By Jitendra Jangid- दोस्तो सावन का महीना हिंदुओं के लिए बहुत ही बड़ा और पवित्र महिना हैं, इस महीने में लोग भगवान शिव का आर्शिवाद पाने के लिए उनकी अलग अलग प्रथाओं से भक्ति करते हैं, यहाँ तक कि जो लोग नियमित रूप से मांसाहारी भोजन करते हैं, वे भी इस महीने में अक्सर इससे परहेज करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सावन में मांसाहारी भोजन क्यों नहीं खाया जाता? आइए इस प्रथा के पीछे के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारणों को समझते हैं-

वर्षा ऋतु का पाचन पर प्रभाव
सावन के दौरान, जो मानसून के मौसम के साथ मेल खाता है, हवा में नमी का स्तर काफी बढ़ जाता है।
यह मौसमी बदलाव पाचन तंत्र को कमजोर कर सकता है।
मांस और मछली जैसे मांसाहारी भोजन भारी होते हैं और पचने में अधिक समय लेते हैं, जिससे पेट पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ
सावन भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है और कई लोग इस दौरान सात्विक (शुद्ध शाकाहारी) जीवनशैली अपनाते हैं।
मांसाहार को तामसिक माना जाता है, जिससे आलस्य और आक्रामकता बढ़ती है—ऐसे गुण जो आध्यात्मिक साधना के दौरान हतोत्साहित किए जाते हैं।
लोग सादा, शाकाहारी भोजन करके और भोग-विलास से दूर रहकर तन और मन की पवित्रता बनाए रखना पसंद करते हैं।

स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी चिंताएँ
मानसून का मौसम जलजनित और खाद्य जनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ाता है।
अगर मछली और मांस को ठीक से संग्रहित न किया जाए, तो वे नम मौसम में जल्दी खराब हो सकते हैं, जिससे संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।
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