कहीं सहरा की हवा में गूंजता ‘ओ सनम’, तो कहीं रात की खामोशी में बसा ‘सफरनामा’, लकी अली का संगीत सिर्फ सुना नहीं जाता, महसूस किया जाता है। 'सुनो’, ‘सिफर’ और ‘अक्स’ से लेकर ‘ओ सनम’, ‘एक पल का जीना’ और ‘सफरनामा’ तक लकी अली का संगीत एक रूहानी एहसास ही नहीं, बल्कि लोगों के जख्मों पर मरहम-सा रहा है। 90 के दशक में इंडी पॉप के दौर में जिस फकीराना आवाज ने करोड़ों दिलों को दीवाना बनाया, उसकी रूहदारी आज भी कायम है। अपने गीतों के अलावा अपनी अभिनय अदायगी का जलवा बिखेर चुके लकी अली का संगीत उनकी जिंदगी की जद्दोजहद और आत्म मंथन से संवर गया, निखरता चला गया। इन दिनों लकी अली अपने बहुप्रतीक्षित RE:SOUND इंडिया टूर के साथ फिर से स्टेज पर लौटे हैं। इस टूर के दौरान, लकी अली दर्शकों को एक निजी और दिल से जुड़ा अनुभव देना चाहते हैं, अपनी यात्रा को फिर से जीते हुए, गीतों के पीछे की कहानियां साझा करते हुए और उस रिश्ते का जश्न मनाते हुए जो उनकी संगीत ने वर्षों में श्रोताओं के साथ बनाया है। नवभारत टाइम्स से इस बीच खास मुलाकात में वे परत दर परत जिंदगी के सफर पर बात करते हैं और फलसफे भरे अंदाज में कहते हैं, 'जब तक ज़िंदा हूं, किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सकता'
एयरपोर्ट पर पिता को देखकर चिल्लाया, 'महमूद'
लकी अली अपने बचपन को याद करते हुए मुस्कराते हैं, कहते हैं, 'बहुत छोटी उम्र में मुझे मसूरी के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया था, तब मैं मुश्किल से ढाई साल का था। छुट्टियों में डेढ़ महीने के लिए घर आता था। एक बार बाबा (पिता महमूद) ने मुझे एक मजेदार किस्सा सुनाया। हुआ यूं कि जब मैं पहली बार स्कूल से लौटा, तो दादा मुझे लेने आए थे। रास्ते में उन्होंने अब्बा की एक तस्वीर दिखाई, फिल्म ‘छोटी बहन’ की। एयरपोर्ट पर जब हम उतरे, तो पूरा परिवार लेने आया था, लेकिन मैं सबको भूल चुका था। जैसे ही मेरे वालिद नजर आए, मैंने जोर से चिल्लाकर कहा, ‘महमूद!’ (हंसते हुए)।'
'किशोर दा, पंचम दा, घर आते थे, गीत-संगीत का माहौल था'
वो आगे बताते हैं, 'बड़ा हुआ तो अब्बा के शूटिंग सेट्स पर जाने लगा। छुट्टियां मां के साथ बीततीं, और घर में हर वक्त संगीत का माहौल रहता। बाबा के दोस्त, किशोर दा, पंचम दा जैसे दिग्गज अक्सर घर आते। गीत-संगीत और फिल्मों पर रचनात्मक बहस चलती रहतीं। बाबा खुद भी निर्देशन और निर्माण करते थे, तो घर हमारे लिए एक छोटा-सा फिल्म स्कूल जैसा था।'
'अब्बा से बातें छुपाता था, वो पकड़ लेते थे, खूब पिटाई होती थी'
