भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. इसके लिए मतदान 9 सितंबर को होगा और नतीजे उसी दिन घोषित किए जाएंगे.
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई की देर शाम अचानक स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, जिसकी वजह से यह चुनाव हो रहा है.
74 साल के धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था. ऐसे में उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था.
इस चुनाव को लेकर राजनीति अपने चरम पर है. संसद से सोशल मीडिया तक उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर चर्चाएं आम हैं और दोनों ही गठबंधन 'डिनर' पॉलिटिक्स में व्यस्त हैं.
राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी कहती हैं, "उपराष्ट्रपति का चुनाव यूं तो बहुत बोरिंग होता है लेकिन इस बार की बात कुछ अलग है."
नीरजा चौधरी इस चुनाव को सरकार की मज़बूती, संघ और सरकार का समन्वय और नेतृत्व के पैमानों परखती हुई नज़र आती हैं.
वे कहती हैं, "पिछले दिनों हुए घटनाक्रम ने इसे बहुत ही रोचक बना दिया है. फिर चाहे वह धनखड़ ने जिस तरह से इस्तीफ़ा दिया उसकी बात हो या फिर जिस तरह से कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया के सचिव पर राजीव प्रताप रूडी की जीत हुई."
वह कहती हैं कि छोटे से क्लब के चुनाव में रूडी की 100 से अधिक वोटों से जीत हुई. वह भी तब जब संजीव बालियान का समर्थन अमित शाह और जेपी नड्डा कर रहे थे. इस चुनाव में सोनिया गांधी के समर्थन के साथ-साथ क्या भाजपा सांसदों ने क्रॉस वोटिंग भी की थी. यह भी एक सवाल है?
वह कहती हैं कि यूं तो एनडीए उम्मीदवार के सामने जीत का कोई संकट नहीं है लेकिन अगर थोड़ी भी क्रॉस वोटिंग हुई तो फिर गठबंधन और सरकार की मज़बूती को लेकर सवाल खड़े हो जाएंगे.
नीरजा चौधरी कहती हैं, "अगर गठबंधन निर्धारित संख्या से अधिक वोट लेने में कामयाब होता है तो वह नेतृत्व, मज़बूती और संगठन की ताकत का बेहतरीन नमूना पेश करेगा."
किसके पक्ष में हैं नंबर?
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी उपराष्ट्रपति चुनाव को अलग नज़रिए से देखते हैं और कहते हैं कि जहां तक नंबर गेम की बात है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एनडीए के पक्ष में है.
वह कहते हैं, "इसमें यह देखना है कि कौन सा गठबंधन अपनी निर्धारित संख्या से अधिक मतदान करा सकता है. कुल 782 वोटों में से 48 वोट ऐसे हैं जो न की एनडीए के साथ है और न ही इंडिया के साथ."
"एनडीए गठबंधन की रणनीति की बात करें तो इस चुनाव में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह चुनाव का नेतृत्व और समन्वय कर रहे हैं. उन्होंने सभी दलों से बात की है. वोट मिलता है या नहीं मिलता ये अलग बात है."
वह बताते हैं कि एनडीए के पास चुनाव में जीत के लिए ज़रूरी 391 वोट से 31 वोट ज़्यादा हैं. वहीं इंडिया ब्लॉक के पास 312 वोट हैं. ऐसे में एनडीए की जीत में कोई संदेह की बात नहीं है.
विजय त्रिवेदी बताते हैं, "दूसरी बात इस चुनाव में यह भी दिख रही है कि भाजपा और आरएसएस के बीच बेहतर समन्वय है. यही वजह है कि आरएसएस के एक स्वयंसेवक को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है."
विजय त्रिवेदी कहते हैं कि यह चुनाव एक मामले में और दिलचस्प हो गया है. वह यह कि ओडिशा की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी बीजेडी ने फ़िलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
कहते हैं, "डीएमके, 'इंडिया' गठबंधन में शामिल है, लेकिन राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं. ऐसे में स्टालिन उनका समर्थन कर सकते हैं, जिनकी पार्टी के पास 32 वोट हैं. अगर वे नहीं करते तो बीजेपी इसका इस्तेमाल उनके ख़िलाफ़ करेगी."
