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पाकिस्तान के पास अब कोई कवच नहीं बचा, ऑपरेशन सिंदूर के बाद और क्या बोले रक्षा विशेषज्ञ

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नई दिल्लीः ड्रोन तकनीक ने आधुनिक युद्धों में एक नया आयाम जोड़ दिया है। यह रूस-यूक्रेन युद्ध में देखा गया, जो अभी भी चल रहा है। हूती विद्रोहियों ने इस क्षमता का काफी प्रभावी ढंग से अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल किया है। ड्रोन राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के लिए अधिक खतरा पैदा करते हैं। सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के डायरेक्टर कोमोडोर (रि.) चित्रापु उदय भास्कर सुरक्षा और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने नौसेना में अपनी सेवाएं दी हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान में जारी तनाव के बीच NBT के राहुल पाण्डेय ने उनसे बात की। पेश हैं बातचीत के अहम अंश : सवालः ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद के खिलाफ एक सैन्य कार्रवाई थी। लेकिन उसके बाद जो हो रहा है, उस पर आप क्या कहेंगे? उदय भास्करः ऑपरेशन सिंदूर के बाद धीरे-धीरे सैन्य तनाव बढ़ रहा है। भारत का उद्देश्य सीमित था- पहलगाम आतंकवादी नरसंहार के अपराधियों को सजा देना। साथ ही ऐसे और हमले को रोकना। इसलिए पहले नौ ठिकानों को चुना गया, जो पाकिस्तान में आतंकवादी ढांचे से जुड़े थे। बहावलपुर और मुरीदके लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को पनाह देने के लिए कुख्यात हैं। हालांकि, पाकिस्तान ने गुजरात से कश्मीर तक भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर तनाव बढ़ाने का फैसला किया। इस तरह, रावलपिंडी ने पहलगाम की घटना पर भारत की प्रतिक्रिया - जो आतंकवाद तक सीमित, संयमित और सटीक थी, उसके दायरे को बढ़ा दिया। सवालः पाकिस्तान ने LoC पर गोलीबारी शुरू की, फिर ड्रोन और मिसाइल अटैक किया। क्या यह माना जाए कि वह पुराने पैटर्न पर ही आगे बढ़ रहा है? उदय भास्करः हां, यह एक पैटर्न है जिसमें पाकिस्तान पिछले 30 सालों से जिहादी आतंकवादी विचारधारा का इस्तेमाल करके भारत के खिलाफ छद्म युद्ध लड़ रहा है। पाकिस्तानी सेना LoC के पार गोलीबारी करती है ताकि जिहादी आतंकी समूह भारत में घुस सकें, खासकर जम्मू-कश्मीर में। फिर वे हमले कर सकें, जैसा हमने मुंबई में 2008, उरी में 2016, पुलवामा में 2019 और अब पहलगाम में देखा। कभी-कभी वे स्थानीय भारतीय नागरिकों को भर्ती करने में सफल हो जाते हैं, जो गलत कारणों से अपने देश के खिलाफ हथियार उठा लेते हैं। कुछ लोग नशे और हथियारों की तस्करी की वजह से इसमें शामिल हो जाते हैं। ये अटकलें हैं कि वर्तमान पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल मुनीर, जनरल जिया-उल-हक की तरह बहुत धार्मिक हैं और उनके पास लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों के लिए काफी समय और सहानुभूति है। जनरल मुनीर ISI के डीजी भी रह चुके हैं, इसलिए आतंक के जरिए भारत के खिलाफ एक बड़ी रणनीति की आशंका काफी ज्यादा है। सवालः पाकिस्तान ने शिमला समझौते को निलंबित कर दिया। इसका क्या मतलब है? उदय भास्करः अगर पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते से पीछे हटने का फैसला किया