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सर्बिया: क्या रेलवे स्टेशन पर एक दुर्घटना के कारण सत्ता से बाहर हो जाएंगे राष्ट्रपति?

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DJORDJE KOSTIC/AFP via Getty Images सर्बिया के बेलग्रेड में विरोध प्रदर्शन का एरियल व्यू. रविवार को हुए इस विरोध प्रदर्शन में हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया.

सर्बिया में एक दुर्घटना के बाद से ही राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है.

पिछले साल एक नवंबर को सर्बिया के दूसरे सबसे बड़े शहर नोवीसाद में रेलवे स्टेशन की छत गिरने से 16 यात्रियों की मौत हो गई थी.

दरअसल इस रेलवे स्टेशन से बेलग्रेड और बुडापेस्ट के बीच तीव्र रेल लाइन शुरू की जानी थी. इससे सर्बियाई राष्ट्रपति को काफ़ी राजनीतिक लाभ होने की अपेक्षा थी.

सरकार ने इस दुर्घटना को बड़ी त्रासदी करार दिया लेकिन कई आम लोगों के लिए यह सरकारी विफलता का एक और संकेत था.

सरकार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार और मामले को दबाने के आरोप लगने लगे.

पूरे देश में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए. एक महीने के भीतर विरोध प्रदर्शन देश के चार सौ छोटे बड़े शहर और कस्बों में फैल गए.

मार्च महीने में तीन लाख से ज्यादा लोग विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो गए.

इसलिए इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या सर्बिया के व्यापक विरोध प्रदर्शन उसके राष्ट्रपति को सत्ता से बाहर कर देंगे?

वूचिच की ताकत image Getty Images अलेक्ज़ांडर वूचिच 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री चुने गए

बालकन क्षेत्र में स्थित सर्बिया की सीमा कई देशों के साथ सटी हुई है. यह देश बोस्निया- हर्जेगोविना, क्रोएशिया, हंगरी, बुलगारिया, नॉर्थ मैसेडोनिया, मोंटेनिगरो, रोमानिया और कोसोवो हैं. कोसोवा को सर्बिया अपना हिस्सा मानता है.

चौदहवीं शताब्दी से तीन सौ साल तक सर्बिया के हिस्से ओटोमन साम्राज्य से घिरे हुए थे. उन्नीसवीं सदी के अंत में सर्बिया अलग देश बना. पहले महायुद्ध के समय दूसरे राज्यों के साथ मिल कर वह यूगोस्लाविया बन गया.

दूसरे महायुद्ध के बाद यूगोस्लाविया कम्युनिस्ट देश बन गया जिसके सोवियत संघ के साथ करीबी संबंध थे. 1990 के दशक में यूगोस्लाविया में एक भयानक युद्ध के बाद उसका विघटन हो गया.

बेलग्रेड स्थित बालकन इनवेस्टिगेटिव नेटवर्क की कार्यकारी संपादक और खोजी पत्रकार गोर्डाना एंड्रिच कहती है, "सदियों से चले आ रहे राजनीतिक सत्ता संघर्ष की वजह से सर्बिया में लोकतंत्र की जड़ें कभी मज़बूत नहीं हो पाईं."

"यहां कभी लोकतांत्रिक शासन नहीं था. किसी भी सरकार ने देश में लोकतंत्र कायम करने और लोकतांत्रिक संस्थाएं बनाने की कोशिश नहीं की. हां, सर्बिया में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हैं और यहां चुनाव भी होते हैं लेकिन यह सब कुछ पूरी तरह सर्बियाई संविधान के अनुसार नहीं है."

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अलेक्ज़ेंडर वूचिच सर्बिया के राष्ट्रपति हैं. लोकलुभावन नीतियां अपनाने वाले तानाशाही नेता वूचिच का राजनीतिक सफ़र यूगोस्लाव युद्ध के दौरान एक अतिदक्षिणपंथी नेता के रूप में शुरू हुआ था.

