
उज्जैन। मध्य प्रदेश के उज्जैन में शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर मंगलवार सुबह पारंपरिक शासकीय नगर पूजा हुई। कलेक्टर रौशन सिंह, पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा और प्रतिनिधियों ने चौबीस खम्बा माता मंदिर में देवी महामाया और महालया को मदिरा का भोग लगाया। ढोल-नगाड़ों के साथ माता की आरती की गई।
सोलह श्रृंगार, चुनरी अर्पित कर बलबाखल का भोग लगाया गया। माता को मदिरा भोग के बाद कलेक्टर की अगुवाई में पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा, एसडीएम एलएन गर्ग, पटवारी भगवान सिंह सहित 42 कोटवार और श्रद्धालु सड़क पर मदिरा की धार लगाते हुए निकले। यह 27 किलोमीटर तक पैदल चलकर करीब 40 मंदिरों में पूजन-अर्चन करेंगे।
गौरतलब है कि उज्जैन में रहवासियों की सुख-समृद्धि के लिए नगर पूजा की परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है। इसके लिए आबकारी विभाग शराब की 31 बोतल राजस्व विभाग को मुफ्त उपलब्ध कराता है। कलेक्टर रौशन कुमार सिंह ने मंगलवार को सुबह चौबीस खंभा स्थित माता महामाया व महालया को मदिरा का भोग लगाकर पूजा की शुरुआत की। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में मौजूद रहे। इसके बाद शासकीय अधिकारी व कोटवारों का दल शहर के विभिन्न कोणों में स्थित 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिर में ढोल ढमाकों के साथ रवाना हुए। सुबह 8 बजे चौबीस खम्बा मंदिर से शुरू नगर पूजा रात करीब 8 बजे हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर समाप्त होगी। इस दौरान उज्जैन शहर के देवी, भैरव और हनुमान मंदिरों में पूजन-अर्चन होगा।
चौबीस खम्बा मंदिर में माता महामाया और महालया की पूजा के बाद शासकीय दल नगर पूजा के लिए निकलता है। कोटवार मदिरा से भरी हांडी लेकर चलते हैं, इसकी धार नगर के रास्तों पर बहती है। ढोल के साथ निकले शासकीय दल के सदस्य 12 घंटे तक 27 किलोमीटर के दायरे में आने वाले चामुंडा माता, भूखी माता, काल भैरव, चंडमुंड नाशिनी सहित 40 देवी, भैरव और हनुमान मंदिरों में पूजा करते हैं। देवी और भैरव को मदिरा का भोग लगाया जाता है। हनुमान मंदिरों में ध्वजा अर्पित की जाती है। गढ़ कालिका माता मंदिर में पूजन के बाद करीब 8 बजे हांडी फोड़ भैरव मंदिर में पूजा समाप्त होती है।
नगर पूजा का इतिहास करीब हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि अवंतिका नगरी में सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल से ही चौबीस खम्बा माता मंदिर में नगर पूजन की परंपरा चली आ रही है। सम्राट विक्रमादित्य माता महालया और महामाया के साथ ही भैरव की पूजा करते थे, ताकि नगर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहे। किसी बीमारी या प्राकृतिक प्रकोप का भय न रहे। इसी कारण नवरात्रि पर्व की महाअष्टमी पर माता और भैरव को भोग अर्पित किया जाता है। मदिरा का भोग लगाने के बाद पूरे नगर में मदिरा की धार इसलिए भी लगाई जाती है कि अतृप्त आत्माएं तृप्त होकर नगर की रक्षा करें।
प्राचीन देवी मंदिर के भीतर काले पत्थरों के 24 खंभे हैं, इसी कारण इसे चौबीस खम्बा माता मंदिर कहा जाता है। प्रवेश द्वार दोनों ओर से 12-12 खंभों पर आधारित है। यह उज्जैन नगर में प्रवेश करने का प्राचीन द्वार हुआ करता था और इसके चारों ओर परकोटा भी बना था। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध उज्जैन के चारों द्वारों पर भैरव और देवी विराजमान हैं, जो नगर को आपदा और विपदा से सुरक्षित रखते हैं। चौबीस खम्बा माता उन्हीं में से एक हैं। यह मंदिर करीब 1000 साल पुराना बताया जाता है। मंदिर में लगे एक शिलालेख के अनुसार यहां कभी पशु बलि की प्रथा भी प्रचलित थी, लेकिन 12वीं शताब्दी में इसे समाप्त कर दिया गया।
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