चीन की सीमा से लगे उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में मंगलवार को भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ में कई लोगों के हताहत होने की आशंका जताई जा रही है.
सोशल मीडिया पर घटना के जो वीडियो वायरल हैं, उनमें स्थानीय लोग चिल्लाकर एक-दूसरे को आपदा की चेतावनी और जान बचाकर भागने की अपील करते हुए सुने जा सकते हैं.
वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे घर और कई मंज़िला इमारतें पानी और इसके साथ आए मलबे के तेज़ बहाव में ताश के पत्तों की तरह ढह गई.
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उत्तराखंड सरकार का दावा है कि राहत और बचाव कार्य ज़ोर-शोर से चलाए जा रहे हैं और इसमें आपदा प्रबंधन बलों के अलावा, सेना और अर्धसैनिक बलों की मदद भी ली जा रही है.
इन सबके बीच जो सबसे ज़्यादा चर्चा में है- वो है खीर गंगा नदी, जो भागीरथी में जाकर मिलती है.
धराली उत्तरकाशी ज़िले का एक क़स्बा है और गंगोत्री की ओर बढ़ते हुए हर्षिल घाटी का हिस्सा है.
ये घाटी चारधामों में से एक गंगोत्री धाम की यात्रा पर जाने वाले लोगों के लिए एक अहम पड़ाव भी है.
यहाँ से गंगोत्री तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है. भौगोलिक स्थिति की बात करें, तो यह समुद्र तल से लगभग 3100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है.
धराली क़स्बे में हिमालय की ऊँची चोटियों में उतरकर आती है खीर गंगा. यूँ तो यह तकरीबन पूरे साल शांत और धीमे प्रवाह में बहती है, लेकिन बरसात में अपना उग्र रूप दिखा देती है.
मंगलवार को खीर गंगा ने जैसा रौद्र रूप दिखाया, इतिहास के जानकार और भूगर्भ विज्ञानी भी मानते हैं कि पहले भी खीर गंगा में भीषण बाढ़ आ चुकी है.
भूगर्भ विज्ञानी प्रोफेसर एसपी सती बताते हैं कि 1835 में खीर गंगा में सबसे भीषण बाढ़ आई थी. तब नदी ने सारे धराली क़स्बे को पाट दिया था.
बाढ़ से यहाँ भारी मात्रा में मलबा (गाद) जमा हो गया था. उनका दावा है कि अभी जो भी बसावट है, वह उस समय नदी के साथ आई गाद पर स्थित है.
पिछले कुछ सालों में खीर गंगा में पानी का तेज़ बहाव आने की घटनाएँ हुई हैं, कई घर इस बाढ़ में बहे भी हैं, लेकिन कोई जनहानि नहीं हुई थी.
खीर गंगा नाम की कहानीहिमालय के इतिहास और पर्यावरण के विशेषज्ञ माने जाने वाले इतिहासकार डॉ शेखर पाठक भी मानते हैं कि ये इलाक़ा बेहद संवेदनशील है और भूस्खलन और एवलांच जैसे हादसों की संभावना यहाँ बनी रहती है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हिमालय की चौखंभा वेस्टर्न रेंज का ये इलाक़ा है. साल 1700 में जब गढ़वाल में परमार राजवंश का शासन था. तब भी बड़ा भूस्खलन होने से झाला में 14 किलोमीटर लंबी झील बन गई थी और इसका प्रमाण आज भी देखा जा सकता है, क्योंकि यहाँ भागीरथी ठहरी हुई लगती है."
डॉक्टर पाठक बताते हैं कि 1978 में धराली से नीचे उत्तरकाशी की तरफ़ आते हुए 35 किलोमीटर दूर डबराणी में एक डैम टूट गया था, इससे भागीरथी में बाढ़ आ गई थी और कई गाँव बह गए थे.
इसके बाद धराली और आसपास के इलाक़ों में कई बार बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएँ हुई, लेकिन कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई थी.
रही बात, खीर गंगा के नाम को लेकर सोशल मीडिया पर चल रही कई कहानियों की, तो शेखर पाठक इन्हें बस 'सुनी-सुनाई बातें' ही मानते हैं.
उन्होंने कहा, "ये नदी पहले ग्लेशियर और फिर घने जंगलों से होकर बहती है, इसलिए इसका पानी शुद्ध रहता है. मतलब कई दूसरी नदियों की तरह इसमें चूने का पानी मिला हुआ नहीं है. इसलिए इसे खीर नदी कहा जाता है."
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ क्यों इतनी आम हैं?बादल फटना हिमालय क्षेत्र में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है. इसकी वजह है बहुत कम समय में किसी छोटे इलाक़े में भारी बारिश का होना.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, बादल फटने की परिभाषा है- जब किसी 20 से 30 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में, एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश हो जाए.
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इन घटनाओं की संभावना लगातार बढ़ रही है.
शेखर पाठक कहते हैं, "पहले ऊँचाई वाले इन इलाक़ों में बर्फ़ गिरती थी, ग्लेशियर बनते थे, बारिश बहुत कम होती थी. लेकिन अब बर्फ़ कम गिरती है और बारिश भी ख़ूब होती है. इसकी वजह है जलवायु परिवर्तन और इनका असर ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आता है."
साल 2023 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी),रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में बताया था कि बादल फटने की ज़्यादातर घटनाएँ आमतौर पर 2000 मीटर से अधिक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में होती हैं. इनमें हिमालय की कई आबादी वाली घाटियाँ भी शामिल हैं.
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