भीलवाड़ा ज़िले का नरसिंहपुरा गाँव, समय- शाम के लगभग 4 बजे। खेतों के बीच सुनसान जगह पर, दो लड़के कालू और कान्हा 16-17 साल की एक दुबली-पतली लड़की को घसीट रहे थे। लड़की के कपड़े फटे हुए थे, शरीर पर खून के धब्बे थे और वह चिल्ला रही थी, 'मुझे छोड़ दो, मुझे घर जाने दो... मुझे मत मारो!'
अचानक कालू एक डंडा लाया और लड़की के सिर पर ज़ोर से वार किया। लड़की की चीखें तुरंत बंद हो गईं और वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। कालू और कान्हा उसे घसीटते हुए खेत के किनारे ले गए। यहाँ कोयला बनाने वाली पाँच भट्टियाँ थीं। दोनों लड़कों ने लड़की के शव को उठाकर एक भट्टी में डाल दिया। कालू ने पेट्रोल छिड़का, माचिस जलाई और भट्टी का दरवाज़ा बंद कर दिया। थोड़ी ही देर में भट्टी से मांस जलने की गंध आने लगी। लड़की की खाल पिघल रही थी और चारों तरफ धुआँ फैल गया। तीनों भट्टी के सामने बैठकर शव को जलते हुए देख रहे थे। यही कहानी है भीलवाड़ा भट्टी हत्याकांड की। आज हम आपको इस कहानी के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। यह कहानी आपकी रूह कंपा देगी।
शरीर मांस का लोथड़ा बन चुका था
शाम 7 बजे कालू ने भट्टी का दरवाज़ा खोला। तीन घंटे बीत चुके थे और 40-42 किलो की लड़की अब सिर्फ़ 10 किलो मांस का लोथड़ा बन चुकी थी। दोनों लड़के डर गए। कालू ने अपना फ़ोन निकाला और कुछ लोगों को फ़ोन किया। कुछ ही देर में छह और लोग वहाँ पहुँच गए और उन्होंने मिलकर शव को भट्टी से बाहर निकाला। शव से धुआँ निकल रहा था और उसकी हड्डियाँ साफ़ दिखाई दे रही थीं।
जले हुए शरीर के 20 टुकड़े
कान्हा चिल्लाए, 'जल्दी से पानी लाओ! शव को ठंडा करना है।' लाड देवी दौड़कर तंबू से एक बाल्टी पानी ले आईं। पानी डालने के बाद शव ठंडा हो गया। फिर एक लड़के ने फावड़ा उठाया और शव के टुकड़े-टुकड़े करने शुरू कर दिए। पहले सिर को धड़ से अलग किया गया, फिर पूरे शरीर के 20 टुकड़े किए गए। ये टुकड़े दो बोरों में भरे गए। लाड देवी ने बीच में ही टोकते हुए कहा, 'भट्ठी को ध्यान से देखना, कहीं कुछ छूट न गया हो।'
लड़कों ने भट्टी की तलाशी ली और कुछ बचे हुए टुकड़े बोरे में डाल लिए। फिर दोनों ने बोरे कंधों पर उठाए और जंगल की ओर चल पड़े।
लाड देवी ने पूछा, 'इसे कहाँ ले जा रहे हो?'
कालू ने जवाब दिया, 'हम वहाँ जंगल में कुछ करेंगे। तुम यहीं रहो और किसी को मत बताना।'
करीब चार किलोमीटर चलने के बाद वे एक नहर के पास पहुँचे। दोनों ने बोरे नहर में फेंक दिए और वापस आ गए। वापस आकर तीनों चैन की नींद सो गए।
लड़की की माँ चिंतित हो गई
वहाँ से एक औरत और एक लड़का आवाज़ लगाते हुए कालू और कान्हा के घर के पास पहुँचे। लड़के ने कहा, 'मेरी बहन दोपहर से गायब है। क्या तुमने कोई लड़की देखी है?' कालू ने मना कर दिया। लेकिन औरत ने भट्टी की ओर इशारा करके पूछा, 'यह भट्टी क्यों जल रही है?' कालू असमंजस में पड़ गया और बोला, 'मुझे नहीं पता।' लड़का भट्टी के पास गया और डंडे से टटोलने लगा। तभी उसे एक चमकदार चूड़ी दिखाई दी। उसने उसे निकालकर आंटी को दिखाया। चूड़ी देखते ही आंटी चीख पड़ीं, "यह मेरी बेटी की चूड़ी है! यह यहाँ कैसे है?" लड़के ने फिर से भट्टी खोदी और एक हाथ का जला हुआ टुकड़ा मिला। वह चिल्लाया, "आंटी, किसी ने हमारी गुड़िया जला दी!"
मौसी थाने पहुँची...
