
गांधीनगर । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर ने हाल ही में स्वदेशी तकनीक से विकसित बोरवेल बचाव प्रणाली को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की छठी बटालियन, जरोद, वडोदरा को सौंपा। यह आईआईटीजीएन का पहला कर्मचारी-नेतृत्वित प्रोजेक्ट है, जिसे संस्थान ने स्वयं विकसित किया है। परियोजना का उद्देश्य बोरवेल बचाव कार्यों को अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाना है।
संस्था के जन संपर्क विभाग ने अपने बयान में बताया कि हर वर्ष भारत में बच्चे खुले बोरवेल में गिर जाते हैं, जिससे बचावकर्मियों के सामने जटिल चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। इस परियोजना का लक्ष्य एक सुधारित बोरवेल बचाव प्रणाली विकसित करना था, जिसमें भारी और अस्थिर बचाव डंडों (रॉड) को हाथ से उठाने के बजाय एक नियंत्रित उठाने-घसीटने वाला तंत्र लगाया गया है। इसे संरचनात्मक और परिचालन सुधारों का समर्थन प्राप्त है। प्रणाली को कई मॉक परीक्षणों में सफलतापूर्वक सत्यापित किया गया और अब इसे फील्ड उपयोग के लिए एनडीआरएफ को सौंपा गया है।
कार्यक्रम की शुरुआत बोरवेल बचाव प्रणाली के प्रदर्शन से हुई, जिसमें पुराने बचाव तरीकों और परियोजना से हुए सुधारों को प्रदर्शित किया गया। उपस्थित व्यक्तियों ने देखा कि नया विकसित विंच और होइस्ट तंत्र नियंत्रित संचालन की सुविधा प्रदान करता है, जिससे गहराई में काम करते समय भारी धातु बचाव डंडों को हाथ से संभालने में होने वाले शारीरिक तनाव और जोखिम में पर्याप्त कमी आती है।
बाद में एक प्रस्तुति के माध्यम से परियोजना की यात्रा का विवरण प्रस्तुत किया गया। इसमें एनडीआरएफ गांधीनगर में प्रारंभिक फील्ड विज़िट से लेकर अंतिम उत्पाद विकास तक की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया। प्रस्तुति में समस्या का विवरण, सहयोगी डिज़ाइन प्रक्रिया और कई चरणों के परीक्षणों का विवरण भी शामिल था।
आईआईटीजीएन के निदेशक, प्रोफ़ेसर रजत मूणा ने कहा, “मैं टीम को स्वतंत्र रूप से इस प्रणाली को विकसित करने के लिए बधाई देता हूँ और प्रो मधु वडाली को मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देता हूँ। इस प्रणाली से सैनिकों का मैनुअल श्रम कम होगी और नियंत्रित तंत्र से बचाव की दक्षता बढ़ी है। ऐसे समाधान हमारे छात्र समुदाय को प्रेरित कर सकते हैं और यह दर्शाते हैं कि संस्थान राष्ट्रीय महत्व की वास्तविक समस्याओं को हल करने में सहयोग कर सकते हैं।”
एनडीआरएफ कमांडेंट, सुरेंद्र सिंह ने कहा, “पहले हमारे सैनिक बचाव डंडों को हाथ से संभालते थे, जिससे उन्हें थकान होती थी और जोखिम बढ़ जाता था। अब विंच-होइस्ट प्रणाली रॉड असेंबली और फंसे व्यक्ति दोनों का भार उठाएगी, जिससे हाथ से काम करने की आवश्यकता कम हो जाएगी। मैं इस विकास के लिए आईआईटीजीएन के कर्मचारियों और प्रो. मधु का धन्यवाद और सराहना करता हूँ।”
आईआईटीजीएन के यांत्रिक इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष, प्रो. विनोद नारायणन ने टीम को स्टाफ-नेतृत्व वाली नवाचार परियोजना के तहत संकाय मार्गदर्शन में प्रणाली को सफलतापूर्वक विकसित करने के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा, “मैं कर्मचारियों के प्रयासों की सराहना करता हूँ और बधाई देता हूँ कि उन्होंने यह प्रणाली स्वयं बनाई। साथ ही प्रो. मधु वडाली को उनके मार्गदर्शन और प्रेरणा के लिए धन्यवाद देता हूँ।”
समारोह में आईआईटीजीएन के निदेशक, प्रो. रजत मूणा, एनडीआरएफ कमांडेंट, सुरेंद्र सिंह; प्रो. विनोद नारायणन (विभागाध्यक्ष, यांत्रिक इंजीनियरिंग), प्रो. मधु वडाली (एसोसिएट प्रोफेसर और परियोजना मेंटर), प्रो. अतुल भार्गव (प्रोफेसर, यांत्रिक इंजीनियरिंग) और परियोजना का नेतृत्व करने वाली स्टाफ टीम उपस्थित थे।
परियोजना टीम में बबलू शर्मा, आशीष पांडे, निरव भट्ट, अमन त्रिपाठी, प्रगनेश पारेख और श्री शिबरम साहू शामिल थे। इनकी मेहनत और संकाय मार्गदर्शन ने प्रणाली को डिज़ाइन, तैयार और एनडीआरएफ को सौंपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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