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देशी गौवंश संवर्द्धन में बीएचयू की बड़ी उपलब्धि, गंगातीरी और साहिवाल गायों से सफलतापूर्वक भ्रूण संग्रह

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एफवीएएस की शोध टीम ने 18 भ्रूण एकत्र कर सरोगेट गायों में किया प्रत्यारोपण

वाराणसी, 27 सितंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कृषि विज्ञान संस्थान के बरकछा मीरजापुर के वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज फैकल्टी (एफवीएएस) ने देशी गौवंश संवर्द्धन के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। फैकल्टी की शोध टीम ने शुक्रवार (26 सितंबर) को दो उत्कृष्ट देशी नस्लों गंगातीरी और साहिवाल की डोनर गायों से कुल 18 भ्रूण सफलतापूर्वक एकत्र किए हैं। इनमें गंगातीरी नस्ल से 7 तथा साहिवाल नस्ल से 11 भ्रूण प्राप्त हुए, जिन्हें बाद में सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया गया।

एफवीएएस के प्रधान अन्वेषक डॉ. मनीष कुमार ने शनिवार को जानकारी देते हुए बताया कि यह कार्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत चल रहे एक शोध परियोजना का हिस्सा है। इस उपलब्धि से बीएचयू की पशुपालन और प्रजनन अनुसंधान क्षमता का नया आयाम सामने आया है।

उन्नत तकनीक से देशी नस्लों का संवर्द्धन

डॉ. कुमार ने बताया कि मल्टीपल ओव्यूलेशन एम्ब्रियो ट्रांसफर जैसी उन्नत तकनीकों के माध्यम से देशी गायों की उच्च गुणवत्ता वाली संतानों का तेजी से उत्पादन संभव हो रहा है। भविष्य में संस्थान इन-विट्रो एम्ब्रियो प्रोडक्शन (आईवीईपी) और एम्ब्रियो ट्रांसफर (ईटी) तकनीकों का भी प्रयोग करने की योजना बना रहा है, विशेष रूप से लुप्तप्राय गंगातीरी नस्ल के संरक्षण के लिए। अब तक इस परियोजना के अंतर्गत एमओईटी तकनीक से 4 मादा बछियों का जन्म हो चुका है और 3 अन्य गायें गर्भवती हैं।

शोध टीम का योगदान

इस उपलब्धि में सह-अन्वेषक डॉ. कौस्तुभ किशोर सराफ और डॉ. अजीत सिंह का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। टीम का मानना है कि इस प्रकार के वैज्ञानिक प्रयास साहिवाल और गंगातीरी जैसी देशी नस्लों की उत्पादकता, संख्या और संरक्षण में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। इस संबंध में बताया गया कि गंगातीरी गाय पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है। यह एक महत्वपूर्ण दोहरी उपयोग वाली नस्ल है, जो दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ हल चलाने की क्षमता के लिए भी जानी जाती हैं। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता और कम लागत में पालन-पोषण की विशेषताएं, इसे ग्रामीण आजीविका का मजबूत आधार बनाती हैं।

प्रशासनिक सराहना और समर्थन

इस उपलब्धि पर संस्थान के निदेशक प्रो. यू.पी. सिंह, आरजीएससी के प्रोफेसर-इन-चार्ज प्रो. वी.के. मिश्रा और संकाय के डीन प्रो. अमित राज गुप्ता ने शोध टीम को बधाई दी और भविष्य के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने विंध्य क्षेत्र के ग्रामीण परिवारों की आर्थिक प्रगति के लिए ऐसे प्रयासों को महत्वपूर्ण बताया। वहीं, बीएचयू के कुलपति प्रो. अजीत चतुर्वेदी ने संकाय का दौरा कर वैज्ञानिकों के कार्यों की सराहना की और आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय भविष्य में भी इस तकनीक के विकास और विस्तार के लिए हरसंभव सहयोग करेगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

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