लंदन, 27 अक्टूबर . भारतीय अरबपति प्रशांत रुइया ब्रिटेन में मर्ज़ी नदी के किनारे हाइड्रोजन ईंधन आधारित एक नई रिफाइनरी बना रहे हैं, जो देश का पहला उत्सर्जन मुक्त संयंत्र होगा.
संडे टाइम्स बिजनेस की एक प्रोफाइल खबर के अनुसार, ब्रिटेन के उत्तर पश्चिमी इलाके के औद्योगिक केंद्र में एक इमारत की छत से देखने पर खेतों और धुआं उगलते रासायनिक संयंत्रों का दृश्य हमारे सामने फैला है. एक क्षितिज वेल्श की पहाड़ियां बनाती हैं और दूसरा मर्ज़ी नदी और कैमेल लेयर्ड शिपयार्ड.
चेशायर में एक शानदार दिन और भारतीय अरबपति प्रशांत रुइया का मूड शरद ऋतु की धूप की तरह खिला हुआ है. मेरे कंधे पर हाथ रखकर वह भाप उगलती पाइपों, आग उगलती चिमनियों और विशाल कूलिंग टावरों के बेतरतीब विस्तार की ओर इशारा करते हैं, जिनका संयोजन ब्रिटेन की दूसरी सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी स्टैनलो का निर्माण करते हैं.
उन्होंने नाटकीय ढंग से अपनी बाहें फैलाईं और मुस्कुराते हुए बोले, “यह सब बदल रहा है. हम पूरे उत्तर पश्चिम में उद्योग को डीकार्बोनाइज करने जा रहे हैं.”
रुइया (55) पारिवारिक औद्योगिक घराने एस्सार समूह के वंशज हैं, और इसके मुख्य कार्यकारी हैं. “रुइया ब्रदर्स” के नाम से विख्यात उनके पिता शशि और चाचा रवि द्वारा स्थापित इस समूह की उतार-चढ़ाव भरी किस्मत व्यवसाय की किंवदंती का हिस्सा है.
उन्होंने 2011 में शेल से स्टैनलो रिफाइनरी खरीदी थी, जब यह मरम्मत से गुजर रही थी और इसकी स्थिति काफी खराब थी. रुइया कहते हैं कि उन्होंने तब से इसमें एक अरब डॉलर का निवेश किया है, लेकिन यह अब भी स्पष्ट है कि ब्रिटेन के ईंधन का 16 प्रतिशत उत्पादन करने वाले 100 साल पुराने इस संयंत्र ने इससे अच्छे दिन देखे हैं. पाइप कई जगहों पर लीक करते हैं, जबकि कच्चे तेल को जेट ईंधन, डीजल और पेट्रोल में बदलने वाले इसके डिस्टिलेशन कॉलम आम तौर पर जंग खाए हुए और रंगहीन हैं. इसके बड़े हिस्से बंद हो चुके हैं और जंग खा रहे हैं.
हालांकि, करीब से देखने पर आप भविष्य देख सकते हैं और इसके बारे में रुइया का उत्साह भी. कुछ दूरी पर मचानों के जाल के बीच से एक बिल्कुल नई रिफाइनरी उभर रही है, इसके चमकदार चांदी के रंग के टावर पृष्ठभूमि में खड़े 1960 के दशक के एक अप्रयुक्त ढांचे के गहरे लाल रंग के जंग के बिल्कुल विपरीत दिख रहे हैं.
इसे हाइड्रोजन पर चलाने के लिए बनाया जा रहा है. यह ब्रिटेन की पहली रिफाइनरी होगी जो सीओ2-उत्सर्जन करने वाली गैस पर आधारित नहीं होगी.
रुइया कहते हैं, “और, यह तो बस शुरुआत है.” अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा और सरकार ने अपना समर्थन दिया, तो परिवार रिफाइनरी के अन्य हिस्सों के लिए कार्बन-कैप्चर तकनीक अपनाएगा, कार्बन को पंप करके अप्रयुक्त गैस क्षेत्रों में लिवरपूल खाड़ी के समुद्र तल के नीचे पहुंचा दिया जाएगा.
