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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का मध्य-पूर्व के हालात पर क्या होगा क्या असर

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पिछली बार जब डोनाल्ड अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तो इसराइल के प्रधानमंत्री इतने खुश हुए कि उन्होंने एक इलाक़े का नाम उनके नाम पर रख दिया था.

यह इलाका है 'ट्रंप हाइट्स'. ये गोलान हाइट्स के चट्टानी इलाक़े में अलग से बने प्री-फ़ेब्रिकेटेड घरों की एक बस्ती है.

यहाँ के प्रवेश द्वार की सुरक्षा करने वाली एक ऊंची चील और यहूदियों के लिए पवित्र मानी जाने वाली मेनोराह की मूर्ति है. यह ट्रंप को आधी सदी के बाद अमेरिकी नीति को पलटने और व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहमति को बदलने का ईनाम था.

अमेरिका के अगले राष्ट्रपति के लिए 5 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. दुनिया के कई देशों के अलावा मध्य-पूर्व के लोगों की इसपर ख़ास नज़र होगी, यह चुनाव इलाक़े के भविष्य के लिए अहम हो सकता है.

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ट्रंप ने इसराइल के गोलान पहाड़ी पर दावों को मान्यता दी थी, जिसे साल 1967 के युद्ध में सीरिया से छीना गया था और बाद में इसराइल ने इसपर कब्जा कर लिया था.

वहां रहने वाले दो दर्जन परिवार और कुछ सैनिकों से सवाल यह है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप या डेमोक्रेटिक पार्टी की उनकी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस का इस क्षेत्र में इसराइल के हितों पर क्या असर पड़ेगा?

'नया अमेरिकी प्रशासन सही काम करे' image BBC / Joe McNally इसराइल के लोग आमतौर पर ट्रंप को जीतते हुए देखना चाहते हैं

एलिक गोल्डबर्ग और उनकी पत्नी होदाया अपने चार बच्चों के साथ एक छोटे से ग्रामीण समुदाय की सुरक्षा के लिए ट्रम्प हाइट्स में चले गए.

पिछले साल 7 अक्तूबर को दक्षिणी इसराइल में हमास ने हमला किया था. उसके बाद इस इलाक़े में युद्ध लगातार आगे बढ़ रहा है. एलिक गोल्डबर्ग ने हमास के सहयोगी हिज़्बुल्लाह के साथ इसराइल के युद्ध को 10 मील दूर लेबनान के साथ उत्तरी सीमा तक फैलते देखा है.

एलिक का कहना है, "पिछले एक साल से हमारी खूबसूरत हरी-भरी खुली जगह पर धुआँ भरा है और हिज़्बुल्लाह हमें जो रॉकेट भेज रहा है, वही हमारा प्यारा नज़ारा है. यह एक युद्ध क्षेत्र है और हमें नहीं पता कि यह कब ख़त्म होगा."

एलिक ने मुझे बताया कि वो चाहते हैं कि नया अमेरिकी प्रशासन “सही काम करे”.

जब मैंने पूछा कि इसका क्या मतलब है, तो उन्होंने जवाब दिया, “वो इसराइल का समर्थन करे”.

एलिक का कहना है, "अच्छे लोगों का समर्थन करें और सही-ग़लत का सामान्य सामान्य समझ रखें."

आप इसराइल में ऐसी बातें अक्सर सुन सकते हैं. और ट्रंप भी ये समझते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान ट्रंप को इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का समर्थन मिला था, जब उन्होंने ईरान के साथ परमाणु समझौते को रद्द कर दिया था.

इस समझौते का इसराइल विरोध कर रहा था. ट्रंप ने यरूशलम को इसराइल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी. यह दशकों पुरानी अमेरिकी नीति के विपरीत था.

इसराइलियों की पसंद कौन image Getty Images नेतन्याहू ने एक बार ट्रंप को “इसराइल का व्हाइट हाउस में अब तक का सबसे अच्छा मित्र” कहा था

नेतन्याहू ने एक बार ट्रंप को “इसराइल का व्हाइट हाउस में अब तक का सबसे अच्छा मित्र” कहा था.

