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सीबीएसई के 'शुगर बोर्ड' को मिला विशेषज्ञों का साथ, बोले- 'ये बच्चों के लिए बेहद जरूरी'

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नई दिल्ली, 27 मई . हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ के 122वें एपिसोड में स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड’ का जिक्र किया था. उन्होंने सीबीएसई की अनोखी पहल बताते हुए इसे बच्चों के लिए सकारात्मक प्रयास करार दिया था. पीएम मोदी से प्रशंसा पाने के बाद अब केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने सभी स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड्स’ लगाने का निर्देश दिया है. इस पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह बेहद जरूरी कदम है, जो दुनिया भर में लोगों को सेहतमंद खाने की ओर बढ़ावा देगा.

सीबीएसई ने पूरे भारत में 24,000 से ज्यादा स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड्स’ लगाने के निर्देश दिए हैं. इन बोर्ड्स पर आवश्यक जानकारी होगी, जैसे एक दिन में कितनी चीनी खानी चाहिए, सामान्य चीजों में कितनी चीनी होती है, स्वस्थ खाने के बेहतर विकल्प आदि.

‘शुगर बोर्ड्स’ को लेकर एम्स, नई दिल्ली के मेडिसिन प्रोफेसर डॉ. नवल विक्रम ने से बात की. उन्होंने कहा कि यह पहल बच्चों को यह सिखाने के लिए है कि ज्यादा चीनी खाना उनके लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है, जो बचपन में मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है. जब बच्चों को बताया जाएगा कि एक दिन में कितनी चीनी खानी चाहिए और खाने-पीने की चीजों में कितनी चीनी होती है, तो वे ज्यादा सचेत रहेंगे.

डॉक्टर ने कहा, “अगर इस पहल के साथ-साथ स्कूलों में वर्कशॉप्स कराई जाएं और माता-पिता को भी शामिल किया जाए, तो यह और ज्यादा असरदार होगा. यह सही समय पर उठाया गया कदम है जो बच्चों की सेहत को लेकर बहुत महत्वपूर्ण है. यह पहल दुनिया भर के पोषण से जुड़े लक्ष्यों के अनुरूप है. पहले टाइप-2 डायबिटीज सिर्फ बड़ों और बूढ़ों को ही होती थी. लेकिन अब यह बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही है.”

सीबीएसई ने स्कूल प्रिंसिपलों को लिखे पत्र में बताया कि पिछले 10 सालों में बच्चों में मोटापा और डायबिटीज बढ़ने का जो खतरा दिख रहा है, उसकी एक बड़ी वजह है – ज्यादा चीनी खाना. यह स्कूलों में स्नैक्स, टॉफी, चॉकलेट, बिस्किट जैसे खानों में आसानी से मिल जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि स्कूल इस बात पर ध्यान दें.

वहीं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण गुप्ता ने से कहा, “मैं कहूंगा कि यह कदम अच्छा है, लेकिन सेहत के लिहाज से गलत चीजें कम करने के लिए और भी बहुत कुछ करना होगा. जैसे कि उन चीजों पर चेतावनी लिखनी चाहिए और जिन उत्पादों में ज्यादा फैट, नमक और चीनी (एचएफएसएस) होती है, उनके विज्ञापन पर पाबंदी लगानी चाहिए. खासकर स्कूलों में, कैंटीन को पूरी तरह से एचएफएसएस मुक्त बनाना चाहिए.”

फिक्की स्वास्थ्य सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. हर्ष महाजन ने इस कदम को जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि यह पहल सही समय पर की गई है और इसकी बहुत जरूरत थी ताकि बच्चों की सेहत बेहतर हो सके. अब बहुत छोटी उम्र के बच्चों में भी ऐसी बीमारियां होने लगी हैं जो आमतौर पर बड़े लोगों को होती थीं. लेकिन चिंता की बात यह है कि कई बार ये बीमारियां जल्दी पता नहीं चल पातीं और जब तक पता चलता है, तब तक शरीर को बहुत नुकसान हो चुका होता है, जिसे ठीक करना मुश्किल होता है. इसलिए, बच्चों की सेहत को समझने के लिए कुछ जरूरी टेस्ट्स कराते रहें.

पीके/केआर

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