मौसी और लड़का दौड़कर गाँव के प्रधान के पास गए। मौसी रोते हुए बोलीं, 'प्रधान जी, मेरी बेटी भट्टी में जल गई!' प्रधान ने तुरंत पुलिस को बुलाया। खबर गाँव में आग की तरह फैल गई। रात के दो बजे तक गाँव वाले थाने के बाहर जमा हो गए। अगली सुबह पुलिस भट्टी पर पहुँची। डीएसपी श्याम सुंदर ने जाँच शुरू की। भट्टी में पानी डाला गया, लेकिन दीवारें अभी भी गर्म थीं। कालू, कान्हा, लाड देवी और संजय समेत नौ लोगों को हिरासत में ले लिया गया। थाने में पूछताछ शुरू हुई। संजय ने पहले तो कुछ नहीं बताया, लेकिन सख्ती से पूछताछ के बाद उसने बताया कि कालू ने उसे फ़ोन करके लाश को ठिकाने लगाने को कहा था।
कालू ने बताई पूरी कहानी
24 घंटे की कड़ी पूछताछ के बाद कालू ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया कि 'साहब, रोज़ाना लड़की का पिता बकरियाँ चराने आता था। लेकिन जब यह लड़की आती थी, तो उसकी खूबसूरती देखकर मेरा दिल दहल जाता था।' जब मैं उसका मुँह बंद करके उसे ले जाने लगा, तो मेरे बड़े भाई कान्हा ने मुझे देख लिया। कान्हा ने मुझे डाँटा, लेकिन फिर उसने भी अपना इरादा बदल दिया। फिर पहले कान्हा ने उसके साथ दो बार गलत काम किया और फिर मैंने। बच्ची चीख रही थी और कह रही थी कि मुझे जाने दो, मैं अपनी माँ को सब बता दूँगी। उसकी आवाज़ बहुत तेज़ थी। अगर वो ऐसे ही चिल्लाती रहती, तो कोई हमें देख लेता। इसलिए मैंने उसके सिर पर डंडा मारा। हमें लगा कि वो मर गई है, इसलिए हमने उसे भट्टी में फेंक दिया। जब उसका शरीर आधा जल गया, तो हमने उसे बाहर निकाला और उसके 20 टुकड़े करके नहर में फेंक दिया।
नहर में मिला जला हुआ और क्षत-विक्षत शव
कालू और कान्हा पुलिस को उस जगह ले गए जहाँ शव फेंका गया था। पुलिस ने नहर में तलाशी ली और कुछ टुकड़े बरामद किए। गुड़िया की माँ बुरी तरह रो रही थी। वो बार-बार कह रही थी, 'मेरी बेटी सजने-संवरने की शौकीन थी। उसने क्रीम रंग का लहंगा पहना हुआ था। मैंने उसे रोका था, लेकिन उसकी मुस्कान... इन दरिंदों ने मेरी बेटी को मार डाला।' उसकी बातें सुनकर गाँव वालों की आँखें नम हो गईं।
कालू और कान्हा के गुप्तांगों की जाँच
डीएसपी श्याम सुंदर ने तुरंत कालू और कान्हा को पेनाइल स्वैब टेस्ट के लिए भेजा। यह टेस्ट बलात्कार की घटना के 48 से 72 घंटों के भीतर किया जाता है। इस टेस्ट में गुप्तांगों में मौजूद तत्वों की जाँच की जाती है। जाँच में कालू-कान्हा के गुप्तांगों का डीएनए और लड़की के शव का डीएनए मेल खा गया। यहाँ तक कि कालू और कान्हा के सैंपल भी एक-दूसरे से मेल खा गए। इससे यह स्पष्ट हो गया कि कालू और कान्हा ने बारी-बारी से लड़की के साथ बलात्कार किया था।
9 महीने बाद मिली सजा...
यह मामला अदालत में लगभग 9 महीने तक चला। 43 गवाह पेश किए गए। 18 मई, 2024 को भीलवाड़ा पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश अनिल कुमार गुप्ता ने 100 पन्नों के फैसले में फैसला सुनाते हुए कहा, 'बचाव पक्ष द्वारा दी गई दलील का कोई आधार नहीं है। पुलिस जाँच, फोरेंसिक रिपोर्ट और गवाहों के बयानों से साफ है कि दोनों ने लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया।' फिर सबूतों के आधार पर कालू और कान्हा को फांसी की सजा सुनाई गई। वहीं, सबूतों के अभाव में कोर्ट ने कालू और कान्हा की पत्नियों और संजय समेत 7 लोगों को बरी कर दिया। फिलहाल कालू-कान्हा जयपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। पुलिस ने बाकी 7 बरी हुए लोगों के खिलाफ भी हाईकोर्ट में अपील की है।
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