अब जबकि अमेरिका मतदान के लिए तैयार हो रहा है, इसराइली नेता ने रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार के प्रति अपनी सराहना नहीं छिपाई है और सर्वेक्षणों से पता चलता है कि इसमें वो अकेले नहीं हैं.

कुछ हालिया सर्वेक्षणों के अनुसार क़रीब दो-तिहाई इसराइली ट्रंप को फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर देखना चाहते हैं.

इसमें 20% से भी कम लोग कमला हैरिस को जीतते हुए देखना चाहते हैं. एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ बिन्यामिन नेतन्याहू के समर्थकों में केवल 1% ही कमला हैरिस की जात चाहते हैं.

यरूशलम के माचेन येहुदा बाज़ार में शॉपिंग कर रहे चौबीस साल के गिली शमूलेविट्स का कहना है कि कमला हैरिस ने उस वक़्त "अपना असली रंग दिखाया" जब वो एक रैली में एक प्रदर्शनकारी से सहमत दिखीं, जिसने इसराइल पर नरसंहार का आरोप लगाया था.

उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा था कि "वह (प्रदर्शनकारी) जिस बारे में बात कर रहे हैं, वह सच है."

हालाँकि बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि वो नहीं मानती हैं कि इसराइल नरसंहार कर रहा है.

वहीं पास ही शॉपिंग कर रही रिवका ने कहा कि वो सौ फ़ीसदी डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में हैं.

रिक्वा ने कहा, "वो इसराइल की ज़्यादा फ़िक्र करते हैं. वो हमारे दुश्मनों के ख़िलाफ़ ज़्यादा ताक़तवर हैं और डरे हुए नहीं है. मुझे पता है कि लोग उन्हें पसंद नहीं करते, लेकिन मुझे उन्हें पसंद करने की ज़रूरत नहीं है. मैं चाहती हूँ कि वो इसराइल के लिए एक अच्छे सहयोगी बनें."

'फ़लस्तीनी राज्य का सपना' image Getty Images इसराइल ने इलाके नाम ही ट्रंप के नाम पर रख दिया है

यहाँ बहुत से लोगों के लिए अच्छे सहयोगी कभी दबाव नहीं डालते, आलोचना नहीं करते या किसी को बाध्य नहीं करते.

ग़ज़ा में युद्ध ने इसराइल और उसके अमेरिकी सहयोगी के बीच दरार पैदा करने में भूमिका निभाई है.

कमला हैरिस ग़ज़ा में युद्ध विराम की अपील करने में अधिक मुखर रही हैं. उन्होंने मानवीय मुद्दों पर अधिक जोर दिया है.

जुलाई महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस में नेतन्याहू से मुलाक़ात के बाद कमला हैरिस ने कहा था कि वो गज़ा की स्थिति के बारे में 'चुप नहीं रहेंगी.'

उन्होंने नेतन्याहू के सामने “मानवीय पीड़ा की विशालता और निर्दोष नागरिकों की मौत के बारे में अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की थी.

डोनाल्ड ट्रंप ने युद्ध की समाप्ति को इसराइल की 'जीत' के रूप में देखा है और अतीत में तत्काल युद्ध विराम का विरोध किया है.

ट्रंप ने कथित तौर पर नेतन्याहू से कहा है, "आपको जो करना है, वो करें."

लेकिन इस मामले में फ़लस्तीनियों को किसी भी उम्मीदवार से कोई खास उम्मीद नहीं दिखती है.

इसराइल के कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के एक प्रतिष्ठित फ़लस्तीनी विश्लेषक और राजनीतिज्ञ मुस्तफा बरगौती का कहना है, "कुल मिलाकर अनुमान यह है कि उनके लिए डेमोक्रिटिक पार्टी बुरी है, लेकिन अगर ट्रंप चुनाव जीत जाते हैं तो स्थिति और भी खराब हो जाएगी.”

