पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान के बीच कई दिनों तक चले संघर्ष के बाद शनिवार रात दोनों पक्ष युद्धविराम के लिए सहमत हो गए हैं. क़तर की राजधानी दोहा में क़तर और तुर्की की मध्यस्थता में यह शांति वार्ता हुई.
हालांकि बीबीसी पश्तो सेवा के अनुसार अफ़ग़ान तालिबान के रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब मुजाहिद का कहना है कि दोहा में हुई बैठक में हालात को सामान्य बनाने और दोनों पक्षों के लोगों के बीच आपसी संपर्क और व्यापार को सामान्य बनाने की ज़रूरत पर चर्चा हुई.
बाद में रविवार को मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि क़तर के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में "बॉर्डर" शब्द के इस्तेमाल पर उनकी तरफ से न तो सहमति जताई गई है और न ही इस पर चर्चा की गई है.
मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि डूरंड रेखा का मुद्दा सरकारों से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि राष्ट्रों से संबंधित है. इस समझौते में दोनों पक्षों ने भविष्य में बातचीत जारी रखने पर सहमति जताई है.
इससे पहले 11 और 12 अक्तूबर की दरमयानी रात को पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर पाकिस्तान और तालिबान के बीच बड़ी झड़प की ख़बरें आईं.
रविवार 12 अक्तूबर को तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने इसे पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई बताया. उन्होंने दावा किया कि इस कार्रवाई में 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 30 घायल हुए.
इसी दिन पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग यानी आईएसपीआर ने एक बयान में दावा किया कि इन झड़पों में तालिबान के 200 से ज़्यादा लोग मारे गए. साथ ही आईएसपीआर ने 23 पाकिस्तानियों की मौत की भी पुष्टि की.
15 अक्तूबर को भी अफ़ग़ान तालिबान के एक प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सेना ने कंधार के स्पिन बोल्डक ज़िले में अफ़गानिस्तान पर हमले किए, जिसमें 12 से ज़्यादा आम लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए.
इसी के बाद क़तर और तुर्की की मध्यस्थता में दोहा में दोनों पक्षों के बीच शांति समझौते के लिए बातचीत तय की गई.
पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के अधिकारियों के मुताबिक़ दोनों के बीच हुए समझौते में यह शर्त भी है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के क्षेत्र का इस्तेमाल 'आतंकवाद' के लिए नहीं होने देंगे.
क़तर के विदेश मंत्रालय ने 19 अक्तूबर को एक बयान जारी कर कहा कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि स्थायी शांति और स्थिरता के लिए एक कार्य योजना तैयार करेंगे.
हालांकि क़तर के बयान में बाद में एक बदलाव किया गया जो दोनों पक्षों के बीच सीमा से जुड़े मुद्दे की गंभीरता की तरफ़ इशारा करता है.
क़तर के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर पोस्ट किए बयान से "बॉर्डर" शब्द हटा लिया गया है.

पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान के बीच हुए युद्धविराम समझौते के बाद क़तर के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि दोनों पक्ष स्थायी शांति बनाए रखने के लिए भविष्य में भी बातचीत जारी रखेंगे.
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "विदेश मंत्रालय ने आशा व्यक्त की कि यह महत्वपूर्ण कदम दोनों मित्र देशों के बीच 'सीमा पर' तनाव समाप्त करने में मददगार होगा और क्षेत्र में स्थायी शांति की एक मज़बूत नींव रखेगा."
हालांकि क़तर के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर जो बयान है उसमें संशोधन किया गया और आख़िरी में इस्तेमाल किया गया 'सीमा' शब्द हटा लिया गया.
दरअसल दोनों पड़ोसियों के बीच दो हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा लंबी सीमा है, जिसे डूरंड रेखा के नाम से जाना जाता है. यह औपनिवेशिक काल की एक सीमा है जिसे अफ़ग़ानिस्तान ने कभी औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी.
हाल के वर्षों में, दोनों पक्षों के बीच डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने को लेकर भी टकराव हुआ था.
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के जानकार और साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी ने बीबीसी संवाददाता चंदन कुमा जजवाड़े से कहा, "किसी भी युद्धविराम समझौते के बारे में आप पूरे यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकते हैं. इस समझौते से पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान के बीच जो संघर्ष चल रहा था वो फ़िलहाल रुक गया है. अब दोनों ही पक्षों को भरोसा बनाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे."
उनका कहना है, "डूरंड लाइन को तालिबान ने कभी भी नहीं माना है. अफ़ग़ानिस्तान में कोई भी शासन में आ जाए वो डूरंड लाइन को नहीं मानेंगे क्योंकि इससे उनका भावनात्मक और ऐतिहासिक संबंध है."
"इस मामले को हल करना इतना आसान नहीं है. यह एक खुली सीमा थी और अगर दोनों पक्ष इसे इसी तरह बनाए रखने पर सहमत हो जाएं तो इसे मैनेज किया जा सकता है. अफ़ग़ानिस्तान के लिए ये संवेदनशील मामला है."