हालांकि डीएमके ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह विचारधारा के आधार पर वोटिंग करेगी.
डीएमके के प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने कहा है, "हम विचारधारा को प्राथमिकता देंगे. हम केवल इसलिए राधाकृष्णन का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि वो तमिल हैं. हमें यह देखना है कि उनकी विचारधारा क्या है."
अगले साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं एनडीए गठबंधन में शामिल एआईएडीएमके को 66 सीटें मिली थीं.
वहीं वरिष्ठ पत्रकार विनिता यादव कहती हैं कि इस बार मामला बड़ा रोचक है और चुनाव जितना आसान दिखाई दे रहा है उतना आसान है नहीं.
वे कहती हैं, "दक्षिण बनाम दक्षिण के मुकाबले ने सांसदों में मनमर्ज़ी से वोट देने के चांस बढ़ा दिए हैं."
उपराष्ट्रपति चुनाव में क्यों नहीं जारी होता व्हिप?राजनीतिक विश्लेषक अनंत मिश्रा बताते हैं कि देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव ऐसा है जो कि पार्टी सिंबल पर नहीं लड़ा जाता है, इस कारण कोई भी पार्टी व्हिप जारी नहीं करती है.
वह बताते हैं, "इसका प्रभाव यह होता कि सदन का सदस्य अपने मन के अनुसार किसी को भी वोट दे सकता है. यही वजह है कि स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में कई लोग चुनाव लड़ते देखे गए हैं."
"पार्टी व्हिप इस चुनाव में लागू नहीं होने के कारण ही 1969 में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी राष्ट्रपति का चुनाव हार गए थे और इंदिरा गांधी के समर्थन से वीवी गिरि चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने थे."
वरिष्ठ पत्रकार मीना शर्मा कहती हैं, "इंडिया गठबंधन ने इस चुनाव को दक्षिण बनाम दक्षिण तो बना दिया लेकिन दक्षिण की पार्टियों से ही समर्थन लेने में वह असफल दिखाई दे रही है. आंध्र प्रदेश में पक्ष और विपक्ष दोनों ही एनडीए उम्मीदवार के समर्थन में है. ऐसे में इंडिया गठबंधन में रणनीतिक तौर पर अच्छी पहल दिखाई नहीं देती है."
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी के समर्थन ऐलान किया है.
ओवैसी ने एक्स पर लिखाहै, "तेलंगाना सीएमओ ने मुझसे बात की और अनुरोध किया कि हम जस्टिस सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद के लिए समर्थन दें. एआईएमआईएम जस्टिस रेड्डी का समर्थन करेगी, जो हमारे साथी हैदराबादी और एक सम्मानित ज्यूरीस्ट हैं."
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देश का संविधान भारत के उपराष्ट्रपति को दोहरी भूमिका सौंपता है. पहली भूमिका ये है कि वो कार्यपालिका के दूसरे मुखिया होते हैं और दूसरी भूमिका ये कि वो संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा के सभापति होते हैं.
संविधान में उपराष्ट्रपति को राज्यसभा का सभापति की मुख्य ज़िम्मेदारी दी गई है.
इसके अलावा भी कुछ भूमिकाएं हैं जिनका निर्वहन उपराष्ट्रपति को करना होता है. अगर राष्ट्रपति का पद किसी वजह से ख़ाली हो जाए तो यह ज़िम्मेदारी उपराष्ट्रपति को ही निभानी पड़ती है क्योंकि राष्ट्र प्रमुख के पद को ख़ाली नहीं रखा जा सकता.
पदक्रम के आधार पर देखें तो उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति से नीचे और प्रधानमंत्री से ऊपर होता है.
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया में क्या है अंतर?संविधान के अनुच्छेद 66 के मुताबिक़ संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों से मिलकर बना निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज उपराष्ट्रपति चुनता है.