2014 में वो पहली बार प्रधानमंत्री चुने गए और तीन साल बाद राष्ट्रपति बन गए.

2022 में उन्होंने संविधान में संशोधन करके जनमत सर्वेक्षण के लिए मतदाताओं की न्यूनतम आवश्यक संख्या को घटा दिया जिसके बल पर आगे संविधान में और बदलाव का रास्ता भी खुल गया.

अलेक्ज़ांडर वूचिच तानाशाह होने के आरोपों का खंडन करते हुए कहते हैं कि उन्होंने बेलग्रेड को पहले से बहुत बेहतर बना दिया है. मगर सभी लोग इस दावे से सहमत नहीं हैं.

गोर्डाना एंड्रिच कहती हैं कि, " वूचिच ने सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं जिसमें कार्यपालिका और न्यायपालिका के कई अधिकार शामिल हैं. वूचिच ही तय करते हैं कब सरकार बदली जाए और कब नए चुनाव करवाए जाएं. वो तय करते है कि न्यायपालिका किसी के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाए या नहीं."

गोर्डाना एंड्रिच कहती हैं कि राष्ट्रपति वूचिच ने मीडिया को भी अपने नियंत्रण में कर रखा है.

वो कहती हैं कि राष्ट्रपति वूचिच ने चुनाव संबंधी कानून और मीडिया को अपने नियंत्रण में कर लिया है. "मीडिया का इस्तेमाल करके वो विपक्ष के हर नेता को बदनाम करते हैं और उनकी विश्सनीयता ख़त्म करते हैं. न्यायपालिका पर भी उनका नियंत्रण है और इन्हीं हथकंडों से उन्होंने हर चीज़ पर अपनी पकड़ जमा रखी है."

विरोध प्रदर्शन image Getty Images नोवीसाद रेलवे स्टेशन की छत गिरने से हुई दुर्घटना के बाद लोगों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया

यूरोप एट सिविल राइट्स डिफ़ेंडर्स नाम की नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था की वरिष्ठ प्रोग्राम ऑफ़िसर ईवाना रैनडियोलविच कहती हैं कि सर्बिया में दस सालों से किसी ना किसी वजह से बड़े विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं.

आम तौर पर सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप इसकी एक बड़ी वजह रहे हैं. थोड़ा पीछे जाएं तो अप्रैल 2016 में सरकार ने बेलग्रेड में कई निजी इमारतों को गिराने का आदेश दिया. सरकार का कहना था कि वह ग़ैरक़ानूनी तरीके से बनाई गई हैं.

वहां के निवासियों का कहना था कि उन्हें ना तो इसकी पूर्व सूचना दी गई और ना ही मुआवज़ा दिया गया. उस ज़मीन का इस्तेमाल संयुक्त अरब अमीरात के पैसों से बनाई जा रही महंगी कॉलोनी बनाने के लिए किया गया.

ईवाना रैनडियोलविच कहती हैं किसी सरकारी संस्था ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की.

उन्होंने कहा कि बीच रात में निजी इमारतों को गिराने का काम शुरू कर दिया गया. "पुलिस और न्यायपालिका ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया. अब वहां चार महंगी कॉलोनियां बन गई हैं. इसमें एक विवादास्पद व्यापारी ने पैसा लगाया है. कोई नहीं जानता यह पैसा कहां से आया."

यह मुद्दा यूरोपीय संघ की संसद में भी उठाया गया जिसने सर्बिया सरकार से अपील की कि वो नागरिकों के ख़िलाफ़ पुलिस के अत्याधिक बलप्रयोग पर रोक लगाए.

इसके बाद मई 2023 में एक और बड़ी घटना घटी. तेरह साल के एक बच्चे ने बेलग्रेड के एक स्कूल में गोलीबारी की जिसमें नौ छात्र मारे गए. इसके एक दिन बाद दो सर्बियाई गांवों में भी गोलीबारी की ऐसी घटनाऐं घटीं जिसमें नौ लोग मारे गए.

हज़ारों लोग इस हिंसा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आए. उसके बाद एक खदान प्रोजेक्ट को लेकर विवाद शुरू हो गया.

