमान आंकड़े इस बात की संभावना बढ़ाते हैं कि आने वाली मौद्रिक नीति समीक्षाओं में आरबीआई ब्याज दरों को और कम कर सकता है।
कम ब्याज दरें कर्ज को सस्ता बनाती हैं। इससे व्यवसायों के लिए निवेश करना और उपभोक्ताओं के लिए खर्च करना आसान हो जाता है। यह आर्थिक विकास को रफ्तार प्रदान कर सकता है।
महंगाई में यह व्यापक गिरावट अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता का संकेत है। यह न केवल उपभोक्ताओं और व्यवसायों को राहत देती है, बल्कि लंबी अवधि के आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार भी तैयार करती है। अनुकूल आधार प्रभाव और वस्तुओं की कीमतों में वास्तविक गिरावट का यह कॉम्बिनेशन अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक नजरिया प्रस्तुत करता है।
खुदरा महंगाई का 2.1 फीसदी पर आना जनवरी 2019 के बाद का सबसे निचला स्तर है (तब यह 1.97 फीसदी थी)। यह आंकड़ा मई के 2.82 फीसदी और पिछले साल जून 2024 के 5.08 फीसदी से काफी कम है। इस गिरावट का सीधा मतलब है कि आम उपभोक्ताओं के लिए रोजमर्रा की वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम हो रही हैं।
खाने-पीने की चीजों के दामों में बड़ी गिरावट
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार, इस गिरावट की मुख्य वजह सब्जियों (जून में 22.65% की गिरावट), दालों, मांस और मछली, अनाज, चीनी, दूध और उसके उत्पादों तथा मसालों सहित खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी रही है। यह सीधे तौर पर परिवारों के बजट पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
CPI आधारित महंगाई के आंकड़े
इसी तरह थोक महंगाई दर का शून्य से नीचे 0.13 फीसदी पर आना इस साल का पहला मौका है। यह पिछले 14 महीनों का सबसे निचला स्तर है। इसे अपस्फीति यानी डिफ्लेशन की स्थिति कहा जाता है, जहां थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतें कम हो रही हैं।
उद्योग मंत्रालय ने बताया कि यह कमी मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, मूल धातुओं की मैन्यूफैक्चरिंग, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में नरमी के कारण हुई है। इससे उत्पादकों के लिए इनपुट लागत कम होगी। इससे कंपनियों का प्रॉफिट मार्जिन बढ़ने के साथ उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
अलग-अलग WPI कम्पोनेंट में महंगाई (जून 2025 बनाम मई 2025)
ईंधन और बिजली में भी जून में 2.65 फीसदी की गिरावट आई। जबकि मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादों की महंगाई दर 1.97 फीसदी रही। यह भी उत्पादन लागत को कम करने में सहायक होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक के लिए बड़ी राहतआरबीआई अपनी मौद्रिक नीति तय करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई (CPI) को ध्यान में रखता है। दोनों प्रमुख महंगाई संकेतकों में इतनी बड़ी गिरावट आरबीआई को ब्याज दरों में आगे कटौती करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश प्रदान करती है। RBI ने पिछले महीने ही नीतिगत ब्याज दर में 0.50 फीसदी की कटौती करके उसे 5.50 फीसदी कर दिया था। वर्तमान आंकड़े इस बात की संभावना बढ़ाते हैं कि आने वाली मौद्रिक नीति समीक्षाओं में आरबीआई ब्याज दरों को और कम कर सकता है।
कम ब्याज दरें कर्ज को सस्ता बनाती हैं। इससे व्यवसायों के लिए निवेश करना और उपभोक्ताओं के लिए खर्च करना आसान हो जाता है। यह आर्थिक विकास को रफ्तार प्रदान कर सकता है।
महंगाई में यह व्यापक गिरावट अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता का संकेत है। यह न केवल उपभोक्ताओं और व्यवसायों को राहत देती है, बल्कि लंबी अवधि के आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार भी तैयार करती है। अनुकूल आधार प्रभाव और वस्तुओं की कीमतों में वास्तविक गिरावट का यह कॉम्बिनेशन अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक नजरिया प्रस्तुत करता है।
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