"इसमें मुख्य अंतर यह है कि कमला हैरिस अमेरिकी जनता की राय में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील होंगी. इसका मतलब है कि वो युद्धविराम के पक्ष में ज़्यादा होंगी."

ग़ज़ा युद्ध ने फलस्तीनी राज्य की दिशा में प्रगति के लिए सऊदी अरब जैसे अमेरिकी सहयोगियों पर दबाव बढ़ा दिया है.

लेकिन किसी भी उम्मीदवार ने फलस्तीनी राज्य की स्थापना को अपने प्रमुख एजेंडे में नहीं रखा है.

जब राष्ट्रपति पद की बहस के दौरान डोनाल्ड ट्रंप से पूछा गया कि क्या वह इसका समर्थन करेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया था, "मुझे देखना होगा".

अब अनेक फ़लस्तीनियों ने फ़लस्तीनी राज्य के सपने को छोड़ दिया है और अमेरिकी समर्थन की उम्मीद भी छोड़ दी है.

मुस्तफा बरगौती का कहना है, "आम धारणा यह है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय क़ानून की रक्षा करने में बुरी तरह नाकाम रहा है, उसने कई बार फ़लस्तीनियों को निराश किया है और इसराइल के प्रति पूरी तरह पक्षपाती होकर उसका साथ दिया है."

उनका कहना है, “फ़लस्तीनी राज्य का मुद्दा एक नारे के अलावा और कुछ नहीं है.”

image Getty Images फ़सस्तीन की लोगों में इसराइल के लिए ईरान के साथ संबंधों का भविष्य

ईरान जैसे व्यापक क्षेत्रीय मुद्दों पर ट्रंप और हैरिस दोनों उम्मीदवारों का दृष्टिकोण ऐतिहासिक रूप से अलग-अलग रहा है.

ट्रंप ने हाल ही में इसराइल को सलाह दी थी कि वह "पहले परमाणु ठिकानों पर हमला करे और बाक़ी की चिंता बाद में करे."

वह इस महीने के शुरू में इसराइल पर ईरानी मिसाइल हमले के जवाब में इसराइली जवाबी हमले से पहले बोल रहे थे.

अमेरिका में इसराइल के पूर्व राजदूत डैनी अयालोन ने कहा, "यदि ट्रंप राष्ट्रपति होते तो शायद वे अधिक कठोर रवैया अपनाते और ईरानी अधिक हिचकिचाते."

लेकिन उनका कहना है कि दोनों उम्मीदवारों के बीच मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना आसान है.

हैरिस और ट्रंप दोनों ही अब ईरान के परमाणु हथियार बनाने के रास्ते को रोकने के लिए एक नया समझौता करने की बात कर रहे हैं. दोनों ही नेता इसराइल और पड़ोसी अरब देशों, ख़ासकर सऊदी अरब के बीच नॉर्मलाइज़ेशन समझौते का विस्तार करना चाहते हैं.

नज़रिए में क्या होगा अंतर

डैनी अयालोन का कहना है, "मुझे लगता है कि अगर कमला हैरिस व्हाइट हाउस पहुंचती हैं तो ग़ज़ा और लेबनान में युद्ध विराम पहले होगा, उसके बाद ईरान या नए क्षेत्रीय गठबंधनों के बड़े सवालों पर विचार किया जाएगा. "

उन्होंने कहा कि ट्रम्प जीतते हैं तो, "वो सीधे ईरान की तरफ रुख़ करेंगे और वहां से पूरे मध्य पूर्व में सभी पहलुओं और मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करेंगे."

अयालोन का मानना है कि इजरायल में जनता के मूड पर केवल नीति का ही प्रभाव नहीं पड़ता है.

उन्होंने कहा कि जब बात अमेरिका-इसराइल संबंधों की आती है तो सार्वजनिक हाव-भाव और भावनाएं ज़्यादा मायने रखती हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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