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चीन पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोपीय संघ ने सर्बिया की खदानों से लिथियम निकालने का समझौता किया. इसके ख़िलाफ़ भी हज़ारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए.

ईवाना रैनडियोलविच का कहना है कि यह खदान एक बड़ी आबादी वाले इलाके में है जहां ज़मीन काफ़ी उपजाऊ है. "अगर यहां खनन जारी रहा तो यह क्षेत्र तबाह हो सकता है. ज़मीन के नीचे पानी ख़त्म हो जाएगा और यह उपजाऊ ज़मीन बेकार हो जाएगी. इससे केवल सर्बिया को ही नहीं लेकिन पड़ोसी देश बोस्निया और हर्ज़ेगोविना और मोंटोनेगरो के लिए भी मुश्किल खड़ी हो सकती है."

इस अशांति की पृष्ठभूमि में पिछले नवंबर में नोवीसाद रेलवे स्टेशन की छत गिरने से दुर्घटना हुई जिसमें 16 लोग मारे गए. इससे लोगों का सरकार और न्यायपालिका में विश्वास और ढह गया और गुस्सा उमड़ पड़ा.

ईवाना रैनडियोलविच कहती हैं कि इन विरोध प्रदर्शनों में देश के किसान और आम जनता भी प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ खड़ी हो गई. यह विरोध प्रदर्शन सर्दी के मौसम में शुरू हुए और किसानों ने प्रदर्शन कर रहे छात्रों के लिए खाना बनाने से लेकर हर संभव सहायता की. "छात्र इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व ज़रूर कर रहे हैं लेकिन यह आम लोगों का आंदोलन है."

सर्बिया में चक्काजाम और हड़तालें हो रही हैं. इस मामले को यूरोपीय संघ को सामने रखने के प्रयास भी चल रहे हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार द्वारा ढांचागत सुविधाओं के निर्माण के लिए दिए जा रहे ठेकों और माल की ख़रीददारी की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है.

सरकार द्वारा कुछ गिनेचुने लोगों को ठेके दिए जा रहे है जो लोगों की ज़िंदगी ख़तरे में झोंक रहे हैं. राष्ट्रपति के समर्थकों ने भी सरकार के समर्थन में संसद के बाहर रैली की जिसमें लगभग पचास हज़ार लोग शामिल हुए मगर उनकी संख्या विरोध प्रदर्शन करने वालों से बहुत कम थी.

राष्ट्रपति वुचिच ने कहा है कि छात्रों के विरोध का इरादा भले ही नेक हो लेकिन उससे देश की शांति और स्थिरता भंग हो रही है. उन्होंने इसके लिए विपक्ष को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि विपक्ष अपराधी गुटों के साथ है और एक अंतरिम सरकार बनाने की फ़िराक में है.

सर्बिया के कूटनीतिक संबंध image Getty Images मास्को में विजय दिवस की 80वीं वर्षगांठ में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित अन्य नेताओं के साथ सर्बियाई राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वूचिच

सर्बिया के उथलपुथल भरे इतिहास में उसके राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध रूस, मध्यपूर्व और यूरोप के साथ बने और बदले हैं. राष्ट्रपति वुचिच के समर्थक कहते हैं कि उन्होंने बड़ी सफलता के साथ इन देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखा है.

सर्बिया की भौगोलिक स्थित को देखते हुए चीन ने भी वहां अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत काफ़ी निवेश किया है. इससे सर्बिया के पश्चिम के साथ संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?

सर्बिया ने 2009 में यूरोपीय संघ की सदस्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया था.

लंदन के किंग्स कॉलेज में यूरोपीय कानून विभाग के निदेशक डॉक्टर ऐंडी होज़े कहते हैं कि कि सर्बिया के यूरोपीय संघ में शामिल होने में हुई देरी की वजह से वह यूरोपीय मूल्यों से दूर जाता गया है.