आम तौर पर देखा गया है कि एक उम्र तक लड़का अपने पिता से थोड़ा एंटी होता है। फिर वक्त के साथ उन्हें समझने लगता है। लकी बताते हैं, 'बाबा थोड़े ओल्ड स्कूल थे, बेहद सादे, लेकिन सख्त। हम बच्चे कॉम्प्लिकेटेड थे। स्कूल का पीयर प्रेशर, सिगरेट, बातें छुपाना… मैं बहुत चीजें अब्बा से छुपाता था। स्कूल बंक करता था और हर बार पकड़ा भी जाता था। फिर खूब पिटाई होती थी (हंसते हैं)। मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था और मैं बागी बन गया था। बाबा मुंबई में रहते थे, मैं मां के साथ बेंगलुरु में।'
तेरह साल की उम्र में घर से भागा, तो खुद को अकेला पाया
सिंगर ने आगे बताया, 'बोर्डिंग स्कूल ने मुझे खुदमुख्तार बना दिया था। मुझे लगता था कि मैं जो चाहूं कर सकता हूं। एक बार मैं घर से भागने की कोशिश कर रहा था, तो वालिद ने पकड़ लिया। उन्होंने पूछा- कहां जा रहे हो? मैंने कहा, घर से भाग रहा हूं। इस पर वो बोले कि ठीक है, मैं छोड़ देता हूं। वो मुझे बेंगलुरु के बेकरी सर्कल ले गए, जहां से रास्ते मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरू की तरफ जाते थे। बोले- अब जा, जहां जाना है। मैं तब सिर्फ तेरह साल का था। हाईवे पर पैदल चल रहा था, सोचता जा रहा था, मुंबई कैसे जाऊं? तभी एक बुजुर्ग सरदार मिले। मैंने कहा मुझे मुंबई जाना है। उन्होंने पूछा कि क्यों जाना है? मैंने कहा कि घर से भाग आया हूं। उन्होंने मेरी मां को फोन लगाया और मुझे वापस घर छोड़ दिया। उस वक्त पहली बार अहसास हुआ कि मैं इस दुनिया में अकेला हूं। वहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई, संगीत और लिखने की तरफ।'
'मुझे लगा बॉलीवुड में मेरे लिए कुछ बचा ही नहीं है'
लकी अली की रूहानी आवाज और विद्रोही अंदाज उनकी जिंदगी के संघर्षों से ही निकला है। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब लकी अचानक गायब हो गए। वो बताते हैं, 'बीच में मैंने फिल्में भी कीं, गाने भी गाए, लेकिन एक समय ऐसा आया जब मुझे समझ नहीं आया कि आगे क्या करूं। मैं अपने तरीके से गाना चाहता था। ‘ओ सनम’ भी उसी आजादी की तलाश का नतीजा था। 2015 में मैंने इंडस्ट्री से दूरी बना ली। हां, मेरे साथ बदतमीजी हुई थी, लेकिन मैं इंडस्ट्री की टॉक्सिसिटी से भागा नहीं था, बस ऊब गया था। बाबा (महमूद) के गुजरने के बाद मुझे लगा, वहां अब कुछ बचा नहीं है। न कोई दोस्त था, न कोई अपनापन। हां, श्याम बेनेगल साहब के साथ ‘त्रिकाल’ और भारत एक खोज’ की। नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, ओम पुरी जैसे कलाकारों से बहुत कुछ सीखा। कुछ अरसे बाद मैंने फिर से संगीत की ओर रुख किया, अपने लेबल, अपने अंदाज में। मेरे लिए कोई कॉम्पिटिशन नहीं था। मैंने समझ लिया कि अगर आप सच्चा और अच्छा काम करेंगे, तो लोग सुनेंगे और अगर बकवास करेंगे, तो वे आपको खारिज कर देंगे।'
'मिनी स्ट्रोक के बाद सेहत को लेकर जागरूक हो गया'
