पटना: पहलगाम प्रकरण के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनातनी ने देश की राजनीति पर भी असर डाला है। देश की राजनीति दो धाराओं में बंटी नजर आती है। एक वर्ग सरकार का समर्थक बन गया है, तो दूसरा धुर विरोधी। पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई तो दोनों तबके की मांग रही है। हालांकि सत्ता समर्थक वर्ग सरकार के फैसले के साथ है, लेकिन सत्ता विरोधी समूह सीजफयर के फैसले से सरकार का कटु आलोचक बन गया है। विरोधी सरकार पर अमेरिका के दबाव में सीजफायर के लिए राजी होने का आरोप लगा रहे हैं। अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर के लिए दोनों देशों को रजामंद किया था। इसे सरकार विरोधी सरकार की कमजोरी मान रहे हैं। उनका तर्क है कि अमेरिका की सलाह को बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नहीं मानी थी, पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस बार अमेरिका के दबाव में आ गई। विपक्ष के तेवर से साफ लग रहा है कि वह इसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करेगा। खासकर पांच-छह महीने बाद होने वाले बिहर विधनसभा चुनाव में विपक्ष जरूर इसे रेखांकित करने का प्रयास करेगा। विपक्ष बनाएगा सीजफायर को हथियार नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्तासीन होने के बाद से ही विपक्ष उन्हें हटाने के लिए प्रयास करता रहा है। 2019 तक विपक्ष की दाल तो नहीं गली, लेकिन विपक्षी पार्टियों की एकजुटता ने 2024 में उन्हें कमजोर जरूर किया। कभी लोकसभा में 303 सीटों पर पहुंच चुकी भाजपा को 2024 में विपक्षी एकता के कारण 243 पर सिमट जाना पड़ा। सीजफायर की शर्त मान लेने के कारण नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने का मौका विपक्ष क मिल गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी के स्टैंड की तुलना होने लगी है। कहा जा रहा है कि इंदिरा ने पाकिस्तान के दो टुकड़े 1971 में करा दिए, लेकिन सरकार को विपक्ष के फ्री हैंड के बावजूद नरेंद्र मोदी वैसा कमाल नहीं दिखा सके। विपक्ष इस बात को लेकर जनता के बीच जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं। इसका कितना लाभ विपक्ष उठा पाता है, यह बिहार विधानसभा चुनाव में स्पष्ट हो जाएगा। एनडीए को भी उम्मीदभाजपा की लीडरशिप वाला एनडीए इससे निराश नहीं है। पाकिस्तान से तनातनी के कारण वोटर भी दो खेमों में बंट गए हैं। मतदाताओं का जो तबका एनडीए के साथ खड़ा दिखता है, उसे सीजफायर में भी नरेंद्र मोदी की कोई रणनीति नजर आती है। सीजफायर की जो शर्तें हैं, उसमें यह स्पष्ट कहा गया है कि पाकिस्तान ने अब कोई भी उकसावे वाली कार्रवाई की तो इसे युद्ध माना जाएगा। पाकिस्तान गोली चलाएगा तो भारत उसका जवाब गोला बरसा कर देगा। भाजपा नेताओं के ऐसे बयानों पर अब भी उसके समर्थकों को पूरा भरोसा है। भाजपा के सहयोगी दलों को भी इसका लाभ जरूर मिलेगा। इसलिए भाजपा को तेवर बरकरार रखने होंगे। पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज नहीं आया तो युद्ध की आशंका बरकरार है। भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान में घुस कर तीन दिनों के अंदर उसके 35-40 अफसरों और सैनिकों का सफाया कर दिया। पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को भारी नुकसान हुआ है। भाजपा लोगों को यह जरूर बताएगी। बिहार में किसे फायदा?बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन भाजपा को कठघरे में खड़ा करने की पूरी कोशिश करेगा। भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए भी इसे अपने अनुकूल बनाने की कोशिश करेगा। यहां एक बात साफ है कि पाकिस्तान को करारा जवाब देने के कारण पार्टी लाइन छोड़ कर लोग नरेंद्र मोदी सरकार के साथ जिस तरह खड़े दिखे, वह अगर वोटों में बदले तो एनडीए सब पर भारी पड़ जाएगा। हालांकि जातीय जकड़न में उलझे बिहार के लिए इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता। इसे कुंद करने के लिए केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने जाति गणना का दांव पहले ही चल दिया है।
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