अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ग़ज़ा में जंग ख़त्म करने का उनका प्रस्ताव सभ्यता के इतिहास के सबसे बड़े दिनों में से एक हो सकता है और इससे "मध्य पूर्व में स्थायी शांति" आ सकती है.
ट्रंप का किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताना सामान्य बात है. यह प्रस्ताव उनके दावे जितना बड़ा न हो लेकिन सोमवार को व्हाइट हाउस में इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात के दौरान ट्रंप ने जो 20 बिंदुओं वाला प्रस्ताव पेश किया है, वह एक अहम कूटनीतिक क़दम है.
युद्ध के बाद ग़ज़ा के भविष्य को लेकर यह योजना ट्रंप प्रशासन की नीति में बदलाव को दिखाती है. साथ ही यह अमेरिका की ओर से नेतन्याहू पर समझौता स्वीकार करने का दबाव डालती है.
आने वाले हफ्तों में यह योजना हक़ीक़त बन पाएगी या नहीं? यह सवाल अब भी उन्हीं मुद्दों पर टिका हुआ है जो हमेशा से अहम रहे हैं. क्या अब नेतन्याहू और हमास के नेता यह मानते हैं कि युद्ध ख़त्म करना उसे जारी रखने की तुलना में ज़्यादा फ़ायदेमंद है.
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किस तरह की हैं रुकावटें?इस प्रस्ताव पर हमास की प्रतिक्रिया अभी तक साफ़ नहीं है. हमास के एक वरिष्ठ सदस्य ने बीबीसी से कहा कि इस योजना की शर्तें फ़लस्तीनी हितों की सुरक्षा करने में नाकाम हैं और संगठन किसी भी ऐसे प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा जिसमें इसराइल के ग़ज़ा से वापस जाने की गारंटी न हो.
अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ खड़े नेतन्याहू ने कहा कि इसराइल ट्रंप के 20 सूत्रीय प्रस्ताव को स्वीकार करता है. हालांकि उनकी गठबंधन सरकार के अति-दक्षिणपंथी धड़े के एक नेता पहले ही इनमें से कुछ बिंदुओं को ठुकरा चुके हैं.
लेकिन सिर्फ़ ट्रंप के सिद्धांतों को स्वीकार करना युद्ध ख़त्म करने जैसा नहीं है क्योंकि उनके घरेलू विरोधी कहते रहे हैं कि अगर कोई समझौता उनकी राजनीतिक स्थिति को ख़तरे में डालता है तो वह उसे आगे बढ़ने से रोक देते हैं. हालांकि नेतन्याहू इस आरोप को नकारते हैं.
इस मायने में देखें तो ट्रंप का प्रस्ताव शायद उस बड़ी सफलता के लिए काफ़ी नहीं है जिसकी उन्हें उम्मीद है. इसमें अब भी इसराइल और हमास दोनों के राजनीतिक समूहों के लिए गंभीर अड़चनें हैं, जो उन्हें अंतिम समझौते तक पहुंचने से रोक सकती हैं.
इस योजना में इतनी अस्पष्टता है कि दोनों पक्ष इसे स्वीकार करने का दिखावा कर सकते हैं, और इस पर आगे की बातचीत के दौरान इसे बाधित करके इसकी असफलता का आरोप एक-दूसरे पर डाल सकते हैं.
बीते कई महीनों की बातचीत के दौरान इस तरह का पैटर्न देखा गया है. और अगर ऐसा होता है, तो यह भी स्पष्ट है कि ट्रंप प्रशासन किसके पक्ष में खड़ा होगा. और वो पक्ष है इसराइल.
ट्रंप ने यह बात नेतन्याहू से साफ़ कह दी थी. उन्होंने सोमवार को बताया कि अगर हमास इस प्रस्ताव को नहीं मानता है तो अमेरिका उसे "पूरी तरह समर्थन देगा ताकि आप जो करना चाहते हैं, कर सकें."