हालांकि, सबसे पहले एस्सार को हाइड्रोजन बनाने के लिए एक प्लांट बनाने की जरूरत है. रुइया कहते हैं कि इसमें “350 मेगावाट” उत्पादन क्षमता होगी. उनके दिमाग में हर विषयवस्तु के लिए एक संख्या है. सब कुछ ठीक रहा तो दूसरा हाइड्रोजन प्लांट भी बनाया जाएगा. रिफाइनरी के इस्तेमाल के बाद जो गैस बचेगी उसे पड़ोसी कारखानों, जैसे कि एन्सर्क बोतल बनाने वाले प्लांट में पाइप के जरिए भेजा जाएगा, ताकि उनके परिचालन को भी कार्बन मुक्त किया जा सके.
संक्षेप में, 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने की सरकार की जीबी एनर्जी योजना के तहत उत्तर-पश्चिम में रुइया और एस्सार की एनर्जी ट्रांजिशन इकाई (ईईटी) निजी क्षेत्र का महत्वपूर्ण प्रवर्तक है. वास्तव में, कुछ ही सप्ताह पहले, डाउनिंग स्ट्रीट से एक दल शहर में आया था और प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने इन परियोजनाओं तथा हंबरसाइड में ऐसे ही एक “क्लस्टर” के लिए 21.7 अरब पाउंड के सरकारी वित्तपोषण की घोषणा की थी.
रुइया कहते हैं, “ये दुनिया में इस आकार की प्रमुख परियोजनाएं हैं. आज कोई अन्य देश नहीं है जिसकी इस विषय पर नीति इतनी स्पष्ट हो और इतनी तेजी से आगे बढ़ रही हो. मुझे नहीं लगता कि ब्रिटेन ने जो कदम उठाए हैं उसके लिए उसे पर्याप्त श्रेय मिलता है.”
रुइया इतने आकर्षक और इतने प्रेरक कि उनसे प्रभावित न होना मुश्किल है. मेरी दादी होती तो कहतीं वह पेड़ों पर बैठे पक्षियों को भी आकर्षित कर सकते हैं.
अपनी कंपनी के ब्रांड वाले ऊनी कपड़े, चिनोज और डेजर्ट बूट में उन्हें देखकर आप आसानी से भूल सकते हैं कि वह एक अरबपति हैं, जिसके पास होटल के आकार का एक भव्य मेफेयर हवेली है. शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि वह 11 साल की उम्र से ही परिवार के निर्माण स्थलों, बंदरगाहों और कारखानों में साइट मैनेजरों और श्रमिकों के साथ घूमते रहे हैं.
उन्होंने बताया कि जब वह 16 साल के थे, तब उन्होंने पूरी तरह व्यवसाय में काम करना शुरू कर दिया था, और 17 साल के होते-होते वह अपना पहला प्रोजेक्ट चला रहे थे : मुंबई के उपनगरों में तीन किमी लंबे रेल पुल का निर्माण. उन्होंने समझाते हुए कहा, “वे आपको जिम्मेदारी देने से पहले आपके बड़े होने का इंतजार नहीं करते. आप खुद को गहरे पानी में पाते हैं.”
एक 17 वर्षीय व्यक्ति एक बड़ी सार्वजनिक अवसंरचना परियोजना चला रहा है? सच में? उन्होंने कहा, “बेशक, हमारे पास वहां अनुभवी लोग थे, लेकिन मैं मूलतः पूरे समय प्रोजेक्ट मैनेजर के साथ था. हम दो साल तक साइट पर दिन-रात रहे.”
उन्होंने कहा, “तो, हां, हमने इसे बनाया, और, हमें नुकसान हुआ.”
वास्तव में, काफी सारा पैसा : लगभग 2,50,000 डॉलर. लेकिन उन पर चिल्लाने की बजाय, उनके पिता खुश लग रहे थे: “उन्होंने कहा, ‘तुमने जो सीखा है उसे देखते हुए यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा घाटा है. जब नुकसान के बावजूद तुम कुछ मैनेज कर सकते हो, तभी तुम वास्तव में यह समझ पाते हो कि इसे कैसे मैनेज करना है.’ “और वे सही थे. मैं हर संभव प्रयास कर रहा था, पाई-पाई के लिए जूझ रहा था.”
रुइया उन सनकी-धनवान भारतीयों में हैं, जिन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में भारत की अत्यधिक नियंत्रित “लाइसेंस राज” अर्थव्यवस्था के उदार बनने के बाद अपनी किस्मत बनाई.
रुइया कहते हैं, “मैंने बदलाव होते देखा. बाजार खुलने के बाद हम एक परिवार के रूप में आगे बढ़े. हम इसके प्रत्यक्ष लाभार्थी थे.”