बीते दिनों लकी अली को बीमारी ने भी घेरा। बकौल लकी, 'कोविड के बाद लगातार ट्रैवलिंग और कॉन्सर्ट्स से स्ट्रेस बहुत बढ़ गया था। आराम की जरूरत थी, पर वक्त नहीं मिला। नतीजा, TIA, एक मिनी स्ट्रोक। उस वक्त बहुत डर गया था, लेकिन उसी डर ने मुझे हेल्थ के प्रति जागरूक बना दिया। समझ आया कि जब मन मजबूत होगा, तभी तन स्वस्थ रहेगा। स्ट्रेस एक ऐसा राक्षस है, जो काबू में न लिया जाए, तो अंदर से खा जाता है। कई बार स्ट्रेस बाहर से नहीं, हमारे रिएक्शन से पैदा होता है। इंसान गलतियां करता है, लेकिन उन्हें दोहराना बेवकूफी है। अब मैं नमाज पढ़कर, माफी मांगकर और बैलेंस बनाकर सुकून ढूंढता हूं, क्योंकि असली राहत वहीं है।'
तीन-तीन शादियां, मगर रिश्ते आज भी जिंदा हैं
'जरूरी नहीं कि जिसके साथ जिंदगी शुरू करें, उसी के साथ खत्म भी करें।' अपनी तीन शादियों के कारण चर्चा में रहे लकी समझाते हैं, 'मेरी शादियां विदेशों में हुईं, हालात भी अलग थे। बाबा (महमूद) ने भी इंटरनेशनल शादी की थी, तो घर का माहौल हमेशा ग्लोबल रहा। शादियां चली नहीं, पर रिश्ते अब भी जिंदा हैं। साथ नहीं रहते, मगर एक-दूसरे के लिए मौजूद हैं। बच्चों के लिए मैं हमेशा जिम्मेदार रहा हूं। मेरा मानना है कि बच्चों को प्यार और इज्जत देकर ही मिसाल कायम की जा सकती है, क्योंकि वो वही बनते हैं, जो अपने माता-पिता में देखते हैं।'
'मीना कुमारी मेरे लिए मां जैसी थीं'
इंडस्ट्री की ‘ट्रेजडी क्वीन’ कही जाने वाली महान अभिनेत्री मीना कुमारी, लकी अली की मौसी थीं। वो याद करते हैं, 'मेरे लिए वो मां जैसी थीं, बेहद ममता भरी और मजबूत। वो हमेशा हमारे परिवार के साथ खड़ी रहीं और मां के बहुत करीब थीं। मैं उन्हें देखने के लिए स्कूल बंक कर भाग जाया करता था। जब उनकी तबीयत खराब होती, तो चोरी-छिपे पहुंच जाता, मगर वो मुस्कुराकर कहतीं, ‘जाओ, वापस स्कूल जाओ।’ वो मुझसे बहुत प्यार करती थीं।'
'कोई इंसान परफेक्ट नहीं होता, मुझसे भी गलतियां हुईं'
लकी अली 66 साल के हैं। उम्र के इस पड़ाव पर लाइफ लेसन्स के बारे में वो कहते हैं, 'कोई इंसान परफेक्ट नहीं होता, मुझसे भी गलतियां हुई हैं। कभी-कभी बिना सोचे-समझे रिएक्ट कर जाते हैं। मुझसे भी शायद एक बार एक बुजुर्ग (इशारा जावेद अख्तर की तरफ) के प्रति बदतमीजी हुई, जिसका मुझे अफसोस है। मौका मिला तो माफी जरूर मांगूंगा। जब कोई आपकी कम्युनिटी या दीन पर बार-बार बोलता है, तो बुरा लगता है, खासकर जब वो इतना बड़ा और जिम्मेदार शख्स हो। उसी रिएक्शन में मुझसे गलती हुई। मैंने कोई अपशब्द नहीं कहा, पर बात बढ़ा दी गई। अगर किसी को ठेस पहुंची हो, तो माफी चाहता हूं, मगर जिम्मेदारी सबकी बनती है।'
'जब तक जिंदा हूं, किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सकता'