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ट्रंप ने हालांकि इसे एक सौदे के रूप में पेश किया है लेकिन असल में यह आगे की बातचीत के लिए एक ढांचा है. यह एक ऐसी विस्तृत योजना नहीं है, जिसे जंग ख़त्म करने के लिए तुरंत स्वीकार किया जा सके.
यह उस "ढांचे" के समान है, जिसे उनके पिछले राष्ट्रपति जो बाइडन ने मई 2024 में एक चरणबद्ध युद्धविराम और समझौते के लिए पेश किया था. उस मामले में इसराइल और हमास ने युद्धविराम और बंदियों-क़ैदियों के आदान-प्रदान को लागू करने में आठ महीने लगाए थे.
ट्रंप एक 'ऑल इन वन' शांति समझौता चाहते हैं. लेकिन इसके लिए इसराइलियों के पीछे हटने के बाद सीमाओं का विस्तार से नक्शा बनाना, बंधकों की रिहाई के विवरण तय करना, रिहा होने वाले फ़लस्तीनी कैदियों की पहचान करना और जंग के बाद शासन की शर्तों को तय करने जैसे कई मुद्दों पर काम करना ज़रूरी है.
इनमें से कोई भी बात उनके 20 बिंदुओं वाले प्लान में विस्तार से नहीं बताई गई है, और ये सभी शांति समझौते को पटरी से उतारने के लिए काफ़ी हैं.
इस प्रस्ताव का ढांचा पहले के प्रस्तावों से प्रेरित है, जिसमें जुलाई में पेश की गई सऊदी-फ्रांसीसी योजना भी शामिल है. इसमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर का भी योगदान है और वह इस योजना के तहत अस्थायी रूप से ग़ज़ा के संचालन की निगरानी करने वाले "बोर्ड ऑफ़ पीस" में शामिल होंगे. इस बोर्ड के अध्यक्ष ख़ुद ट्रंप होंगे.
इसराइल, यूरोपीय और अरब देशों, इसके साथ ही क़तर और मिस्र जैसे मध्यस्थ देशों की सलाह के बाद यह योजना ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ और उनके दामाद जेरेड कुश्नर ने तैयार की है. इसमें जंग रोकने, इसराइली बलों की ग़ज़ा से सीमित वापसी, और हमास से सभी बचे हुए बंधकों को रिहा कराने के बाद इसराइल से फ़लस्तीनी क़ैदियों की रिहाई की बात की गई है.
इस योजना के तहत ग़ज़ा में एक स्थानीय, तकनीकी प्रशासन स्थापित किया जाएगा जो रोज़मर्रा की सेवाएं चलाएगा, और इसका संचालन मिस्र स्थित "बोर्ड ऑफ़ पीस" करेगा.
हमास के वे सदस्य जो "शांतिपूर्ण तरीक़े से साथ रहने" और हथियार छोड़ने के लिए तैयार होंगे, उन्हें माफ़ी मिलेगी और अन्य सदस्यों को निर्वासित किया जाएगा. अमेरिका और अरब देशों द्वारा बनाई गई अंतरराष्ट्रीय सेना ग़ज़ा में सुरक्षा संभालेगी और फ़लस्तीनी सशस्त्र समूहों के हथियार छोड़ने को सुनिश्चित करेगी.
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फ़लस्तीनी राष्ट्र की बात का इस योजना में बहुत अस्पष्ट रूप में ज़िक्र आया है. इस योजना में कहा गया है कि अगर रामल्लाह स्थित फ़लस्तीनी प्राधिकरण का पुनर्गठन होता है, तो "फ़लस्तीनियों के आत्म-निर्णय और राष्ट्र के लिए एक विश्वसनीय रास्ता संभव हो सकता है."
अरब देश इस प्रस्ताव को बड़ी सफलता मानते हैं, क्योंकि इससे फ़रवरी की ट्रंप की ग़ज़ा "रिविएरा" योजना रद्द हो गई है, जिसमें फ़लस्तीनियों को जबरन हटाने की बात थी.
साथ ही उन्हें कम से कम फ़लस्तीन के राष्ट्र के दर्जे का ज़िक्र मिल गया है, भले ही कोई निश्चित वादा नहीं किया गया है.