इससे पहले, उनका बचपन काफी साधारण, मध्यम वर्गीय जीवन जी रहा था. परिवार चेन्नई में रहता था, जिसे पहले मद्रास के नाम से जाना जाता था, भारत के पूर्वी तट पर, जहां “उस समय कोई बढ़िया सुविधाएं नहीं थीं. हम स्कूल के बाद घंटों क्रिकेट पिच पर बिताते थे. यह एक छोटी सी जगह थी, इसलिए सभी दोस्त पास ही रहते थे.”
उनके पिता और चाचा की छह बहनें थीं, और वे सभी एक ही घर में रहते थे. यह एक ऐसी आदत थी जिसे वह कभी नहीं छोड़ पाए. घर अब मुंबई में, पश्चिमी तट पर है, जहां सभी रुइया – भाई, बहन, चाची, चाचा, भतीजे अब भी एक ही घर में रहते हैं.
ऐसा कहा जाता है, यह कोई साधारण घर नहीं है. एक पूर्व सहकर्मी जो वहां रह चुका है, उसे “विशाल” बताता है. “सबके पास एक-एक पूरी मंजिल है”. रुइया एक व्यंग्यात्मक मुस्कान देते हैं: “हमारे पास घर में थोड़ी सी जगह है.”
और, फिर, जाहिर है, मुंबई, दिल्ली और लंदन में रुइया के दूसरे विशाल घर हैं, जिनमें रीजेंट पार्क में हाल ही में खरीदा गया 11.3 करोड़ पाउंड का घर भी शामिल है. वह स्पष्ट रूप से एक-दूसरे से प्रतियोगिता की होड़ में नहीं हैं.
स्टैनलो हाइड्रोजन परियोजना से रुइया को कुछ सकारात्मक सुर्खियां मिली हैं – कुछ साल पहले के मानक से एक स्वागत योग्य बदलाव. कोविड के दौरान यह साइट लगभग बंद हो गई थी, जब लॉकडाउन के कारण इसके ईंधन की मांग गिर गई थी क्योंकि इसके 40 एयरलाइन ग्राहकों का परिचालन बंद था और थोड़ी संख्या में ही कार मालिक इसका पेट्रोल खरीद रहे थे.
इसके बाद पता चला कि पिछले वर्षों में लाभांश के रूप में व्यवसाय से करोड़ों पाउंड लेने के बावजूद, एस्सार को कोविड सहायता योजना तक का लाभ दिया गया था, जिससे उसे 35.6 करोड़ पाउंड का वैट बिल चुकाने के लिए अतिरिक्त मोहलत मिली. इसके अलावा, यह भी पता चला कि इसके ऑडिटर, डेलॉइट ने समूह में “नियंत्रण और शासन” के बारे में शिकायत करते हुए इस्तीफा दे दिया था. इसे संडे टाइम्स बिजनेस सहित सभी समाचार पत्रों ने नकारात्मक रूप से देखा.
जब हम छत पर से नीचे आए और एक बैठक कक्ष में बैठे, और मैंने इस बारे में बात की तो रुइया की मुस्कान पहली बार गायब हो गई : “हम मीडिया द्वारा उनके दृष्टिकोण को लेकर निराश थे. मुझे नहीं लगता कि उस समय उनके पास सभी तथ्य थे. मुझे नहीं लगता कि वे समझ पाए कि सभी (रिफाइनरियों) को भारी नुकसान हो रहा था, फिर भी वे काम कर रहे थे. हमने अपने सभी कर्मचारियों को नौकरी पर बनाए रखा, उस अवधि के दौरान सभी को भुगतान किया, भले ही हम भारी नुकसान उठा रहे थे.”
सिर्फ मीडिया ही पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण नहीं रख रहा था, हालांकि मैंने इसके बारे में बात की है. दुनिया की सबसे बड़ी ऑडिटिंग फर्मों में से एक डेलॉइट का दृष्टिकोण निंदनीय था. और मैजिक सर्कल लॉ फर्म फ्रेशफील्ड्स ने भी इस्तीफा दे दिया.
उन्होंने कहा, “हमने इन सभी सवालों के जवाब कई बार दिए हैं. यह एक ऐसा दौर था जब चीजें स्पष्ट नहीं थीं.” उन्होंने आगे कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. एस्सार ने बाद में एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि “महामारी को देखते हुए हमारे व्यवसाय की दीर्घकालिक स्थिरता के बारे में हमारे कुछ सलाहकारों के बीच कुछ बुनियादी मतभेद थे. इन सवालों को बाद में संबोधित किया गया है.”