अपनी रूहानी आवाज और गहराई से भरे गीतों के बलबूते पर लाखों दिलों को अपना बनाने वाले लकी कहते हैं, 'मुझे लगता है, अगर मैं आज जिंदा हूं तो किसी मुकाम पर नहीं पहुंचा हूं। इंसान तब पहुंचता है, जब उसका सफर खत्म हो जाता है, जब ऊपर हिसाब देना होता है कि क्या किया और क्या नहीं। हमारे बाद हमारा काम मायने रखता है। लोगों ने मुझे बेहिसाब मोहब्बत दी। मैं उनके जज्बातों से जुड़ सका और इससे बड़ी बात कोई नहीं। अगर मेरे गानों में आपको आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस होता है, तो वो मेरे अंदर के डर से आता है। मैं कभी कुदरत पर सवाल नहीं उठाता। बहुत लोग मेरे गानों को रोमांटिक मानते हैं, लेकिन असल में मैं मोहब्बत का फलसफा गाता हूं। मैंने जो भी लिखा या गाया है, आज भी उस पर यकीन रखता हूं और मुझे उस पर कोई शर्म नहीं।'
एयरपोर्ट पर पिता को देखकर चिल्लाया, 'महमूद'
लकी अली अपने बचपन को याद करते हुए मुस्कराते हैं, कहते हैं, 'बहुत छोटी उम्र में मुझे मसूरी के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया था, तब मैं मुश्किल से ढाई साल का था। छुट्टियों में डेढ़ महीने के लिए घर आता था। एक बार बाबा (पिता महमूद) ने मुझे एक मजेदार किस्सा सुनाया। हुआ यूं कि जब मैं पहली बार स्कूल से लौटा, तो दादा मुझे लेने आए थे। रास्ते में उन्होंने अब्बा की एक तस्वीर दिखाई, फिल्म ‘छोटी बहन’ की। एयरपोर्ट पर जब हम उतरे, तो पूरा परिवार लेने आया था, लेकिन मैं सबको भूल चुका था। जैसे ही मेरे वालिद नजर आए, मैंने जोर से चिल्लाकर कहा, ‘महमूद!’ (हंसते हुए)।'
'किशोर दा, पंचम दा, घर आते थे, गीत-संगीत का माहौल था'
वो आगे बताते हैं, 'बड़ा हुआ तो अब्बा के शूटिंग सेट्स पर जाने लगा। छुट्टियां मां के साथ बीततीं, और घर में हर वक्त संगीत का माहौल रहता। बाबा के दोस्त, किशोर दा, पंचम दा जैसे दिग्गज अक्सर घर आते। गीत-संगीत और फिल्मों पर रचनात्मक बहस चलती रहतीं। बाबा खुद भी निर्देशन और निर्माण करते थे, तो घर हमारे लिए एक छोटा-सा फिल्म स्कूल जैसा था।'
'अब्बा से बातें छुपाता था, वो पकड़ लेते थे, खूब पिटाई होती थी'
आम तौर पर देखा गया है कि एक उम्र तक लड़का अपने पिता से थोड़ा एंटी होता है। फिर वक्त के साथ उन्हें समझने लगता है। लकी बताते हैं, 'बाबा थोड़े ओल्ड स्कूल थे, बेहद सादे, लेकिन सख्त। हम बच्चे कॉम्प्लिकेटेड थे। स्कूल का पीयर प्रेशर, सिगरेट, बातें छुपाना… मैं बहुत चीजें अब्बा से छुपाता था। स्कूल बंक करता था और हर बार पकड़ा भी जाता था। फिर खूब पिटाई होती थी (हंसते हैं)। मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था और मैं बागी बन गया था। बाबा मुंबई में रहते थे, मैं मां के साथ बेंगलुरु में।'
तेरह साल की उम्र में घर से भागा, तो खुद को अकेला पाया
