पंजाब नैशनल बैंक के साथ 13,500 करोड़ रुपये का लोन घोटाला करने के मुख्य आरोपी मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी भारत के बढ़ते वैश्विक दबदबे का सबूत है। मुंबई आतंकी हमले के गुनहगार तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद हाल में यह दूसरी बड़ी सफलता मिली है। हालांकि राणा की तरह चोकसी को भारत लाने की राह इतनी आसान नहीं होगी। असफल प्रयास: मेहुल और उसके भांजे नीरव मोदी ने भारतीय बैंकिंग सिस्टम की खामियों और अंदर तक फैले भ्रष्टाचार का फायदा उठाकर इतना बड़ा घोटाला किया और जब तक इसका पता चलता, सुरक्षा एजेंसियां उन तक पहुंचतीं, दोनों देश छोड़कर भाग चुके थे। जनवरी 2018 में उनके फरार होने से लेकर अभी तक -7 साल और करीब 4 महीने के दरम्यान दोनों को लेकर अलग-अलग खबरें आती रहीं। इस दौरान प्रत्यर्पण के कई प्रयास हुए, और अब भी चल रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली है। डोमिनिका में गलती: मेहुल और उसके वकीलों ने अभी तक अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों का अपने हिसाब से खूब दुरुपयोग किया है। मई 2021 में जब वह डोमिनिका में गिरफ्तार हुआ, तब भारतीय एजेसियां उसे वापस लाने के बिल्कुल करीब पहुंच गई थीं। लेकिन, उस समय भी उसने कानूनी पेचीदगियों का फायदा उठाया। तब उसकी तरफ से कहा गया था कि वह एंटीगुआ का नागरिक है और चूंकि एंटीगुआ व भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है, इसलिए उसे नई दिल्ली के हवाले नहीं किया जा सकता। उसका यह भी आरोप था कि भारतीय एजेंसियों के इशारे पर उसे एंटीगुआ से अगवा करके डोमिनिका लाया गया। इन्हीं पेच ने उसे बचा लिया था। सावधानी बरतनी होगी: बेल्जियम के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है, लेकिन डोमिनिका में जो हुआ, वह एक बार फिर भारत के सामने मुश्किलें खड़ी कर सकता है। तब चोकसी के आरोपों ने भारत के पक्ष को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर किया था। यहां तक कि बाद में इंटरपोल ने अपना रेड कॉर्नर नोटिस भी वापस ले लिया था। भरोसा दिलाना होगा: प्रत्यर्पण को लेकर यूरोपीय देशों का रवैया बेहद सख्त है। जब तक उन्हें तसल्ली न हो जाए कि आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलेगा, तब तक वे किसी को प्रत्यर्पित नहीं करते। मेहुल चोकसी के मामले में बेल्जियम को भरोसा दिलाना होगा कि उसका किया घोटाला बेहद गंभीर है, और उसे भारतीय कानूनों के अनुसार सजा जरूर मिलनी चाहिए। भारत को बेल्जियम के साथ अपने रिश्ते के प्रभाव का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकना चाहिए।
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