वास्तव में, वैट बिल का पूरा भुगतान किया गया था, और व्यवसाय फिर से पटरी पर आ गया है.
एस्सार एनर्जी, जिसमें स्टैनलो और भारतीय संपत्तियां शामिल हैं, जिसमें बंदरगाह, रिफाइनरियां और यहां तक कि गैस फ्रैकिंग ऑपरेशन भी शामिल हैं, ने पिछले साल 12.2 अरब डॉलर की बिक्री के साथ, आंतरिक गणना के अनुसार, 37.3 करोड़ डॉलर का लाभ कमाया.
रुइया पहले भी मुश्किल दौर से गुजर चुके हैं. 1990 के दशक में, उनकी एस्सार स्टील शाखा 25 करोड़ डॉलर के विदेशी मुद्रा ऋण की अदायगी में चूक गई थी – भारत के लिए यह पहला अपमानजनक मामला था.
उन्होंने अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए अपने साम्राज्य के बड़े हिस्से, मोबाइल फोन संचालन से लेकर स्टील मिलों तक को बेच दिया – वित्तीय भाषा में इसे “डिलीवरेजिंग” कहते हैं.
आंकड़े बताते हैं कि रुइया साम्राज्य कितना बड़ा था. वोडाफोन ने उनके भारतीय संयुक्त उद्यम में परिवार की 33 प्रतिशत हिस्सेदारी पांच अरब डॉलर में खरीद ली, और यह सिर्फ़ एक निपटान था. रुइया कहते हैं, “हमने अपनी बैलेंस शीट को 20 अरब डॉलर से ज्यादा कम कर दिया. क्या यह भावनात्मक था? क्या यह मुश्किल था? जाहिर है, जब आप कुछ बनाते हैं और फिर आपको पैसों के लिए उसे बेचना पड़ता है, तो यह मुश्किल होता है.”
हालांकि, वे स्वभाव से आशावादी रहे हैं (एक पूर्व सहकर्मी कहते हैं, “यदि आप उनके आशावाद को बोतल में भर सकते हैं, तो आप भी अरबपति बन जाएंगे.”) और वह अंत में कहते हैं: “पीछे मुड़कर देखें, तो इसने हमें इस ऊर्जा परिवर्तन में अब और अधिक भारी निवेश शुरू करने का अवसर दिया है. इसने हमें आगे बढ़ने और यह निवेश करने का एक नया अवसर दिया है.”
एस्सार एनर्जी अपना अधिकांश पैसा ब्रिटेन से कमाती है, लेकिन लंदन में निकट भविष्य में शेयर बाजार में उछाल की उम्मीद नहीं है. रुइया ने 2010 में इसे लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया था, जिससे 1.2 अरब पाउंड की राशि प्राप्त हुई और व्यवसाय का मूल्यांकन 5.4 अरब पाउंड किया गया. भारतीय अर्थव्यवस्था की उड़ान कम होते ही शेयरों में गिरावट आई. महज चार साल में जो शेयर 420 पाउंड पर पहुंच गए थे, छोटे शेयरधारकों के विरोध के बाच रुइया ने उसे केवल 70 पाउंड प्रति शेयर के दाम पर खरीदा.
‘सिटी’ के एक निवेशक कहते हैं, “उनका फिर से स्वागत नहीं किया जाएगा.”
अब, हालांकि, रुइया स्पष्ट रूप से चाहते हैं कि उन्हें ब्रिटेन में अच्छाई की एक ताकत के रूप में देखा जाए, जो औद्योगिक उत्तर पश्चिम को कार्बन मुक्त करने में मदद कर रही है.
मैं सोच रहा था कि क्या दशकों तक प्रदूषणकारी इस्पात और ऊर्जा उद्योगों में अरबों कमाने वाले 81 साल के उनके पिता और 75 साल के चाचा ने रुइया के बड़े हरित दांव को मंजूरी दी होगी.
रुइया को इसमें कोई संदेह नहीं है: “उन्हें इसे समझने में थोड़ा ज्यादा समय भले लगा हो, लेकिन अब वे इसे 200 प्रतिशत समझ चुके हैं. सिर्फ 100 प्रतिशत नहीं. अब यह वास्तविकता है, महज विचार नहीं है. यह सच में हो रहा है.”
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एकेजे/एबीएम
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