सिंगर ने आगे बताया, 'बोर्डिंग स्कूल ने मुझे खुदमुख्तार बना दिया था। मुझे लगता था कि मैं जो चाहूं कर सकता हूं। एक बार मैं घर से भागने की कोशिश कर रहा था, तो वालिद ने पकड़ लिया। उन्होंने पूछा- कहां जा रहे हो? मैंने कहा, घर से भाग रहा हूं। इस पर वो बोले कि ठीक है, मैं छोड़ देता हूं। वो मुझे बेंगलुरु के बेकरी सर्कल ले गए, जहां से रास्ते मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरू की तरफ जाते थे। बोले- अब जा, जहां जाना है। मैं तब सिर्फ तेरह साल का था। हाईवे पर पैदल चल रहा था, सोचता जा रहा था, मुंबई कैसे जाऊं? तभी एक बुजुर्ग सरदार मिले। मैंने कहा मुझे मुंबई जाना है। उन्होंने पूछा कि क्यों जाना है? मैंने कहा कि घर से भाग आया हूं। उन्होंने मेरी मां को फोन लगाया और मुझे वापस घर छोड़ दिया। उस वक्त पहली बार अहसास हुआ कि मैं इस दुनिया में अकेला हूं। वहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई, संगीत और लिखने की तरफ।'
'मुझे लगा बॉलीवुड में मेरे लिए कुछ बचा ही नहीं है'
लकी अली की रूहानी आवाज और विद्रोही अंदाज उनकी जिंदगी के संघर्षों से ही निकला है। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब लकी अचानक गायब हो गए। वो बताते हैं, 'बीच में मैंने फिल्में भी कीं, गाने भी गाए, लेकिन एक समय ऐसा आया जब मुझे समझ नहीं आया कि आगे क्या करूं। मैं अपने तरीके से गाना चाहता था। ‘ओ सनम’ भी उसी आजादी की तलाश का नतीजा था। 2015 में मैंने इंडस्ट्री से दूरी बना ली। हां, मेरे साथ बदतमीजी हुई थी, लेकिन मैं इंडस्ट्री की टॉक्सिसिटी से भागा नहीं था, बस ऊब गया था। बाबा (महमूद) के गुजरने के बाद मुझे लगा, वहां अब कुछ बचा नहीं है। न कोई दोस्त था, न कोई अपनापन। हां, श्याम बेनेगल साहब के साथ ‘त्रिकाल’ और भारत एक खोज’ की। नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, ओम पुरी जैसे कलाकारों से बहुत कुछ सीखा। कुछ अरसे बाद मैंने फिर से संगीत की ओर रुख किया, अपने लेबल, अपने अंदाज में। मेरे लिए कोई कॉम्पिटिशन नहीं था। मैंने समझ लिया कि अगर आप सच्चा और अच्छा काम करेंगे, तो लोग सुनेंगे और अगर बकवास करेंगे, तो वे आपको खारिज कर देंगे।'
'मिनी स्ट्रोक के बाद सेहत को लेकर जागरूक हो गया'
बीते दिनों लकी अली को बीमारी ने भी घेरा। बकौल लकी, 'कोविड के बाद लगातार ट्रैवलिंग और कॉन्सर्ट्स से स्ट्रेस बहुत बढ़ गया था। आराम की जरूरत थी, पर वक्त नहीं मिला। नतीजा, TIA, एक मिनी स्ट्रोक। उस वक्त बहुत डर गया था, लेकिन उसी डर ने मुझे हेल्थ के प्रति जागरूक बना दिया। समझ आया कि जब मन मजबूत होगा, तभी तन स्वस्थ रहेगा। स्ट्रेस एक ऐसा राक्षस है, जो काबू में न लिया जाए, तो अंदर से खा जाता है। कई बार स्ट्रेस बाहर से नहीं, हमारे रिएक्शन से पैदा होता है। इंसान गलतियां करता है, लेकिन उन्हें दोहराना बेवकूफी है। अब मैं नमाज पढ़कर, माफी मांगकर और बैलेंस बनाकर सुकून ढूंढता हूं, क्योंकि असली राहत वहीं है।'
तीन-तीन शादियां, मगर रिश्ते आज भी जिंदा हैं