है, तो ‘LoC की पवित्रता’ खत्म हो गई है। LoC को एक वास्तविक सीमा के रूप में देखा जाता था और हाल तक वहां सीजफायर लागू था। ऐसे में LoC पर अनिश्चितता की भावना और संभावित सैन्य कार्रवाई बढ़ सकती है, क्योंकि अब पाकिस्तान के पास कोई सुरक्षा कवच नहीं बचा है। सवालः जनरल मुनीर ने कश्मीर को पाकिस्तान की 'गले की नस' कहा। क्या यह पाकिस्तानी सेना की नीति में बदलाव का संकेत देता है? उदय भास्करः पाकिस्तान के नेता, सेना और भारत विरोधी कट्टरपंथी समूह हमेशा से कश्मीर को गले की नस कहते आए हैं। मुनीर का हालिया बयान भी उस धार्मिक विभाजन का हिस्सा था, जिसे उन्होंने पाकिस्तानी डायस्पोरा को दिए भाषण में उजागर किया कि हिंदू और मुस्लिम अलग-अलग राष्ट्र हैं। यह अगस्त 1947 की भावना और भारत की विविधता और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता के खिलाफ है। भारत को देश के अंदर हिंदू-मुस्लिम विभाजन को भड़काने के जाल में नहीं फंसना चाहिए। कश्मीर वह क्षेत्र है जहां इस प्रतिबद्धता और संकल्प को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना होगा। सवालः क्या ड्रोन तकनीक इस टकराव को एक नया आयाम दे रही है? भारत इसे कैसे रोक सकता है? उदय भास्करः हां, ड्रोन तकनीक ने आधुनिक युद्धों में एक नया आयाम जोड़ दिया है। यह रूस-यूक्रेन युद्ध में देखा गया, जो अभी भी चल रहा है। हूती विद्रोहियों ने इस क्षमता का काफी प्रभावी ढंग से अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल किया है। ड्रोन राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के लिए अधिक खतरा पैदा करते हैं। ये सीधे तौर पर या निगरानी के जरिए काफी व्यवधान पैदा कर सकते हैं। उनकी विनाशकारी क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि वे कौन सा हथियार ले जा रहे हैं। भारत को ड्रोन-रोधी क्षमताओं में निवेश करना होगा। हमारा ध्यान उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान और विकास पर होना चाहिए, साथ ही डिजाइन-निर्माण-तैनाती में तेजी लाने की जरूरत है। यूक्रेन ने इसे एक स्पष्ट तरीके से दिखाया है। सवालः क्या चीन इस तनाव का फायदा उठाकर भारत पर दबाव बढ़ाने की कोशिश कर सकता है? उदय भास्करः मेरी समझ से इस बात के आसार कम हैं कि चीन अपनी सेना और अन्य सैन्य संसाधनों का इस्तेमाल सीधे भारत के खिलाफ करेगा। हां, वह पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन देगा, जैसा उसने दशकों से किया है। 2019 में पुलवामा-बालाकोट और 2008 में मुंबई हमले को याद करें। चीन UNSC का एकमात्र स्थायी सदस्य था, जिसने तकनीकी आधार पर अपने वीटो का इस्तेमाल किया ताकि पाकिस्तान को वैश्विक निंदा से बचाया जा सके। बालाकोट की घटना डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के पहले कार्यकाल के दौरान हुई थी। सवालः भारत और पाकिस्तान के बीच बार-बार होने वाले इस तरह के तनाव को रोकने के लिए आप किन दीर्घकालिक रणनीतियों की सलाह देंगे, खासकर कश्मीर मुद्दे के संदर्भ में? उदय भास्करः पाकिस्तान के खिलाफ पारंपरिक प्रतिरोध को मजबूत करें। जहां संभव हो, आतंकी समूहों को सजा दें, शायद गुप्त तरीकों से और बातचीत को जारी रखें। मैं व्यक्तिगत रूप से दुलत (एएस दुलत, पूर्व रॉ प्रमुख) मॉडल का समर्थन करता हूं।
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