डूम्सडे क्लॉक के संबंध में वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। वैश्विक संघर्ष की स्थिति को देखते हुए प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों ने इस घड़ी में 10 सेकंड की कमी की है। यह बदलाव तीन वर्षों में पहली बार किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अब दुनिया महज 90 सेकंड की दूरी पर है जब वह पूरी तरह से तबाह हो सकती है। इस घड़ी का आधी रात का समय जितना कम होगा, न्यूक्लियर युद्ध का खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा। यह घड़ी 1947 से कार्यरत है और यह दर्शाती है कि मानवता महाविनाश से कितनी दूर है।
घड़ी की स्थिति और वैश्विक संकट
डूम्सडे क्लॉक की स्थिति की घोषणा करते हुए बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध, कोरोना महामारी, जैविक खतरों और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं दुनिया के सामने सबसे बड़े संकट हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि कोल्ड वॉर के चरम पर भी डूम्सडे क्लॉक इतनी निकटता पर नहीं पहुंची थी। पिछले तीन वर्षों से यह घड़ी आधी रात से 100 सेकंड दूर थी, लेकिन अब इसे 10 सेकंड और कम किया गया है।
90 सेकंड का खतरा
बुलेटिन के सीईओ राहेल ब्रॉनसन ने कहा कि हम अभूतपूर्व खतरे के समय में जी रहे हैं। डूम्सडे क्लॉक का समय इस वास्तविकता को दर्शाता है। 90 सेकंड की दूरी को विशेषज्ञ हल्के में नहीं ले रहे हैं। अमेरिका, नाटो के सदस्य देशों और यूक्रेन के पास वार्ता के कई चैनल हैं। नेताओं से अपील की गई है कि वे इस घड़ी को पीछे करने के लिए प्रयास करें।
डूम्सडे क्लॉक का कार्यप्रणाली
डूम्सडे क्लॉक का उपयोग खतरे के स्तर का आकलन करने के लिए किया जाता है। इसका मूल्यांकन जलवायु परिवर्तन, युद्ध, हथियारों, विध्वंसकारी तकनीक, अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती और प्रोपगैंडा वीडियो जैसी वैश्विक गतिविधियों के आधार पर किया जाता है। कोल्ड वॉर के अंत में, 1991 में, डूम्सडे क्लॉक तबाही से 17 मिनट की दूरी पर थी।
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