'जरूरी नहीं कि जिसके साथ जिंदगी शुरू करें, उसी के साथ खत्म भी करें।' अपनी तीन शादियों के कारण चर्चा में रहे लकी समझाते हैं, 'मेरी शादियां विदेशों में हुईं, हालात भी अलग थे। बाबा (महमूद) ने भी इंटरनेशनल शादी की थी, तो घर का माहौल हमेशा ग्लोबल रहा। शादियां चली नहीं, पर रिश्ते अब भी जिंदा हैं। साथ नहीं रहते, मगर एक-दूसरे के लिए मौजूद हैं। बच्चों के लिए मैं हमेशा जिम्मेदार रहा हूं। मेरा मानना है कि बच्चों को प्यार और इज्जत देकर ही मिसाल कायम की जा सकती है, क्योंकि वो वही बनते हैं, जो अपने माता-पिता में देखते हैं।'
'मीना कुमारी मेरे लिए मां जैसी थीं'
इंडस्ट्री की ‘ट्रेजडी क्वीन’ कही जाने वाली महान अभिनेत्री मीना कुमारी, लकी अली की मौसी थीं। वो याद करते हैं, 'मेरे लिए वो मां जैसी थीं, बेहद ममता भरी और मजबूत। वो हमेशा हमारे परिवार के साथ खड़ी रहीं और मां के बहुत करीब थीं। मैं उन्हें देखने के लिए स्कूल बंक कर भाग जाया करता था। जब उनकी तबीयत खराब होती, तो चोरी-छिपे पहुंच जाता, मगर वो मुस्कुराकर कहतीं, ‘जाओ, वापस स्कूल जाओ।’ वो मुझसे बहुत प्यार करती थीं।'
'कोई इंसान परफेक्ट नहीं होता, मुझसे भी गलतियां हुईं'
लकी अली 66 साल के हैं। उम्र के इस पड़ाव पर लाइफ लेसन्स के बारे में वो कहते हैं, 'कोई इंसान परफेक्ट नहीं होता, मुझसे भी गलतियां हुई हैं। कभी-कभी बिना सोचे-समझे रिएक्ट कर जाते हैं। मुझसे भी शायद एक बार एक बुजुर्ग (इशारा जावेद अख्तर की तरफ) के प्रति बदतमीजी हुई, जिसका मुझे अफसोस है। मौका मिला तो माफी जरूर मांगूंगा। जब कोई आपकी कम्युनिटी या दीन पर बार-बार बोलता है, तो बुरा लगता है, खासकर जब वो इतना बड़ा और जिम्मेदार शख्स हो। उसी रिएक्शन में मुझसे गलती हुई। मैंने कोई अपशब्द नहीं कहा, पर बात बढ़ा दी गई। अगर किसी को ठेस पहुंची हो, तो माफी चाहता हूं, मगर जिम्मेदारी सबकी बनती है।'
'जब तक जिंदा हूं, किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सकता'
अपनी रूहानी आवाज और गहराई से भरे गीतों के बलबूते पर लाखों दिलों को अपना बनाने वाले लकी कहते हैं, 'मुझे लगता है, अगर मैं आज जिंदा हूं तो किसी मुकाम पर नहीं पहुंचा हूं। इंसान तब पहुंचता है, जब उसका सफर खत्म हो जाता है, जब ऊपर हिसाब देना होता है कि क्या किया और क्या नहीं। हमारे बाद हमारा काम मायने रखता है। लोगों ने मुझे बेहिसाब मोहब्बत दी। मैं उनके जज्बातों से जुड़ सका और इससे बड़ी बात कोई नहीं। अगर मेरे गानों में आपको आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस होता है, तो वो मेरे अंदर के डर से आता है। मैं कभी कुदरत पर सवाल नहीं उठाता। बहुत लोग मेरे गानों को रोमांटिक मानते हैं, लेकिन असल में मैं मोहब्बत का फलसफा गाता हूं। मैंने जो भी लिखा या गाया है, आज भी उस पर यकीन रखता हूं और मुझे उस पर कोई शर्म नहीं।'
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