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Diwali पर चाहिए मां लक्ष्मी की विशेष कृपा तो ऐसे सजाये पूजा की थाल, वीडियो में देखें पूजा विधि

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जयपुर न्यूज़ डेस्क ,हर व्यक्ति यथासंभव प्रयास करता है कि कुछ ऐसे उपाय या विधान अपना सके, पूजन कुछ यूं करे कि मां लक्ष्मी का उस पर सदा-फलदायक आशीर्वाद व कृपा बने और बनी रहे।देवी कृपा के मंतव्य से लक्ष्मी जी के पाने या गणेश-लक्ष्मी जी की प्रतिमा का फल-मेवे, नैवेद्य, पुष्प, खील-बताशों आदि से पूरे मनोयोग व विधि-विधान से पूजन किया जाता है। निश्चित संख्या में देवस्थान पर व निवास को यथासंभव संख्या में दीपों से सजाकर समृद्धि का स्वागत किया जाता है।इस पूजन के कुछ आवश्यक चरण हैं, जिनके पालन में सादगी और मन के सच्चे भाव ही अहम हैं। पूजन विधि सरल व कम वस्तुओं की आवश्यकता रखने वाली है।

पंचोपचार से पूजन

दीपावली पूजन की दो विधियां हैं : पंचोपचार और षोडशोपचार। षोडशोपचार के अंग होते हैं :

पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। इस पूजन प्रक्रिया में इन सभी चरणों का होना आवश्यक होता है।

दूसरी है पंचोपचार विधि।

यह विधि छोटी होने के साथ निर्दोष और अधिक सफलता देने वाली है। षोडशोपचार में मंत्र और दैवज्ञ की आवश्यकता होती है। पंचोपचार में देवी की पूजन सामग्री से पूजा, पुष्प अर्पण, धूप, नैवेद्य अर्पण और आरती करनी होती है। इस पूजा में पंडित या दैवज्ञ की आवश्यकता नहीं।

पूजन विधि...

सभी सामग्रियों को व्यवस्थित करके पूजन स्थान पर रख लें।
दीवार पर लक्ष्मी जी का पाना लगाएं। उसके सामने चौकी रखें।
चौकी पर हल्दी-कुमकुम से स्वस्तिक बनाकर, अक्षत रखकर, उस पर कोरा लाल कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर गणेश रूप में गोल सुपारी, सरस्वती के रूप में क़लम और लक्ष्मी जी के रूप में कमल या कोई भी लाल फूल रखें। फूल के पास एक सिक्का रखें। इस सिक्के को पूजन उपरांत संभालकर रखना है, ख़र्चना नहीं है। यह समृद्धि में वृद्धि का परिचायक है।
पूजा का थाल सजा लें, जिसमें हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, रुई, श्रीफल, सिक्का व मेहंदी रखें।
पूजन सामग्री को जल से शुद्ध करें।
अखंड दीप जो पूरे निशाकाल तक जलता रहे, उसमें तेल भरकर तैयार कर उपासक अपने दाहिने हाथ की तरफ़, थोड़े से अक्षत पर रखें और प्रज्वलित करें।
दीप की हल्दी, कुमकुम, पुष्प, चावल, जल से पूजा करें। पंचोपचार विधि में कलश स्थापना करने की आवश्यकता नहीं होती।
अब पाने के गणेश, सरस्वती और लक्ष्मी जी की पूजा करें। उन्हें भी हल्दी कुमकुम, अक्षत, पुष्प अर्पित करें। साथ ही लक्ष्मी जी को मेहंदी चढ़ाएं। लक्ष्मी जी को सिक्का, श्रीफल, खील-बताशे व रुई समर्पित करें और धूप या अगरबत्ती दिखाएं। इसी तरह सुपारी, फूल और क़लम की भी पूजा बारी-बारी करें।
नैवेद्य समर्पित करें और कुछ देर आंखें बंद करके बैठें और लक्ष्मी जी का ध्यान करें।
ताली बजाकर आंखें खोलें।
नौ दीपकों में तेल डालकर उन्हें प्रज्वलित करें व मंदिर के आसपास एक सीधी रेखा में रखें।
एक दीपक घी का बनाकर थाली में रखें और घंटी बजाते हुए इस दीपक से लक्ष्मी जी की आरती करें। इस दीपक को पूजा में ही रखें।
दीप आरती के बाद कपूर से भी आरती करें।
पूजन के बाद क़तार में रखे नौ दीपकों को घर के कमरों और द्वार पर सजा दें।
पूजन सामग्री

