नई दिल्ली, 26 जून . सनातन धर्म में शिवलिंग की अपनी महिमा है. शिवलिंग को साक्षात आत्म रूप माना गया है. लिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग के तीन मूल भाग हैं, जिनके मूल में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु और ऊपर के भाग में महादेव स्थित हैं. इसके साथ ही वेदी में महादेवी विराजती हैं. शिव पुराण के अनुसार 10 तरह के शिवलिंग बताए गए हैं. शिवलिंग को परम ब्रह्म तथा संसार की समस्त ऊर्जा का प्रतीक भी बताया गया है.
‘शिव’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘कल्याणकारी’ या ‘उपकारी’ होता है. यजुर्वेद में शिव को शांतिदूत माना गया है. ‘शि’ का अर्थ है ‘पापों का नाश करने वाला’, जबकि ‘वा’ का अर्थ है ‘दाता’. संस्कृत में ‘लिंग’ का अर्थ है ‘चिन्ह’. मतलब ‘शिवलिंग’ का अर्थ है ‘प्रकृति के साथ एकीकृत शिव’, यानी ‘परम पुरुष का प्रतीक’.
वैसे शिवलिंग को सही अर्थ में समझा जाए तो शिव का अर्थ शुभ और लिंग का अर्थ ज्योति पिंड होता है. शिवलिंग ब्रह्मांड और उसकी समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है. जो शिवलिंग स्वयं प्रगट हुए हैं, उन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं. इसके साथ ही प्राचीन काल में मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है. असुरों के द्वारा स्थापित शिवलिंग को असुर लिंग कहा गया है. वहीं, जिस शिवलिंग को देवताओं द्वारा स्थापित किया गया, उसे देव लिंग कहा गया है.
प्राचीन काल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित शिवलिंग को अर्श शिवलिंग कहा गया. वहीं, प्राचीन काल या मध्य काल में ऐतिहासिक मनुष्यों, राजा-महाराजाओं या महापुरुषों द्वारा स्थापित शिवलिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है.
वैसे शास्त्रों में 5 प्रमुख प्रकार के शिवलिंग का जिक्र है, जिसमें पत्थर से बने शिवलिंग को शैलजा शिवलिंग, रत्नों से बने शिवलिंग को रत्नजा, धातु से बने शिवलिंग को धातुजा, लकड़ी से बने शिवलिंग को दारुजा, और मिट्टी से बने शिवलिंग को मृतिका शिवलिंग कहते हैं.
शिवपुराण के विश्वेश्वर संहिता के अनुसार शिवलिंग तीन प्रकार के बताए गए हैं, जिन्हें उत्तम, मध्यम और अधम कहा गया है. उत्तम शिवलिंग उसे कहते हैं जिसके नीचे वेदी बनी हो और वह वेदी से चार अंगुल ऊंचा हो. जो शिवलिंग वेदी से चार अंगुल से कम होता है, वह मध्यम कोटि का माना गया है, और जो इससे भी कम हो, वह अधम श्रेणी का माना गया है.
अब आपको हम बताते हैं कि शिवलिंग के जो दो प्रकार विशेष हैं, वे हैं शक्ति शिवलिंग और विष्णु शिवलिंग. शक्ति शिवलिंग वह शिवलिंग है जो सीधे जमीन पर स्थित हो या जमीन से सटा हो और जिसके नीचे डमरू की आकृति नहीं हो. जो शिवलिंग डमरू की आकृति पर टिका है, वह विष्णु शिवलिंग है. ऐसे में शक्ति शिवलिंग की पूजा हमेशा बैठकर और विष्णु शिवलिंग की पूजा हमेशा खड़े होकर करनी चाहिए.
ज्योतिर्लिंग के बारे में जान लें कि यह भगवान शिव का स्वयंभू अवतार है. ज्योतिर्लिंग का अर्थ है भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना. ज्योतिर्लिंग मानव द्वारा निर्मित नहीं होते हैं बल्कि वे स्वयंभू होते हैं और उन्हें सृष्टि के कल्याण और गतिमान बनाए रखने के लिए स्थापित किए गए हैं. ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि इन जगहों पर भगवान शिव ने स्वयं दर्शन दिए हैं और वहां एक ज्योति के रूप में वह उत्पन्न हुए थे.
12 ज्योतिर्लिंगों का शिव पुराण में जिक्र है. ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव स्वयं लिंग स्वरूप में प्रकट हुए. इनके नाम सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमाशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, और घृष्णेश्वर हैं.
शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है. इसलिए सभी ज्योतिर्लिंग शक्ति शिवलिंग हैं. इनमें से नागेश्वर का ज्योतिर्लिंग अपवाद है.
ऐसे में जान लें कि शिवलिंग भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक होता है, जबकि ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के ज्योति स्वरूप का प्रतीक होता है.
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जीकेटी/
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