"इसकी वजह से वहां सुधार प्रक्रिया धीमी पड़ गई. जिसका फ़ायदा उठा कर महाशक्तियों ने उसे राजनीतिक रस्साकशी का मैदान बना लिया है. यही बात हमें यूक्रेन युद्ध में ज़्यादा साफ़ दिखायी दे रही है."

रूस के यूक्रेन पर हमले से स्थिति और पेचिदा हो गई हैं. सर्बिया के रूस के साथ लंबे समय से सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. दोनो की पहचान स्लाव संस्कृति और और्थोडोक्स ईसाई धर्म पर आधारित है जिसके चलते वो स्वाभाविक सहयोगी हैं.

2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही राजधानी बेलग्रेड में रूस के समर्थन में प्रदर्शन हुए.

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डॉक्टर ऐंडी होज़े ने कहा कि सर्बिया उन चंद देशों में से एक है जिसने रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध नहीं लगाए और ना ही सर्बिया और रूस के बीच हवाई यातायात पर रोक लगाई. "युद्ध के बाद से कई रुसी उद्योगपतियों ने सर्बिया में व्यापार शुरू कर दिया है जिससे दो देशों की निकटता का पता चलता है."

इसके बावजूद सर्बिया के लिए इस स्थिति में तटस्थ रहना मुश्किल हो रहा है. वूचिच की एसएनएस पार्टी के दस साल पहले सत्ता में आने के बाद से सर्बिया के चीन के साथ संबंध भी मज़बूत हुए हैं. चीन वहां ढांचागत निर्माण में निवेश कर रहा है.

डॉक्टर ऐंडी होज़े याद दिलाते हैं कि पिछले साल चीन के नेता शी जिनपींग ने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान बेलग्रेड का भी दौरा किया और दो देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.

दरअसल, नोवीसाद के जिस रेल स्टेशन पर हादसा हुआ उसकी इमारत चीन के सहयोग से बनी थी. वहीं रूस के तेल पर लगे यूरोपीय प्रतिबंध की काट निकाल कर सर्बिया ईरान से तेल ख़रीद रहा है.

अब सवाल यह है कि उसके यूरोपीय संघ के प्रतिद्वंदियों के करीब खिसकने के बावजूद यूरोपीय संघ ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया? वहीं यूरोपीय संघ ने सर्बिया में हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर भी चुप्पी साध रखी है.

डॉक्टर ऐंडी होज़े का कहना है कि यूरोपीय संघ की चुप्पी की वजह यह है कि उसने एक साल पहले सर्बिया के साथ लीथियम की सप्लाई के लिए समझौता कर लिया है.

इससे यह गारंटी मिली है कि यूरोपीय कार निर्माता कार में इस्तेमाल होने वाली 15 से 90 प्रतिशत बैटरियां सर्बिया के लिथियम से बना पाएंगे. "युरोपीय संघ कई बार ऐसे मामलों में मानवाधिकार के मुद्दों पर चुप्पी साध जाता है."

आगे का रास्ता image Getty Images सर्बिया के दूसरे सबसे बड़े शहर नोवीसाद में रेलवे स्टेशन दुर्घटना के बाद लोग श्रद्धांजलि देते हुए

मार्च महीने में राजधानी बेलग्रेड में तीन लाख लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. यह सर्बिया के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन था.

बेलग्रेड स्थित हैनरी जैकसन सोसाइटी में शोधकर्ता डॉक्टर हेलेना इवानोव सर्बिया की उथलपुथल के बारे में कहती हैं कि "यह देश का सबसे बड़ा राजनीतिक संकट है. राष्ट्रपति वुचिच के तेरह सालों के शासन के दौरान कई मसले खड़े हुए और विरोध प्रदर्शन हुए. मगर सरकार ने किसी तरह उनका हल निकाल लिया और विरोध प्रदर्शन ठंडे पड़ गए. इस बार पिछले पांच महीनों से विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं और सरकार कोई हल नहीं निकाल पा रही हैं."