दीपक - एक बड़ा अखंड दीप, दस छोटे दीप, कपूर, रुई, तेल, घी, लक्ष्मी जी का पाना, गोल सुपारी, एक पेन (क़लम), कमल का फूल, पूजा की चौकी, पुष्प, तुलसी दल, नारियल, चावल।

खील- बताशे, रोली, मेहंदी, पिसी हल्दी, सिक्का, स्वच्छ कोरा लाल रंग का कपड़ा, घर की बनी हुई हलवा-पूरी, जिसे नैवेद्य के रूप में अर्पित किया जाएगा।

कलश स्थापना

अगर उपासक कलश स्थापना करना चाहें, तो एक कांस्य कलश में जल भरें, उसमें सुपारी व सिक्का डालकर, पांच या सात आम के पत्ते लगाएं। उस पर एक नारियल इस तरह रखें कि नारियल का मुंह उपासक की तरफ़ तथा पूंछ पाने की तरफ़ हो। उपासक अपने बाएं हाथ की ओर भूमि पर थोड़े अक्षत रखते हुए कलश को स्थापित करें। कलश पर स्वस्तिक बनाएं तथा दीप की पूजा के बाद, उसी विधि से कलश की भी पूजा करें।

पंचपर्व का पहला पड़ाव है धनतेरस

धनतेरस अन्नपूर्णा का मुहूर्त है। इस अवसर रसोई से जुड़ी कोई वस्तु ख़रीदना गृहस्थ जीवन के लिए अच्छा होता है। कैंची, चाकू, तवा ख़रीदना वर्जित है। रसोई में उपयोगी वस्तु लाकर, पूजन करके दूसरे दिन या अन्नकूट के दिन इस्तेमाल करें। इस रात में पूजन के समय तीन या तेरह दीपक जलाकर, उन्हें घर के बाहर सजा दिया जाता है।

इस दिन सुहाग और सिंगार की सामग्री ख़रीदना भी शुभ माना जाता है। मूल्यवान धातु में बिछिए, पायल से लेकर ज़ेवरों में कुछ भी ख़रीदा जा सकता है। इसका पूजन करें और दीपावली के दिन धारण करें। अगर दीपवाली पर लक्ष्मी जी के समक्ष रख रहे हों, तो अन्नकूट वाले दिन धारण करें। धनतेरस धन्वंतरि का दिन है, इसलिए औषधियों के दान का भी इस दिन विशेष फल मिलता है। च्यवनप्राश, तेल, घी, औषधि स्वरूप मसाले जैसे हल्दी आदि का दान किया जा सकता है।

रूप निखार का दिन

रूप चौदस के दिन प्रात:काल उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए। शाम को चौदह दीपक लगाने से पूर्व, यम का दीपदान किया जाता है। यह आटे का चार कोने वाला तेल की चार लंबी बत्तियों वाला दीपक होता है, जिसे घर के दक्षिण-पश्चिम कोने पर लगाया जाता है। इस दीप में बातियां इस तरह न रखें कि वे आर-पार जाएं। हर बाती दीये के एक कोने से बाहर निकली हुई हो और उसका शेष भाग बीच में रहे। इस दीपक को सावधानीपूर्वक साफ़ स्थान पर लगाया जाना ज़रूरी है। इसमें जितना तेल हो, उतने को ही जलने दें, तेल बढ़ाना नहीं है। बाद में दीपक को घर के बाहर रख दें। इस दीपक को प्रज्वलित करने के बाद शाम की पूजा के चौदह दीये जलाकर बाहर सजा दें।

लक्ष्मी-विष्णु के संग का दिन अन्नकूट

इस दिन लक्ष्मी और विष्णु साथ होते हैं। इस दिन नैवेद्य में भोजन की सामग्री दीपावली के भोग से अधिक बढ़ाकर रखी जाती है। इसलिए इस दिन 56 भोग का भी विधान रखा गया है। इस भोग में खीर को शामिल नहीं किया जाता। माना जाता है कि विष्णु जी को खीर अतिप्रिय है, तो वो केवल उसका भोग लगाकर शेष नैवेद्य की उपेक्षा कर देते हैं। अन्नकूट के पूजन के बाद ही पड़ोस-परिचितों में दीपावली के प्रसाद का वितरण किया जाता है।

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