उपराष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज में राज्यसभा और लोकसभा के सांसद शामिल होते हैं.
राष्ट्रपति चुनाव में चुने हुए सांसदों के साथ विधायक भी मतदान करते हैं लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही वोट डाल सकते है.
ख़ास बात यह है कि राज्यसभा के लिए मनोनीत सांसद राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते लेकिन वे उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग कर सकते हैं.
उपराष्ट्रपति चुनाव 60 दिनों के अंदर कराना ज़रूरीसंविधान के मुताबिक़ उपराष्ट्रपति का चुनाव संविधान के अनुच्छेद 63 से 71 और उपराष्ट्रपति (चुनाव) नियमावली 1974 के तहत होता है.
संविधान के अनुच्छेद 68 के खंड 2 के मुताबिक़, उपराष्ट्रपति के निधन, त्यागपत्र या पद से हटाए जाने या अन्य किसी कारण से ख़ाली होने वाली जगह को भरने के लिए जल्द से जल्द चुनाव कराने का प्रावधान है.
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने या फिर इस्तीफ़ा देने के 60 दिनों के अंदर चुनाव कराना ज़रूरी होता है. इसके लिए चुनाव आयोग एक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है जो मुख्यत: किसी एक सदन का महासचिव होता है.
निर्वाचन अधिकारी चुनाव को लेकर पब्लिक नोट जारी करता है और उम्मीदवारों से नामांकन मंगवाता है. उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार के पास 20 प्रस्तावक और कम से कम 20 अन्य अनुमोदक होने चाहिए.
प्रस्तावक और अनुमोदक राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य ही हो सकते है. उम्मीदवार को 15,000 रुपए भी जमा कराने होते हैं. इसके बाद निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्रों की जांच करता है और योग्य उम्मीदवारों के नाम बैलट में शामिल किए जाते हैं.
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भारत का उपराष्ट्रपति लोकसभा, राज्यसभा या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होता है.
अगर संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित होता है, तो उपराष्ट्रपति पद ग्रहण के साथ ही उस सदन में वो स्थान खाली मान लिया जाता है.
किसी व्यक्ति को उपराष्ट्रपति बनने के लिए भारतीय नागरिक होना चाहिए, उम्र 35 साल से कम नहीं होनी चाहिए और वह राज्यसभा सदस्य चुने जाने की योग्यताओं को पूरा करता हो.
अगर कोई भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद रखता है तो वह उपराष्ट्रपति चुने जाने के योग्य नहीं होगा.
उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसे होती है वोटिंगउपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव इलेक्शन अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति से किया जाता है.
इसमें वोटिंग खास तरीके से होती है जिसे सिंगल ट्रांसफ़रेबल वोट सिस्टम कहते हैं.
इसमें मतदाता को वोट तो एक ही देना होता है मगर उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है.
वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी पसंद को 2 और इसी तरह से आगे की प्राथमिकता देता है.
पद से ऐसे हटाए जा सकते हैं उपराष्ट्रपतिभारत में उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे ऊँचा संवैधानिक पद होता है.
वो पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करते हैं, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद, जब तक नया उपराष्ट्रपति पदभार नहीं संभालता, तब तक वो पद पर बने रह सकते हैं.
संविधान के मुताबिक़ उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग, या बर्ख़ास्तगी या अन्य कारणों से राष्ट्रपति का पद ख़ाली होने से लेकर राष्ट्रपति का जल्द से जल्द चुनाव होने तक (जो किसी भी स्थिति में पद ख़ाली होने की तारीख़ से छह माह के बाद तक नहीं होगा) राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है.
जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपना काम न कर पाएँ, तब उपराष्ट्रपति ये ज़िम्मेदारी संभालते हैं. इस अवधि के दौरान, उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ और विशेषाधिकार हासिल होते हैं.
उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक ऐसे प्रस्ताव के ज़रिए पद से हटाया जा सकता है, जिसे राज्यसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत ने पारित किया हो और जिससे लोकसभा सहमत हो.
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