राष्ट्रपति वुचिच ने नए प्रधानमंत्री को नियुक्त किया है लेकिन समस्या जस की तस है. तो लोग आख़िर चाहते क्या हैं?

डॉक्टर हेलेना इवानोव की राय है कि इन विरोध प्रदर्शनों के जारी रहने की कई वजहें हैं. "ज़ाहिर है कि विपक्षी दल छात्रों के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और सरकारी भ्रष्टाचार की उनकी शिकायतों से भी सहमत हैं. "

"मगर असल बात यह है कि सर्बियाई जनता का राजनीतिक दलों पर से विश्वास उठ गया है और वो छात्र नेताओं के एक अच्छे विकल्प के रूप में देखने लगे हैं. क्योंकि विपक्ष सहित देश के अधिकांश राजनेता लंबे समय से राजनीति में रहे हैं और लोग अब ऐसे नये चेहरों का सामने लाना चाहते हैं जो बदलाव ला सकें."

तो ऐसे नए राजनीतिक नेतृत्व की राजनीतिक विचारधारा क्या होगी?

डॉक्टर हेलेना इवानोव मानती हैं कि छात्र आंदोलन के नेताओं की अलग अलग विचारधारा है और विभिन्न मुद्दों पर अलग राय है. इसका स्वरूप क्या होगा यह समझना मुश्किल है.

वो कहती हैं कि छात्रों को तय करना होगा कि अगर वो राष्ट्रपति वुचिच को हटाना चाहते हैं तो कैसे हटाएंगे? उधर सर्बिया के सहयोगी देशों की इस पर क्या राय है?

रूस राष्ट्रपति वुचिच का समर्थन करता रहा है और कहता है कि यह छात्र आंदोलन पश्चिमी पैसों के बल पर चल रहे हैं.

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डॉक्टर हेलेना इवानोव का मानना है कि अधिकांश नेता उनके विरोध प्रदर्शनों पर यूरोपीय संघ की चुप्पी से बहुत निराश हैं.

डॉक्टर हेलेना इवानोव ने कहा कि बहुत लोगों को उम्मीद थी कि यूरोपीय संघ छात्रों का समर्थन करेगा. बहुत से लोग यूरोपीय संघ और यूरोपीय मूल्यों के समर्थक रहे हैं लेकिन इस मामले पर यूरोपीय संघ की चुप्पी के बाद वो अब यूरोपीय संघ या अमेरिका के पक्ष में कम ही दिखेंगे.

यूरोपीय संघ के चुप्पी साधने से हो सकता है कि वो सर्बियाई आबादी के ऐसे बड़े तबके का समर्थन खो दे जो यूरोपीय संघ के पक्षधऱ रहा है.

तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- क्या सर्बिया के व्यापक विरोध प्रदर्शन उसके राष्ट्रपति को सत्ता से बाहर कर देंगे?

2022 में अलेक्ज़ांडर वूचिच ने निर्णायक रूप से जीत हासिल की थी. उस समय यूरोपीय संघ ने कहा था कि सर्बिया के चुनावों में ख़ामियां रही हैं.

यह वूचिच का आख़िरी कार्यकाल है जिसके दो साल अभी बचे हैं. वो प्रदर्शनकारियों को तुष्ट करने के लिए मंत्रियों को बर्ख़ास्त करने को तैयार दिखे हैं.

उन्होंने नया प्रधानमंत्री भी नियुक्त किया है लेकिन पिछले पांच महीनों में छात्रों के विरोध प्रदर्शन कमज़ोर होने के बजाय मज़बूत हुए हैं.

यहां हमें याद रखना चाहिए के प्रदर्शनकारी केवल सत्तारुढ़ पार्टी ही नहीं बल्कि अन्य दलों पर भी भरोसा नहीं करते और ना ही फ़िलहाल उनकी अपना राजनीतिक दल बनाने की योजना है.

व्यापक विरोध प्रदर्शनों से राष्ट्रपति को हटाया तो जा सकता है लेकिन तभी जब वो ख़ुद पद से हटने को तैयार हो जाएं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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