अमेरिका की योजना में कहा गया है कि "इसराइल ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा नहीं करेगा," लेकिन वेस्ट बैंक के लिए ऐसा कोई वादा नहीं किया गया है. यह अरब देशों के लिए अहम है, हालांकि योजना में एक जगह कहा गया है कि इसराइल ग़ज़ा की "सुरक्षा परिधि" में अपने सुरक्षाबल बनाए रखेगा.
दूसरी ओर इसराइल की ओर से नेतन्याहू का कहना है कि इस प्रस्ताव का पूरा ढांचा उनके जंग ख़त्म करने के उद्देश्यों के अनुरूप है. इसमें हमास को हथियार छोड़ते देखना, ग़ज़ा का निरस्त्रीकरण और भविष्य के किसी भी फ़लस्तीनी राष्ट्र का वादा नहीं है.
लेकिन यह अभी भी साफ़ नहीं है कि हथियार छोड़ने और फ़लस्तीनी राष्ट्र के दर्जे के प्रावधान को उनकी सरकार के कुछ हिस्से स्वीकार करेंगे या नहीं, या फिर नेतन्याहू इसे दबाव बनाने और शर्तों को "सुधारने" के लिए इस्तेमाल करेंगे.
अब बहुत कुछ हमास की प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है.
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जैसा कि मेरे सहयोगी रुश्दी अबू अलूफ़ ने पहले लिखा था, यह एक ऐसा लम्हा हो सकता है, जिसमें हमास प्रस्ताव स्वीकार करता दिखे लेकिन स्पष्टीकरण की मांग भी करे. ऐसे में व्हाइट हाउस के लिए वही चुनौती फिर से सामने आती है, जैसा कि पहले के युद्ध समाप्ति के प्रस्ताव के मामलों में देखा गया था.
इस एक महत्वपूर्ण मोड़ यानी ट्रंप और नेतन्याहू के संयुक्त बयान से ठीक पहले, ट्रंप ने नेतन्याहू को क़तर से माफ़ी मंगवाने पर राज़ी किया.
इसी महीने दोहा में हमास के नेताओं पर इसराइली हवाई हमले को लेकर क़तर माफ़ी की मांग कर रहा था. इसका मतलब है कि क़तर अब इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थता के लिए वापस मंच पर आ सकता है.
ट्रंप और नेतन्याहू की बैठक से कुछ घंटे पहले ग़ज़ा सिटी में इसराइली गोलाबारी और हवाई हमले तेज़ हो गए थे, जहां आईडीएफ़ ने अपनी तीसरी बख़्तरबंद डिवीज़न तैनात की है. इसराइल का यह बढ़ता हमला हमास पर दबाव बनाने के इरादे का हिस्सा है, लेकिन इससे आम नागरिकों की भारी तबाही हुई है.
दुनिया के अधिकतर देशों ने इसराइल की कार्रवाई की निंदा की है. वहीं, हमास के एक फ़ील्ड कमांडर ने बीबीसी को बताया है कि ग़ज़ा में हमास के कमांडर इंचार्ज एज़ अल-दीन अल-हद्दाद लगभग 5,000 लड़ाकों के साथ एक "अंतिम निर्णायक लड़ाई" की तैयारी कर रहे हैं.
ग़ज़ा में इसराइल की कार्रवाइयों के बाद फ्रांस और सऊदी अरब के नेतृत्व वाले यूरोपीय और अरब देश कुछ महीनों पहले कूटनीतिक रास्ते को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे थे. इससे इसराइल के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने की संभावना बढ़ गई.
वहीं नेतन्याहू के ख़िलाफ़ अभी भी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) से युद्ध अपराधों के आरोपों के तहत अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वॉरंट जारी है.
अमेरिकी प्रस्ताव बातचीत की गति को फिर से बढ़ा सकता है. ट्रंप दावा करते हैं कि वो इस युद्ध को ख़त्म करवाना चाहते हैं लेकिन क्या इस प्रस्ताव के ज़रिए वो इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं. या उसमें अब भी कई सप्ताह या महीने लग सकते हैं. यह एक बड़ा सवाल है?
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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