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आयुर्वेद : द डबल हेलिक्स ऑफ लाइफ – जो जवाब देने का वादा नहीं करता, बेहतर सवाल भी पूछता है

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मुंबई, 21 जून . “आयुर्वेद : द डबल हेलिक्स ऑफ लाइफ” न केवल एक पुरानी परंपरा की तरफ जाता है, यह इसे वर्तमान समय के साथ फिर से जोड़ता भी है.

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता विनोद मनकारा निर्देशित और मेडिमिक्स ब्रांड के डॉ. एवी अनूप निर्मित यह 90 मिनट की डॉक्यूमेंट्री एक फिल्म से कम और एक मिशन से अधिक है. डॉक्यूमेंट्री का नाम प्रतिष्ठित डबल हेलिक्स डीएनए की संरचना से लिया गया है और आयुर्वेद को आधुनिक जीव विज्ञान के विरोध में नहीं, बल्कि एक भागीदार के रूप में पेश किया गया है, जो शरीर, मन और जीवनशैली के परस्पर संबंधों में संतुलन, रोकथाम और गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है. सबसे खास बात यह है कि फिल्म की वैश्विक पहुंच है.

भारत, केन्या, जर्मनी और अमेरिका में फिल्माए गए इस कार्यक्रम में मरीज, डॉक्टर और शोधकर्ता शामिल हैं, जो प्रचारक के रूप में नहीं बल्कि एकीकृत चिकित्सा के तर्कसंगत पैरोकार के रूप में बोलते हैं. एक बेहतरीन खंड मातृ देखभाल के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण का अनुसरण करता है. हर्बल इन्फ्यूजन और तेल उपचार के शांत प्रभावों पर प्रकाश डालता है, जो जटिलताओं को कम करते हैं और प्राकृतिक प्रसव को प्रोत्साहित करते हैं.

जर्मनी में, इसमें आयुर्वेद को एलोपैथी के साथ मिलाने वाले चिकित्सकों को दिखाया गया है.

विशेष रूप से मार्मिक क्षण में केन्या के एक पूर्व प्रधानमंत्री की बेटी आयुर्वेदिक देखभाल के माध्यम से अपनी आंशिक दृष्टि के बारे में बताती है. यह कोई चमत्कार कथा नहीं है, यह एक डेटा-समर्थित अनुभव है, जो फिल्म की थीसिस को मान्य करने वाले कई अनुभवों में से एक है कि आयुर्वेद वैश्विक स्वास्थ्य तालिका में पहले स्थान का हकदार है.

तकनीकी रूप से यह डॉक्यूमेंट्री अपने साफ-सुथरे, विनीत निर्माण में उत्कृष्ट है. मनकारा का निर्देशन दर्शकों को केंद्रित रखता है, जबकि सहज संपादन सुनिश्चित करता है कि सबकुछ सधा हुआ हो.

प्राथमिक भाषा के रूप में अंग्रेजी का चयन सांस्कृतिक प्रामाणिकता को खोए बिना इसे व्यापक पहुंच प्रदान करता है.

ऐसा कहा जाता है कि ऐसे क्षण हैं जब फिल्म जांच से ज्यादा वकालत महसूस करती है और ज्यादातर एकतरफा नजरिया पेश करती है. लेकिन, ऐसी दुनिया में जहां आयुर्वेद को अक्सर बिना उचित खोजबीन के खारिज कर दिया जाता है, शायद ऐसी वकालत जरूरी है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि फिल्म एलोपैथी को खारिज नहीं करती है बल्कि, यह सहयोग को आमंत्रित करती है, यह सुझाव देते हुए कि भविष्य की स्वास्थ्य सेवा समावेशी, टिकाऊ और परंपरा-परीक्षण दोनों में निहित होनी चाहिए.

महामारी के मद्देनजर और बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं, पुरानी बीमारियों और अति-चिकित्साकरण में बढ़ते अविश्वास के बीच, “आयुर्वेदः द डबल हेलिक्स ऑफ लाइफ एक शक्तिशाली, विचारोत्तेजक फिल्म के रूप में आती है. यह उत्तरों का वादा नहीं करती है, यह बेहतर सवाल पूछती है.

जो दर्शक आयुर्वेद को बहुत प्राचीन या बहुत अवैज्ञानिक मानते हैं, उनके लिए यह डॉक्यूमेंट्री शायद सोच बदल देगी. जिन लोगों ने इसके प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है, उनके लिए यह एक गौरवपूर्ण मान्यता है एक ऐसी प्रणाली की, जिसने सदियों से चुपचाप दुनिया भर में लाखों लोगों को ठीक किया, सुकून दिया और उनका समर्थन किया है.

एक सम्मोहक, सांस्कृतिक रूप से स्थिर लेकिन वैश्विक रूप से प्रासंगिक डॉक्यूमेंट्री जो भावना और साक्ष्य, परंपरा और विज्ञान के बीच सही संतुलन बनाती है. यह सिर्फ आयुर्वेद के बारे में नहीं है, यह खुद स्वास्थ्य को फिर से परिभाषित करने के बारे में है. अब यूट्यूब पर स्ट्रीमिंग, “आयुर्वेदः द डबल हेलिक्स ऑफ लाइफ आपके 90 मिनट के लिए पूरी तरह से योग्य है.

एकेएस/एबीएम

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