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अंग्रेज़ों के शासन के दौरान खींची गई अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटिश इंडिया के बीच डूरंड रेखा को अफ़ग़ानिस्तान स्वीकार नहीं करता है. डूरंड लाइन के अस्तित्व में आने के बाद काबुल पर हुकूमत करने वाली हर सरकार ने इस लाइन को मंज़ूर करने से इनकार किया है.
वहीं पाकिस्तान इसे डूरंड लाइन न कह कर, अंतरराष्ट्रीय सीमा कहता है. उनका कहना है कि इस बॉर्डर को अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल है.
ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण मज़बूत करने के लिए सन 1893 में अफ़ग़ानिस्तान के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी.
ये समझौता ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मॉर्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान ख़ान के बीच काबुल में हुआ था.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान पर चाहे जो राज करे, कोई अफ़ग़ान डूरंड रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता.
सन 1923 में किंग अमानुल्ला से लेकर मौजूदा हुक़ूमत तक डूरंड लाइन के बारे में धारणा यही है.
सन 1947 में पाकिस्तान के जन्म के बाद कुछ अफ़ग़ान शासकों ने डूरंड समझौते की वैधता पर ही सवाल उठाए.
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पाकिस्तान कई साल से अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार से प्रतिबंधित तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करता है. हाल के समय में यह मांग और तेज़ हो गई है.
पाकिस्तान ने टीटीपी के लड़ाकों पर पाकिस्तानी सैनिकों और नागरिकों पर हमला करने का आरोप लगाया है. उसका यह भी आरोप है कि अफ़ग़ान नागरिक पाकिस्तान में हुए कई चरमपंथी हमलों में शामिल रहे हैं.
लेकिन तालिबान ने पाकिस्तान सरकार के इन आरोपों को ख़ारिज़ किया है और इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला बताया है.
प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी कहते हैं, "पाकिस्तान चाहता है कि तहरीक़-ए- तालिबान के ख़िलाफ़ अफ़ग़ान तालिबान कदम उठाए, जो मुझे लगता है कि तालिबान के लिए इतना आसान नहीं होगा. दोनों के बीच विचारधारा का एक संबंध है और टीटीपी ने तालिबान की काफ़ी मदद भी की है, ख़ासकर तब जब वो अमेरिका से लड़ रहे थे."
वहीं अफ़ग़ानिस्तान हाल के समय में पाकिस्तान पर अपनी सीमा और हवाई क्षेत्र के उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने कुछ कार्रवाइयों की पुष्टि की है जबकि कुछ से इनकार किया है.
8 अक्तूबर को पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग ने एक बयान में कहा कि 7-8 अक्तूबर की रात को ओरकज़ई में ख़ुफ़िया जानकारी पर आधारित अभियान चलाया गया और 19 चरमपंथी मारे गए.
8 अक्तूबर को ही पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने संसद में कहा था कि सरकार और सेना का धैर्य ख़त्म हो गया है और जिन लोगों ने चरमपंथियों को शरण दी है उन्हें अब इसके नतीजे भुगतने होंगे.
प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी का मानना है कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच आपसी समझ और भरोसा पूरी तरह ख़त्म हो चुका है.
उनके मुताबिक़, "दोनों पक्षों के बीच चल रहे तनाव में पाकिस्तान को संयम दिखाना होगा क्योंकि पहले हमला उसी ने किया था. फिर तालिबान तो लड़कर ही बना है, लड़ाई के बिना उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है."
सीमा पर क्या हैं ताज़ा हालात
बीबीसी उर्दू के रियाज़ सोहेल ने पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान सीमा पर चमन शहर में देखा कि दोनों के बीच मौजूद 'मैत्री दरवाज़ा' फिलहाल बंद है और किसी को भी इसके आसपास जाने की अनुमति नहीं है.
अफ़ग़ान तालिबान का आरोप है कि पाकिस्तान ने इस मैत्री द्वार को नष्ट किया है. लेकिन पाकिस्तान के सरकारी टीवी चैनल पीटीवी ने अपनी ख़बरों में इसका खंडन किया है और कहा है कि वास्तव में अफ़गान तालिबान ने ख़ुद ही धमाकों ने इस गेट को नष्ट किया है.
यहां सीमावर्ती इलाक़े में कंटीली तारों के बाड़ के आसपास पाकिस्तानी टैंक देखे जा सकते हैं.
रियाज़ सोहेल ने बताया है कि पास के काली जनन गांव में केवल युवा ही दिखाई दे रहे हैं.
चमन की दस लाख की आबादी सीमा पार से होने वाले व्यापार पर निर्भर है. यहां अफ़ग़ानिस्तान से प्याज़, टमाटर, अंगूर, कोयला और सेब जैसी चीजें आती हैं.
जबकि पाकिस्तान से चावल, सब्ज़ियां, दवाएं, सीमेंट, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर और अन्य कई चीजें अफ़ग़ानिस्तान को निर्यात की जाती हैं.
मौजूदा समय में पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बीच यह कारोबार बंद पड़ा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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- भारत में मौजूद तालिबान सरकार के विदेश मंत्री ने 'पाकिस्तानी हमले' को लेकर क्या चेतावनी दी
- अफ़ग़ानिस्तान को जंग में हराना क्यों है मुश्किल?
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